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अगले छह माह हर दिन होगी छह हजार बच्चों की अतिरिक्त मौत: रिपोर्ट

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 118 विकसित और विकासशील देशों में अगले छह महीनों में हर रोज छह हजार अतिरिक्त बच्चों की मौत होगी. चिंता की बात यह है कि इन देशों की टॉप टेन सूची में भारत का नाम भी शामिल है.

प्रतीकात्मक चित्र
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Published : May 19, 2020, 4:53 PM IST

Updated : May 19, 2020, 8:47 PM IST

हैदराबाद : कोरोना महामारी जीवन, आजीविका और मानवता की आशाओं और आकांक्षाओं और उनकी अर्थव्यवस्था और वाणिज्यिक क्षेत्रों को चकनाचूर करके भयावह देशों को प्रभावित कर रही है. यूनिसेफ ने हाल ही में चेतावनी दी है कि भारत के भविष्य पर कोरोना का भयानक प्रभाव होगा.

पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के प्रसार के मद्देनजर मलेरिया और पोलियो जैसी बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया था.

यूनिसेफ की चिंता बच्चों पर कोरोना वायरस के प्रभाव की भयावह तस्वीर का अनावरण कर रही है. लॉकडाउन और कर्फ्यू के कारण, लोगों की नौकरियां चली गईं और सामान्य स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. परिवहन सेवाएं भी ठप हैं. ऐसे में यूनिसेफ की चिंता इस आशंका को उजागर करती है कि इन कारणों से माता-पिता की आय बहुत प्रभावित होगी, जिसके परिणामस्वरूप कुपोषण और भुखमरी के कारण बच्चों की मृत्यु हो सकती है.

एक अनुमान के मुताबिक 118 विकसित और विकासशील देशों में अगले छह माह में हर रोज छह हजार अतिरिक्त बच्चों की मौत होगी.

चिंता की बात यह है कि इन देशों की टॉप टेन सूची में भारत का नाम भी शामिल है. इस सूची में भारत के अलावा इथियोपिया, कांगो, तंजानिया, नाइजीरिया, युगांडा, पाकिस्तान, आदि को शामिल किया गया है .

रिपोर्ट के अनुसार, यह बच्चे पांच वर्ष कम ही जी सकेंगे. यह देशों की जिम्मेदारी है कि वह उचित पोषण और बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं के बिना बच्चों की असामयिक मृत्यु को रोकें.

यूनिसेफ ने चेतावनी है कि अगर समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और खराब हो जाएगी .... भारत सहित सौ अन्य देशों को सतर्क हो जाना चाहिए!

कोविड 19 संकट के कारण बाल स्वास्थ्य सेवा में और गिरावट आग जैसी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और द लैंसेट जर्नल के हालिया संयुक्त अध्ययन ने घोषित किया है कि मध्य अफ्रीका, चाड और सोमालिया जैसे देशों में बाल स्वास्थ्य सेवा बहुत खराब है. 180 देशों की सूची में भारत को 131वें स्थान पर है!

पढ़ें- भारत में प्रति एक लाख की आबादी पर कोविड-19 के 7.1 मामले : स्वास्थ्य मंत्रालय

सरकार के इस दावे के बावजूद कि यह कुपोषण की स्थिति को नियंत्रित कर रहा है. हर साल अब भी सात लाख बच्चों की मौत हो रही है.

यह 'पोषण अभियान' (कुपोषण को खत्म करने के लिए शुरू की गई एक प्रमुख परियोजना) की महत्वपूर्ण समीक्षा के लिए समय है और साढ़े चार दशकों तक संचालन में एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना की स्थिति और खामियों को दूर करना होगा.

रिपोर्ट के मुताबिक 177 देशों के 130 करोड़ से अधिक बच्चे वर्तमान में स्कूलों में नहीं जा पा रहे हैं.

स्कूलों में भोजन से वंचित बच्चों की संख्या करोड़ों में है! 37 देशों के लगभग 12 करोड़ बच्चे खसरा का टीका लगवाने में असमर्थता हैं, जो वर्तमान कोरोना महामारी के कारण होने वाले व्यापक जोखिमों का खुलासा करता है. देश में 40 फीसदी बच्चों को वैक्सीन और विटामिन तक नहीं मिल पाती है. इस स्थिति में बाल मृत्यु दर को रोकने के लिए सरकारों द्वारा की गई देखभाल देश का भविष्य तय करेगी.

सतत मानव विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाल कल्याण एक प्रमुख तत्व है. सिस्टम को बनाए रखने, बच्चों को संरक्षित करने के अलावा, भविष्य की पीढ़ी भी सरकारों का प्रमुख कर्तव्य और जिम्मेदारी है!

हैदराबाद : कोरोना महामारी जीवन, आजीविका और मानवता की आशाओं और आकांक्षाओं और उनकी अर्थव्यवस्था और वाणिज्यिक क्षेत्रों को चकनाचूर करके भयावह देशों को प्रभावित कर रही है. यूनिसेफ ने हाल ही में चेतावनी दी है कि भारत के भविष्य पर कोरोना का भयानक प्रभाव होगा.

पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के प्रसार के मद्देनजर मलेरिया और पोलियो जैसी बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया था.

यूनिसेफ की चिंता बच्चों पर कोरोना वायरस के प्रभाव की भयावह तस्वीर का अनावरण कर रही है. लॉकडाउन और कर्फ्यू के कारण, लोगों की नौकरियां चली गईं और सामान्य स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. परिवहन सेवाएं भी ठप हैं. ऐसे में यूनिसेफ की चिंता इस आशंका को उजागर करती है कि इन कारणों से माता-पिता की आय बहुत प्रभावित होगी, जिसके परिणामस्वरूप कुपोषण और भुखमरी के कारण बच्चों की मृत्यु हो सकती है.

एक अनुमान के मुताबिक 118 विकसित और विकासशील देशों में अगले छह माह में हर रोज छह हजार अतिरिक्त बच्चों की मौत होगी.

चिंता की बात यह है कि इन देशों की टॉप टेन सूची में भारत का नाम भी शामिल है. इस सूची में भारत के अलावा इथियोपिया, कांगो, तंजानिया, नाइजीरिया, युगांडा, पाकिस्तान, आदि को शामिल किया गया है .

रिपोर्ट के अनुसार, यह बच्चे पांच वर्ष कम ही जी सकेंगे. यह देशों की जिम्मेदारी है कि वह उचित पोषण और बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं के बिना बच्चों की असामयिक मृत्यु को रोकें.

यूनिसेफ ने चेतावनी है कि अगर समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और खराब हो जाएगी .... भारत सहित सौ अन्य देशों को सतर्क हो जाना चाहिए!

कोविड 19 संकट के कारण बाल स्वास्थ्य सेवा में और गिरावट आग जैसी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और द लैंसेट जर्नल के हालिया संयुक्त अध्ययन ने घोषित किया है कि मध्य अफ्रीका, चाड और सोमालिया जैसे देशों में बाल स्वास्थ्य सेवा बहुत खराब है. 180 देशों की सूची में भारत को 131वें स्थान पर है!

पढ़ें- भारत में प्रति एक लाख की आबादी पर कोविड-19 के 7.1 मामले : स्वास्थ्य मंत्रालय

सरकार के इस दावे के बावजूद कि यह कुपोषण की स्थिति को नियंत्रित कर रहा है. हर साल अब भी सात लाख बच्चों की मौत हो रही है.

यह 'पोषण अभियान' (कुपोषण को खत्म करने के लिए शुरू की गई एक प्रमुख परियोजना) की महत्वपूर्ण समीक्षा के लिए समय है और साढ़े चार दशकों तक संचालन में एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना की स्थिति और खामियों को दूर करना होगा.

रिपोर्ट के मुताबिक 177 देशों के 130 करोड़ से अधिक बच्चे वर्तमान में स्कूलों में नहीं जा पा रहे हैं.

स्कूलों में भोजन से वंचित बच्चों की संख्या करोड़ों में है! 37 देशों के लगभग 12 करोड़ बच्चे खसरा का टीका लगवाने में असमर्थता हैं, जो वर्तमान कोरोना महामारी के कारण होने वाले व्यापक जोखिमों का खुलासा करता है. देश में 40 फीसदी बच्चों को वैक्सीन और विटामिन तक नहीं मिल पाती है. इस स्थिति में बाल मृत्यु दर को रोकने के लिए सरकारों द्वारा की गई देखभाल देश का भविष्य तय करेगी.

सतत मानव विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाल कल्याण एक प्रमुख तत्व है. सिस्टम को बनाए रखने, बच्चों को संरक्षित करने के अलावा, भविष्य की पीढ़ी भी सरकारों का प्रमुख कर्तव्य और जिम्मेदारी है!

Last Updated : May 19, 2020, 8:47 PM IST
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