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अद्भुत हिमाचल: यहां अश्लील गालियां देकर भगाई जाती है बुरी शक्तियां! - Fagli festival in Lahaul Spiti

ईटीवी भारत की खास सीरीज अद्भुत हिमाचल में हम आपको ऐसे ही उत्सव के बारे में बताएंगे, जहां लोग त्यौहार के मौके पर एक दूसरे को अश्लील गालियां देते है.

fagli festival of kullu
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Published : Jan 31, 2020, 8:07 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 5:00 PM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के हर क्षेत्र के अपने-अपने त्यौहार और परंपराएं हैं. इन त्यौहारों और परंपराओं की रीत सदियों से चलती आ रही है. ऐसा ही एक उत्सव है फागली. ये उत्सव कुल्लू-मनाली सहित लाहौल स्पीति में मनाया जाता है. इस उत्सव को लोग अपने तौर तरीके से मनाते हैं. गढ़सा, बंजार, पल्दी घाटी के लोग अलग-अलग तरीके से फागली मनाते हैं.

फाल्गुन संक्रांति पर तीन और पांच दिन तक मनाया जाने वाला फागली उत्सव विष्णु-नारायण भगवान के दस अवतारों की लीलाओं का प्रतीक है. उत्सव में लोग परंपरागत तरीके से ढोल, नगाड़े, करनाह्ली, शहनाई, डफला, भाणा, कांसा और काहुली की कलरव ध्वनि के साथ गाना गाते हैं. साथ ही देवता विष्णु-नारायण की पालकी के साथ देवक्रीड़ा में भी भाग लेते हैं.

अद्भुत हिमाचल पर देखें ईटीवी भारत की रिपोर्ट

फाल्गुन माह से ही इसका नाम फागली पड़ा है. लोगों का मानना है कि माघ माह में देवता स्वर्ग प्रवास पर जाते हैं. फाल्गुन माह की सक्रांति के बाद देवता स्वर्ग प्रवास से लौटना शुरू करते हैं. स्वर्ग प्रवास से लौटने के बाद देवता आने वाले साल के लिए भविष्यवाणी करते हैं, जिसे बरसोआ कहा जाता है, यानि बार्षिक फल.

fagli festival of kullu
फागली में मुखौटा पहने व्यक्ति

बरसोआ के दौरान होने वाला मुखौटा नृत्य आकर्षण का केंद्र रहता है. इस दौरान कुछ लोगों द्वारा राक्षसों को खुश करने के लिए मुंह पर मुखौटा और शरीर पर शरूली नाम की घास पहनकर नृत्य किया जाता है. नृत्य देखने के लिए पूरे गांव के लोग इकट्ठे होते हैं. इस दौरान अश्लील गालियां भी दी जाती हैं.

सुबह के समय पूरा गांव हाथ में मशाल और मुखौटा लिए इकठ्ठा होता है. इस दौरान मुखौटा पहने लोग राक्षसों और बुरी शक्तियों को गालियां देकर गांव से बाहर खदेड़ देते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इसके साथ लोग आग जलाकर नृत्य करते हैं.

fagli festival of kullu
मुखौटा नृत्य

कई स्थानों पर महिलाएं भी अश्लील गालियां गीतों के माध्यम से गाती हैं. यह उत्सव नैहरा, कटूरणी, परखोल, रांगचा, पाली और थुनाड़ी और कुल्लू के चेथर, बलागाड़, जीभी सहित अन्य गांवों में मनाया जाता है. फागली में लोग बुराई पर अच्छाई, पाप पर पुण्य, अधर्म पर धर्म की विजय की गाथाओं का गुणगान करते हैं.

fagli festival of kullu
गालियां देकर भगाई जाती है बुरी शक्तियां

उत्सव के अंतिम दिन नर्गिस के फूल फेंकने की परंपरा भी निभाई जाती है. स्थानीय भाषा में नर्गिस के फूल को बीठ कहा जाता है. फागली उत्सव में यह अनूठी परंपरा सबको अपनी ओर आकर्षित करती है. फागली उत्सव में मुखौटा पहने लोग इस नर्गिस के फूल रूपी गुलदस्ते को एक टोकरी में रखते हैं. फूल के इस गुच्छे को पकड़ने के लिए मैदान में हजारों की भीड़ जमा होती है. नाचने के दौरान फूलों का ये गुच्छा जिस की गोद में गिरता है उसे भाग्यशाली समझा जाता है. माना जाता है कि इससे उसके जीवन में खुशहाली आती है.

fagli festival of kullu
मुखौटे पहन कर देवता के साथ नाचता व्यक्ति

फागली उत्सव में यूं तो हर कोई भाग ले सकता है, लेकिन इस फूल को पकड़ने में स्थानीय बाशिंदों को ही महत्व दिया जाता है. वर्ष 2019 के फागली उत्सव के दौरान नर्गिस का फूल दूसरी घाटी के एक युवक के हाथ में आ गया. इस पर विवाद हो गया और उसे 5100 रुपये जुर्माना देना पड़ा था.

पढ़ें-नो टू सिंगल यूज प्लास्टिक : प. बंगाल में जूट उत्पादकों की उम्मीदों को लगे पंख

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के हर क्षेत्र के अपने-अपने त्यौहार और परंपराएं हैं. इन त्यौहारों और परंपराओं की रीत सदियों से चलती आ रही है. ऐसा ही एक उत्सव है फागली. ये उत्सव कुल्लू-मनाली सहित लाहौल स्पीति में मनाया जाता है. इस उत्सव को लोग अपने तौर तरीके से मनाते हैं. गढ़सा, बंजार, पल्दी घाटी के लोग अलग-अलग तरीके से फागली मनाते हैं.

फाल्गुन संक्रांति पर तीन और पांच दिन तक मनाया जाने वाला फागली उत्सव विष्णु-नारायण भगवान के दस अवतारों की लीलाओं का प्रतीक है. उत्सव में लोग परंपरागत तरीके से ढोल, नगाड़े, करनाह्ली, शहनाई, डफला, भाणा, कांसा और काहुली की कलरव ध्वनि के साथ गाना गाते हैं. साथ ही देवता विष्णु-नारायण की पालकी के साथ देवक्रीड़ा में भी भाग लेते हैं.

अद्भुत हिमाचल पर देखें ईटीवी भारत की रिपोर्ट

फाल्गुन माह से ही इसका नाम फागली पड़ा है. लोगों का मानना है कि माघ माह में देवता स्वर्ग प्रवास पर जाते हैं. फाल्गुन माह की सक्रांति के बाद देवता स्वर्ग प्रवास से लौटना शुरू करते हैं. स्वर्ग प्रवास से लौटने के बाद देवता आने वाले साल के लिए भविष्यवाणी करते हैं, जिसे बरसोआ कहा जाता है, यानि बार्षिक फल.

fagli festival of kullu
फागली में मुखौटा पहने व्यक्ति

बरसोआ के दौरान होने वाला मुखौटा नृत्य आकर्षण का केंद्र रहता है. इस दौरान कुछ लोगों द्वारा राक्षसों को खुश करने के लिए मुंह पर मुखौटा और शरीर पर शरूली नाम की घास पहनकर नृत्य किया जाता है. नृत्य देखने के लिए पूरे गांव के लोग इकट्ठे होते हैं. इस दौरान अश्लील गालियां भी दी जाती हैं.

सुबह के समय पूरा गांव हाथ में मशाल और मुखौटा लिए इकठ्ठा होता है. इस दौरान मुखौटा पहने लोग राक्षसों और बुरी शक्तियों को गालियां देकर गांव से बाहर खदेड़ देते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. इसके साथ लोग आग जलाकर नृत्य करते हैं.

fagli festival of kullu
मुखौटा नृत्य

कई स्थानों पर महिलाएं भी अश्लील गालियां गीतों के माध्यम से गाती हैं. यह उत्सव नैहरा, कटूरणी, परखोल, रांगचा, पाली और थुनाड़ी और कुल्लू के चेथर, बलागाड़, जीभी सहित अन्य गांवों में मनाया जाता है. फागली में लोग बुराई पर अच्छाई, पाप पर पुण्य, अधर्म पर धर्म की विजय की गाथाओं का गुणगान करते हैं.

fagli festival of kullu
गालियां देकर भगाई जाती है बुरी शक्तियां

उत्सव के अंतिम दिन नर्गिस के फूल फेंकने की परंपरा भी निभाई जाती है. स्थानीय भाषा में नर्गिस के फूल को बीठ कहा जाता है. फागली उत्सव में यह अनूठी परंपरा सबको अपनी ओर आकर्षित करती है. फागली उत्सव में मुखौटा पहने लोग इस नर्गिस के फूल रूपी गुलदस्ते को एक टोकरी में रखते हैं. फूल के इस गुच्छे को पकड़ने के लिए मैदान में हजारों की भीड़ जमा होती है. नाचने के दौरान फूलों का ये गुच्छा जिस की गोद में गिरता है उसे भाग्यशाली समझा जाता है. माना जाता है कि इससे उसके जीवन में खुशहाली आती है.

fagli festival of kullu
मुखौटे पहन कर देवता के साथ नाचता व्यक्ति

फागली उत्सव में यूं तो हर कोई भाग ले सकता है, लेकिन इस फूल को पकड़ने में स्थानीय बाशिंदों को ही महत्व दिया जाता है. वर्ष 2019 के फागली उत्सव के दौरान नर्गिस का फूल दूसरी घाटी के एक युवक के हाथ में आ गया. इस पर विवाद हो गया और उसे 5100 रुपये जुर्माना देना पड़ा था.

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Intro:फागली बाईट
धनेश गौतम, पुजारी देवता बड़ा छमाहुBody:फागली बाईट
धनेश गौतम, पुजारी देवता बड़ा छमाहुConclusion:

फागली बाईट
धनेश गौतम, पुजारी देवता बड़ा छमाहु
Last Updated : Feb 28, 2020, 5:00 PM IST
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