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देश के 57.3 फीसदी डॉक्टर फर्जी, केंद्र ने स्वीकार की WHO की रिपोर्ट

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Published : Aug 11, 2019, 1:28 PM IST

Updated : Sep 26, 2019, 3:26 PM IST

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक भगवान का रूप माने जाने वाले तकरीबन 57.3 प्रतिशत डॉक्टरों के पास फर्डी डिग्री है. WHO की इस रिपोर्ट को अब केंद्र भी स्वीकार कर चुका है. जानें इस संबंध में IMA अध्यक्ष ने ईटीवी भारत से बातचीत में क्या कुछ कहा...

केंद्र ने स्वीकार की WHO की रिपोर्ट

नई दिल्लीः केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट स्वीकार की है. इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि, भारत में 57.3 प्रतिशत ऐलोपैथिक डॉक्टरों के पास मेडिकल क्वालिफिकेशन नहीं है.

बता दें इससे पहले WHO ने रिपोर्ट जारी की थी कि, 57.3 प्रतिशत डॉक्टर फर्जी हैं. उस समय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को निराधार बताते हुए ठुकरा दिया था.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) विधेयक 2019 पर हाल ही में पूछे गए प्रश्न में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि वर्तमान में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने वाले 57.3 प्रतिशत कर्मियों के पास मेडिकल क्वालिफिकेशन नहीं है.

मंत्रालय ने आगे कहा कि अधिकांश ग्रामीण और गरीब आबादी को अच्छी गुणवत्ता वाली देखभाल से वंचित कर दिया जाता है, जिससे उनकी हालत बुरी हो जाती है. इस मुद्दे पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के पूर्व अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

IMA के पूर्व अध्यक्ष से ईटीवी भारत की खास बातचीत

विकास पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अग्रवाल ने कहा कि अगर सरकार सामुदायिक चिकित्सा देने वाले डॉक्टरों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने की अनुमति देती है तो स्थिति और भी खराब हो सकती है.

अग्रवाल ने कहा, सरकार कहती है कि डॉक्टर रूरल एरिया में जाने के लिए तैयार नहीं होते, लेकिन आईएमए इस बात को नहीं मानता. असल बात तो यह है कि सरकार उन्हें अच्छा पैसा नहीं देती. उन्होंने कहा 'सरकार को चाहिए कि डॉक्टरों को शहरी इलाकों से ज्यादा पैसा ग्रामीण इलाकों में दिया जाना चाहिए.'

अग्रवाल ने कहा, वास्तव में ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए. शहरी क्षेत्रों में पोस्टिंग से पहले ग्रामीण इलाकों में एक या डेढ़ साल तक डॉक्टरों की पोस्टिंग की जानी चाहिए.

पढ़ेंः वाह रे डॉक्टर साहब! सिर में लगी गोली, बिना निकाले पट्टी बांध भेज दिए घर

उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है. अगर पैप्सी और कोकाकोला देश के हर घर के कोने कोने में पहुंच सकती है तो फिर सरकार MBBS डॉक्टर क्यों नहीं दे सकती.

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल से 20 प्रतिशत डॉक्टरों ने चिकित्सा योग्यता हासिल की है. दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने भी पिछले साल WHO की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

नई दिल्लीः केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट स्वीकार की है. इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि, भारत में 57.3 प्रतिशत ऐलोपैथिक डॉक्टरों के पास मेडिकल क्वालिफिकेशन नहीं है.

बता दें इससे पहले WHO ने रिपोर्ट जारी की थी कि, 57.3 प्रतिशत डॉक्टर फर्जी हैं. उस समय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को निराधार बताते हुए ठुकरा दिया था.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) विधेयक 2019 पर हाल ही में पूछे गए प्रश्न में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि वर्तमान में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने वाले 57.3 प्रतिशत कर्मियों के पास मेडिकल क्वालिफिकेशन नहीं है.

मंत्रालय ने आगे कहा कि अधिकांश ग्रामीण और गरीब आबादी को अच्छी गुणवत्ता वाली देखभाल से वंचित कर दिया जाता है, जिससे उनकी हालत बुरी हो जाती है. इस मुद्दे पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के पूर्व अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

IMA के पूर्व अध्यक्ष से ईटीवी भारत की खास बातचीत

विकास पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अग्रवाल ने कहा कि अगर सरकार सामुदायिक चिकित्सा देने वाले डॉक्टरों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने की अनुमति देती है तो स्थिति और भी खराब हो सकती है.

अग्रवाल ने कहा, सरकार कहती है कि डॉक्टर रूरल एरिया में जाने के लिए तैयार नहीं होते, लेकिन आईएमए इस बात को नहीं मानता. असल बात तो यह है कि सरकार उन्हें अच्छा पैसा नहीं देती. उन्होंने कहा 'सरकार को चाहिए कि डॉक्टरों को शहरी इलाकों से ज्यादा पैसा ग्रामीण इलाकों में दिया जाना चाहिए.'

अग्रवाल ने कहा, वास्तव में ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए. शहरी क्षेत्रों में पोस्टिंग से पहले ग्रामीण इलाकों में एक या डेढ़ साल तक डॉक्टरों की पोस्टिंग की जानी चाहिए.

पढ़ेंः वाह रे डॉक्टर साहब! सिर में लगी गोली, बिना निकाले पट्टी बांध भेज दिए घर

उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है. अगर पैप्सी और कोकाकोला देश के हर घर के कोने कोने में पहुंच सकती है तो फिर सरकार MBBS डॉक्टर क्यों नहीं दे सकती.

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल से 20 प्रतिशत डॉक्टरों ने चिकित्सा योग्यता हासिल की है. दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने भी पिछले साल WHO की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

Intro:New Delhi: An accpetance that could certainly raise eye brows over India's health sector, Union Ministry of Health and Family Welfare has recently accepted the World Health Organisation (WHO) report that 57.3 percent of health practitioners practicising allopathic medicine in India do not have a medical qualification.


Body:Earlier, in 2016 the WHO had come out with a report that 57.3 percent doctors in India are bogus. The health ministry that time turned down the report saying it "baseless".

In a FAQ on National Medical Commission (NMC) Bill 2019 recently, the health ministry said that 57.3 percent personnel currently practicising allopathic medicine does not have a medical qualification.

The ministry further said that most of the rural and poor population is denied good quality care leaving them in the clutches of quacks.

Reacting over the development, Dr KK Aggarwal, former president of Indian Medical Association (IMA) told ETV Bharat that the situation will become worsen if the government allow community health service providers to practice modern medicine.

"In fact much emphasise should be given on rural areas. The doctors should be posted for one or one and half years to the rural areas before posting them in urban areas," said Aggarwal.

He cautioned that if the government go ahead with their idea of allowing community health providers to practice modern medicine, "it will be a serious matter of concern."


Conclusion:The WHO report had further said that hardly 20 percent doctors in rural areas have acquired medical qualifications.

Interestingly, the earlier health minister JP Nadda even last year had rejected the WHO report.

end.
Last Updated : Sep 26, 2019, 3:26 PM IST
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