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द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं वर्षगांठ, जानें क्या है न्यूरेमबर्ग परीक्षण

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों ने अत्याचार, नरसंहार और कई बर्बर अपराध किए. युद्ध के बाद शीर्ष जीवित जर्मन नेताओं पर नाजी जर्मनी के अपराधों को लेकर मुकदमा चलाया गया. मित्र देश जैसे ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य के न्यायाधीशों ने नाजी अपराधियों की सुनवाई की अध्यक्षता की. पढ़ें यह खास रिपोर्ट...

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Published : Sep 2, 2020, 9:26 AM IST

Updated : Sep 2, 2020, 11:27 AM IST

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द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं वर्षगांठ (कॉन्सेप्ट इमेज)

हैदराबाद : द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों ने अत्याचार, नरसंहार और कई बर्बर अपराध किए. दूसरे विश्व युद्ध के अंत में न्यूरेमबर्ग परीक्षणों द्वारा इन अमानवीय कृत्यों के लिए जिम्मेदार अपराधियों को गिरफ्त में लेने का प्रयास किया गया.

न्यूरेमबर्ग परीक्षण
युद्ध के बाद शीर्ष जीवित जर्मन नेताओं पर नाजी जर्मनी के अपराधों को लेकर मुकदमा चलाया गया. उनका परीक्षण जर्मनी के न्यूरेमबर्ग में एक अंतरराष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण (आईएमटी) के समक्ष आयोजित किया गया.

मित्र देश जैसे ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य के न्यायाधीशों ने 22 प्रमुख नाजी अपराधियों की सुनवाई की अध्यक्षता की.

संयुक्त राज्य अमेरिका ने जर्मन सरकार, सैन्य और एसएस के उच्च-स्तरीय अधिकारियों और चिकित्सा पेशेवरों और प्रमुख उद्योगपतियों के न्यूरेमबर्ग में 12 अतिरिक्त परीक्षण किए.

न्यूरेमबर्ग में 999 अपराधियों का परिक्षण किया गया. इनमें से 161 को दोषी ठहराया गया और 37 को मौत की सजा दी गई. इनमें से 12 का परिक्षण अंतरराष्ट्रीय (आईएमटी) द्वारा किया गया था.

होलोकॉस्ट अपराधों को कुछ परीक्षणों में शामिल किया गया था, लेकिन केवल अमेरिकी परीक्षण का प्रमुख ध्यान आइंसटैगग्रुप्पेन (Einsatzgruppen) नेताओं पर था.

आइंसटैगग्रुप्पेन (Einsatzgruppen) 'परिनियोजन समूह' या 'टास्क फोर्स' नाजी जर्मनी के शुट्जस्टाफेल (Schutzstaffel) (एसएस) अर्धसैनिक मृत्यु दस्ते थे, जो मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के दौरान जर्मन के कब्जे वाले यूरोप में हत्याओं के लिए जिम्मेदार थे.

प्रतिवादियों ने खुद पर लगाए गए अपराधों के आरोपों से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वह इसके लिए जिम्मेदार नहीं थे, क्योंकि वह उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन कर रहे थे.

वहीं, एडॉल्फ हिटलर ने युद्ध के अंतिम दिनों में आत्महत्या कर ली थी. दूसरी ओर कई और अन्य अपराधियों पर कभी मुकदमा नहीं चला. सैकड़ों लोग संयुक्त राज्य अमेरिका आ गए. जर्मनी और कई अन्य देशों में नाजियों का परीक्षण जारी रहा.

साइमन विसेन्थल (Simon Wiesenthal) ने एडोल्फ इचमैन (Adolf Eichmann) के बारे में युद्ध अपराध जांचकर्ताओं के लिए नेतृत्व किया. लाखों यहूदियों के निर्वासन की योजना बनाने और उनकी मदद करने वाले इचमैन को इजरायल में परीक्षण के लिए लाया गया.

इसके साथ ही सैकड़ों गवाहों का दुनियाभर में पीछा किया गया. साल 1962 में इचमैन (Eichmann) को दोषी पाया गया और उन्हें मौत की सजा दी गई.

प्रमुख तिथियां
8 अगस्त, 1945 : अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ट्रिब्यूनल (आईएमटी) के चार्टर ने लंदन सम्मेलन में घोषणा की.

6 अक्टूबर, 1945 : प्रमुख नाजी अधिकारियों को युद्ध अपराधों के लिए प्रेरित किया गया.

अंतरराष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण (आईएमटी) के चार मुख्य अभियोजक रॉबर्ट एच जैक्सन (संयुक्त राज्य अमेरिका), फ्रेंकोइस डे मेन्थोन (फ्रांस), रोमन ए रुडेंको (सोवियत संघ) और सर हार्टले शॉक्रॉस (ग्रेट ब्रिटेन) ने 24 नाजी अधिकारियों पर आरोप लगाए.

1 अक्टूबर, 1946

न्यूरेमबर्ग में फैसला :
216 अदालत के सत्रों के बाद, 1 अक्टूबर, 1946 को मूल 24 प्रतिवादियों में से 22 पर फैसले को सौंप दिया गया था. आईएमटी ने अपने फैसले की घोषणा की.

तीन प्रतिवादियों को किया गया बरी :
हेजलमार शख्त (Hjalmar Schacht), फ्रांज वॉन पापेन (Franz von Papen) और हंस फ्रिट्जशे (Hans Fritzsche) इसमें शामिल थे.

वहीं चार को 10 से 20 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाई गई. इसमें कार्ल डोनिट्ज (Karl Dönitz), बाल्डुर वॉन शिरच (Baldur von Schirach), अल्बर्ट स्पीयर (Albert Speer), और कोंस्टेंटिन वॉन न्यूरथ (Konstantin von Neurath) शामिल थे.

आजीवन कारावास की सजा :
रुडोल्फ हेस (Rudolf Hess), वाल्थर फंक (Walther Funk) और एरच राएर (Erich Raeder) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

दूसरी ओर बचाव पक्ष के 12 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. मार्टिन बोरमैन (Martin Bormann) और हरमन गॉरिंग (Hermann Goring) को मौत की सजा सुनाई गई. वहीं हरमन गॉरिंग ने फांसी दिए जाने से पहले आत्महत्या कर ली.

हैदराबाद : द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों ने अत्याचार, नरसंहार और कई बर्बर अपराध किए. दूसरे विश्व युद्ध के अंत में न्यूरेमबर्ग परीक्षणों द्वारा इन अमानवीय कृत्यों के लिए जिम्मेदार अपराधियों को गिरफ्त में लेने का प्रयास किया गया.

न्यूरेमबर्ग परीक्षण
युद्ध के बाद शीर्ष जीवित जर्मन नेताओं पर नाजी जर्मनी के अपराधों को लेकर मुकदमा चलाया गया. उनका परीक्षण जर्मनी के न्यूरेमबर्ग में एक अंतरराष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण (आईएमटी) के समक्ष आयोजित किया गया.

मित्र देश जैसे ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य के न्यायाधीशों ने 22 प्रमुख नाजी अपराधियों की सुनवाई की अध्यक्षता की.

संयुक्त राज्य अमेरिका ने जर्मन सरकार, सैन्य और एसएस के उच्च-स्तरीय अधिकारियों और चिकित्सा पेशेवरों और प्रमुख उद्योगपतियों के न्यूरेमबर्ग में 12 अतिरिक्त परीक्षण किए.

न्यूरेमबर्ग में 999 अपराधियों का परिक्षण किया गया. इनमें से 161 को दोषी ठहराया गया और 37 को मौत की सजा दी गई. इनमें से 12 का परिक्षण अंतरराष्ट्रीय (आईएमटी) द्वारा किया गया था.

होलोकॉस्ट अपराधों को कुछ परीक्षणों में शामिल किया गया था, लेकिन केवल अमेरिकी परीक्षण का प्रमुख ध्यान आइंसटैगग्रुप्पेन (Einsatzgruppen) नेताओं पर था.

आइंसटैगग्रुप्पेन (Einsatzgruppen) 'परिनियोजन समूह' या 'टास्क फोर्स' नाजी जर्मनी के शुट्जस्टाफेल (Schutzstaffel) (एसएस) अर्धसैनिक मृत्यु दस्ते थे, जो मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के दौरान जर्मन के कब्जे वाले यूरोप में हत्याओं के लिए जिम्मेदार थे.

प्रतिवादियों ने खुद पर लगाए गए अपराधों के आरोपों से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वह इसके लिए जिम्मेदार नहीं थे, क्योंकि वह उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन कर रहे थे.

वहीं, एडॉल्फ हिटलर ने युद्ध के अंतिम दिनों में आत्महत्या कर ली थी. दूसरी ओर कई और अन्य अपराधियों पर कभी मुकदमा नहीं चला. सैकड़ों लोग संयुक्त राज्य अमेरिका आ गए. जर्मनी और कई अन्य देशों में नाजियों का परीक्षण जारी रहा.

साइमन विसेन्थल (Simon Wiesenthal) ने एडोल्फ इचमैन (Adolf Eichmann) के बारे में युद्ध अपराध जांचकर्ताओं के लिए नेतृत्व किया. लाखों यहूदियों के निर्वासन की योजना बनाने और उनकी मदद करने वाले इचमैन को इजरायल में परीक्षण के लिए लाया गया.

इसके साथ ही सैकड़ों गवाहों का दुनियाभर में पीछा किया गया. साल 1962 में इचमैन (Eichmann) को दोषी पाया गया और उन्हें मौत की सजा दी गई.

प्रमुख तिथियां
8 अगस्त, 1945 : अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ट्रिब्यूनल (आईएमटी) के चार्टर ने लंदन सम्मेलन में घोषणा की.

6 अक्टूबर, 1945 : प्रमुख नाजी अधिकारियों को युद्ध अपराधों के लिए प्रेरित किया गया.

अंतरराष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण (आईएमटी) के चार मुख्य अभियोजक रॉबर्ट एच जैक्सन (संयुक्त राज्य अमेरिका), फ्रेंकोइस डे मेन्थोन (फ्रांस), रोमन ए रुडेंको (सोवियत संघ) और सर हार्टले शॉक्रॉस (ग्रेट ब्रिटेन) ने 24 नाजी अधिकारियों पर आरोप लगाए.

1 अक्टूबर, 1946

न्यूरेमबर्ग में फैसला :
216 अदालत के सत्रों के बाद, 1 अक्टूबर, 1946 को मूल 24 प्रतिवादियों में से 22 पर फैसले को सौंप दिया गया था. आईएमटी ने अपने फैसले की घोषणा की.

तीन प्रतिवादियों को किया गया बरी :
हेजलमार शख्त (Hjalmar Schacht), फ्रांज वॉन पापेन (Franz von Papen) और हंस फ्रिट्जशे (Hans Fritzsche) इसमें शामिल थे.

वहीं चार को 10 से 20 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाई गई. इसमें कार्ल डोनिट्ज (Karl Dönitz), बाल्डुर वॉन शिरच (Baldur von Schirach), अल्बर्ट स्पीयर (Albert Speer), और कोंस्टेंटिन वॉन न्यूरथ (Konstantin von Neurath) शामिल थे.

आजीवन कारावास की सजा :
रुडोल्फ हेस (Rudolf Hess), वाल्थर फंक (Walther Funk) और एरच राएर (Erich Raeder) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

दूसरी ओर बचाव पक्ष के 12 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. मार्टिन बोरमैन (Martin Bormann) और हरमन गॉरिंग (Hermann Goring) को मौत की सजा सुनाई गई. वहीं हरमन गॉरिंग ने फांसी दिए जाने से पहले आत्महत्या कर ली.

Last Updated : Sep 2, 2020, 11:27 AM IST
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