नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा आज संविधान दिवस के अवसर पर समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायपालिका में मामलों की पेंडेंसी पर अपनी चिंताओं को व्यक्त किया.
एजी ने कहा कि पिछले 30 वर्षों से 4.29 लाख मामले लंबित हैं, जिसका अर्थ है कि 50 या 60 वर्ष की आयु में मामला दायर करने वाले व्यक्ति को भी परिणाम नहीं मिल सकता.
एजी वेणुगोपाल ने कहा कि न्याय वितरण प्रणाली वह नहीं हो सकती, जहां मुकदमे के मामले के परिणाम नहीं देखे जा सकते हैं, जिस पर लोगों ने अपनी आकांक्षाएं और आशाएं रखी हैं.
उन्होंने आगे कहा कि अमीर, शक्तिशाली और कॉर्पोरेट्स को देरी से प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन मध्यम वर्ग और गरीब व्यक्ति के लिए 30 साल तक इंतजार करना एक कठिन काम है. ऐसा करना उनके पैसे और धैर्य की परीक्षा होगी.
यह भी पढ़ें : मुझे सर कहिये, माई लॉर्ड नहीं- कलकत्ता के मुख्य न्यायाधीश
वेणुगोपाल ने कानून आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसके अनुसार भारत को प्रति मिलियन मामलों में कम से कम 50 न्यायाधीशों की जरूरत है, ताकि पेंडेंसी का निबटारा किया जा सके. उन्होंने कहा कि 20,588 जजों की मौजूदा ताकत के बजाय हमारे पास 1.36 लाख जज होने चाहिए. हमारे न्यायाधीशों को इसके कारण लंबे समय तक काम करना पड़ता है.
कोविड संकट से निपटने के बारे में बात करते हुए, एजी ने कहा कि एक बार स्थिति में सुधार होने के बाद मामलों की पेंडेंसी बढ़ सकती है. वर्तमान में केस दर्ज करने की सीमा अवधि को कोरोना वायरस को ध्यान में रखते हुए बढ़ाया गया है.
एससीबीए ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संविधान दिवस समारोह का आयोजन किया गया था, जिसमें कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी भाग लिया.