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जम्मू-कश्मीर : साल 2019 के बाद बहुत कुछ बदल गया, देखें खास रिपोर्ट

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Published : Dec 28, 2019, 6:29 PM IST

Updated : Jan 9, 2020, 8:06 PM IST

जम्मू-कश्मीर के लिए 2019 बड़े बदलावों का वर्ष रहा. इस साल, 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर राज्य दो केंद्रशासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील हो गया. यह पहली बार हुआ, जब किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया हो.

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जम्मू कश्मीर

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर के लिए 2019 बड़े बदलावों का वर्ष रहा, जहां कुछ चीजें पहली बार हो रहीं थीं तो कुछ अंतिम बार. साथ ही गुजर रहे साल का सामना तमाम ऐसे प्रतिबंधों से हुआ, जो इससे पहले कभी नहीं लगाए गए थे.

बीते 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर राज्य से दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील हो गया. यह पहली बार हुआ, जब किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया हो.

यह कदम केंद्र के पांच अगस्त की घोषणा के अनुरूप उठाया गया, जिसमें अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को मिले विशेष दर्जे को वापस ले लेने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने की बात कही गई थी.

जम्मू कश्मीर में हुए बदलावों पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

14 फरवरी को हुआ आतंकी हमला, सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए
पूर्व में राज्य रहे जम्मू-कश्मीर ने 14 फरवरी को अब तक का सबसे बुरा आतंकवादी हमला भी देखा. सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे, जब जैश-ए-मोहम्मद के एक आत्मघाती हमलावर ने 100 किलोग्राम विस्फोटक लदे एक वाहन से पुलवामा में उनके बस में टक्कर मार दी थी.

पुलवामा घटना से देशभर में आक्रोश दिखा और केंद्र ने इन शहादतों का बदला लेने की प्रतिबद्धता जताई. 26 फरवरी को भारतीय वायु सेना के विमानों ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर हमला किया. 1971 के बाद से यह पहली बार था, जब भारत ने पाकिस्तान की सीमा में घुस कर हमला किया हो.

पाकिस्तानी वायु सेना ने इसका जवाब देने के लिए अगले दिन जम्मू-कश्मीर के भीतर हमले किए, लेकिन भारतीय वायु सेना ने त्वरित कार्रवाई की, जिससे दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच जबर्दस्त हवाई संघर्ष हुआ.

मिग 21 उड़ा रहे विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने पाकिस्तानी वायु सेना के कहीं उन्नत विमान एफ-16 को मार गिराया और पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंधक बना लिया था. हालांकि, दो दिन बाद उन्हें भारत को सौंप दिया गया.

हवाई संघर्ष में किसका पलड़ा भारी रहा, इस बात पर बहस जारी ही थी कि भारतीय वायु सेना ने 27 फरवरी को हेलीकॉप्टर में सफर कर रहे अपने छह अधिकारी खो दिए, जब वायु सेना के ही दो साथी अधिकारियों ने गलत पहचान कर उस हेलीकॉप्टर को मार गिराया.

पढ़ें- 2019 की सुर्खियां : असम NRC का अंतिम मसौदा प्रकाशित, 19 लाख लोग बाहर

पांच अगस्त को रद किए गए अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान
इस साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद करने का केंद्र का कदम अभूतपूर्व था और इसका मकसद दशकों पुराने अलगाववादी आंदोलन को खत्म करना था.

फैसले को लेकर किसी तरह की हिंसा न हो, खास कर कश्मीर में, इसके तहत केंद्र ने लोगों के आंदोलन और दूरसंचार प्रणालियों पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए.

राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह की ऐतिहासिक घोषणा से पहले लेह को छोड़ कर पूरे जम्मू-कश्मीर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था, जहां कोने-कोने में सुरक्षा बलों और पुलिस की तैनाती की गई. सेना ने भी इसमें मदद की और श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग की सुरक्षा का जिम्मा लिया.

डिजाइन फोटो
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तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित मुख्यधारा और अलगाववादी खेमे दोनों के सैकड़ों नेताओं को एहतियातन हिरासत में लिया गया. तीन बार मुख्यमंत्री रहे फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ बाद में लोक सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया.

पढ़ें- पाक ने तोड़ा सीजफायर, भारतीय सेना ने ढेर किए दुश्मन के 4 सैनिक

यह तकरीबन 60 वर्ष से ज्यादा के अंतर पर हुआ, जब जम्मू-कश्मीर सरकार के पूर्व प्रमुख या मौजूदा प्रमुख को अधिकारियों ने गिरफ्तार किया.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को 1953 में गिरफ्तार किया गया था, जब वह जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री थे - इस पद को 1965 में घटा कर मुख्यमंत्री का पद कर दिया था.

मुख्यधारा और अलगाववादी नेताओं दोनों के द्वारा जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के साथ छेड़छाड़ किए जाने के खिलाफ चेतावनी जारी किए जाने के चलते घाटी में और जम्मू क्षेत्र के पीर पंजाल पर्वतीय क्षेत्र के आस-पास के हिस्सों में हिंसा होने की आशंका थी.

सरकार ने कर्फ्यू लगाया और सख्ती से इसका पालन करवाया, इंटरनेट सेवाओं समेत संचार के सभी माध्यमों पर रोक लगा दी, केबल टीवी सेवाएं बंद करने के साथ ही सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद करवा दिया.

केंद्र के फैसले के मद्देनजर पथराव की सैकड़ों घटनाएं हुईं, लेकिन कर्फ्यू के सख्त क्रियान्वयन के चलते बड़ी संख्या में लोग एकत्र नहीं हो पाते थे और सुरक्षा बलों को बस स्थानीय प्रदर्शनों से निबटना पड़ता था.

जहां केंद्र ने अपनी मंशा को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया था, राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अगुआई में राज्य सरकार ने बीच में ही अमरनाथ यात्रा रोक दी और सभी गैर स्थानीय लोगों, पर्यटकों एवं मजूदरों आदि के लिए जल्द से जल्द घाटी छोड़ने का परामर्श जारी किया.

बड़े पैमाने पर हिंसा होने का सरकार का संदेश यूं ही नहीं था क्योंकि कश्मीर में 2008 से 2016 के बीच चार आंदोलन हुए हैं, जिसमें करीब 300 लोग मारे गए थे.

कश्मीर के लोगों ने इस बार अहिंसक और मौन प्रदर्शन का रास्ता चुना, जहां सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद करने के फैसले के 15 दिनों के भीतर लगभग पूरी घाटी से कर्फ्यू हटा लिया था वहीं कश्मीर में यह बंद लगभग 120 दिनों तक रहा.

पढ़ें- J-K : 'विलय दिवस' के दिन अब होगी छुट्टी, खत्म हुआ शेख अब्दुल्ला जयंती पर अवकाश

स्कूल एवं शैक्षणिक संस्थान इस अवधि में बंद रहे, लेकिन परीक्षाएं कार्यक्रम के मुताबिक हुईं.

इस साल कई चीजें पहली और आखिरी बार हुईं. सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर राज्य के अंतिम राज्यपाल बने.

गिरीश चंद्र मुर्मू 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पहले उप राज्यपाल बने. वहीं पूर्व नौकरशाह राधाकृष्ण माथुर लद्दाख के पहले उप राज्यपाल बने.

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर के लिए 2019 बड़े बदलावों का वर्ष रहा, जहां कुछ चीजें पहली बार हो रहीं थीं तो कुछ अंतिम बार. साथ ही गुजर रहे साल का सामना तमाम ऐसे प्रतिबंधों से हुआ, जो इससे पहले कभी नहीं लगाए गए थे.

बीते 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर राज्य से दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील हो गया. यह पहली बार हुआ, जब किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया हो.

यह कदम केंद्र के पांच अगस्त की घोषणा के अनुरूप उठाया गया, जिसमें अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को मिले विशेष दर्जे को वापस ले लेने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने की बात कही गई थी.

जम्मू कश्मीर में हुए बदलावों पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

14 फरवरी को हुआ आतंकी हमला, सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए
पूर्व में राज्य रहे जम्मू-कश्मीर ने 14 फरवरी को अब तक का सबसे बुरा आतंकवादी हमला भी देखा. सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे, जब जैश-ए-मोहम्मद के एक आत्मघाती हमलावर ने 100 किलोग्राम विस्फोटक लदे एक वाहन से पुलवामा में उनके बस में टक्कर मार दी थी.

पुलवामा घटना से देशभर में आक्रोश दिखा और केंद्र ने इन शहादतों का बदला लेने की प्रतिबद्धता जताई. 26 फरवरी को भारतीय वायु सेना के विमानों ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर हमला किया. 1971 के बाद से यह पहली बार था, जब भारत ने पाकिस्तान की सीमा में घुस कर हमला किया हो.

पाकिस्तानी वायु सेना ने इसका जवाब देने के लिए अगले दिन जम्मू-कश्मीर के भीतर हमले किए, लेकिन भारतीय वायु सेना ने त्वरित कार्रवाई की, जिससे दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच जबर्दस्त हवाई संघर्ष हुआ.

मिग 21 उड़ा रहे विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने पाकिस्तानी वायु सेना के कहीं उन्नत विमान एफ-16 को मार गिराया और पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंधक बना लिया था. हालांकि, दो दिन बाद उन्हें भारत को सौंप दिया गया.

हवाई संघर्ष में किसका पलड़ा भारी रहा, इस बात पर बहस जारी ही थी कि भारतीय वायु सेना ने 27 फरवरी को हेलीकॉप्टर में सफर कर रहे अपने छह अधिकारी खो दिए, जब वायु सेना के ही दो साथी अधिकारियों ने गलत पहचान कर उस हेलीकॉप्टर को मार गिराया.

पढ़ें- 2019 की सुर्खियां : असम NRC का अंतिम मसौदा प्रकाशित, 19 लाख लोग बाहर

पांच अगस्त को रद किए गए अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान
इस साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद करने का केंद्र का कदम अभूतपूर्व था और इसका मकसद दशकों पुराने अलगाववादी आंदोलन को खत्म करना था.

फैसले को लेकर किसी तरह की हिंसा न हो, खास कर कश्मीर में, इसके तहत केंद्र ने लोगों के आंदोलन और दूरसंचार प्रणालियों पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए.

राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह की ऐतिहासिक घोषणा से पहले लेह को छोड़ कर पूरे जम्मू-कश्मीर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था, जहां कोने-कोने में सुरक्षा बलों और पुलिस की तैनाती की गई. सेना ने भी इसमें मदद की और श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग की सुरक्षा का जिम्मा लिया.

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डिजाइन फोटो

तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित मुख्यधारा और अलगाववादी खेमे दोनों के सैकड़ों नेताओं को एहतियातन हिरासत में लिया गया. तीन बार मुख्यमंत्री रहे फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ बाद में लोक सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया.

पढ़ें- पाक ने तोड़ा सीजफायर, भारतीय सेना ने ढेर किए दुश्मन के 4 सैनिक

यह तकरीबन 60 वर्ष से ज्यादा के अंतर पर हुआ, जब जम्मू-कश्मीर सरकार के पूर्व प्रमुख या मौजूदा प्रमुख को अधिकारियों ने गिरफ्तार किया.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को 1953 में गिरफ्तार किया गया था, जब वह जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री थे - इस पद को 1965 में घटा कर मुख्यमंत्री का पद कर दिया था.

मुख्यधारा और अलगाववादी नेताओं दोनों के द्वारा जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के साथ छेड़छाड़ किए जाने के खिलाफ चेतावनी जारी किए जाने के चलते घाटी में और जम्मू क्षेत्र के पीर पंजाल पर्वतीय क्षेत्र के आस-पास के हिस्सों में हिंसा होने की आशंका थी.

सरकार ने कर्फ्यू लगाया और सख्ती से इसका पालन करवाया, इंटरनेट सेवाओं समेत संचार के सभी माध्यमों पर रोक लगा दी, केबल टीवी सेवाएं बंद करने के साथ ही सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद करवा दिया.

केंद्र के फैसले के मद्देनजर पथराव की सैकड़ों घटनाएं हुईं, लेकिन कर्फ्यू के सख्त क्रियान्वयन के चलते बड़ी संख्या में लोग एकत्र नहीं हो पाते थे और सुरक्षा बलों को बस स्थानीय प्रदर्शनों से निबटना पड़ता था.

जहां केंद्र ने अपनी मंशा को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया था, राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अगुआई में राज्य सरकार ने बीच में ही अमरनाथ यात्रा रोक दी और सभी गैर स्थानीय लोगों, पर्यटकों एवं मजूदरों आदि के लिए जल्द से जल्द घाटी छोड़ने का परामर्श जारी किया.

बड़े पैमाने पर हिंसा होने का सरकार का संदेश यूं ही नहीं था क्योंकि कश्मीर में 2008 से 2016 के बीच चार आंदोलन हुए हैं, जिसमें करीब 300 लोग मारे गए थे.

कश्मीर के लोगों ने इस बार अहिंसक और मौन प्रदर्शन का रास्ता चुना, जहां सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद करने के फैसले के 15 दिनों के भीतर लगभग पूरी घाटी से कर्फ्यू हटा लिया था वहीं कश्मीर में यह बंद लगभग 120 दिनों तक रहा.

पढ़ें- J-K : 'विलय दिवस' के दिन अब होगी छुट्टी, खत्म हुआ शेख अब्दुल्ला जयंती पर अवकाश

स्कूल एवं शैक्षणिक संस्थान इस अवधि में बंद रहे, लेकिन परीक्षाएं कार्यक्रम के मुताबिक हुईं.

इस साल कई चीजें पहली और आखिरी बार हुईं. सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर राज्य के अंतिम राज्यपाल बने.

गिरीश चंद्र मुर्मू 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पहले उप राज्यपाल बने. वहीं पूर्व नौकरशाह राधाकृष्ण माथुर लद्दाख के पहले उप राज्यपाल बने.

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पीटीआई-भाषा संवाददाता 17:6 HRS IST




             
  • कश्मीर के लिए 2019, एक साल में बदल गया बहुत कुछ



(एम इनायत जहांगीर)



श्रीनगर, 28 दिसंबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर के लिए 2019 बड़े बदलावों का वर्ष रहा जहां कुछ चीजें पहली बार हो रहीं थीं तो कुछ अंतिम बार। साथ ही इस साल इसका सामना तमाम ऐसे प्रतिबंधों से हुआ जो अब से पहले तक कभी नहीं लगाए गए थे।



इस साल, 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर राज्य से दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील हो गया। यह पहली बार हुआ जब किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया हो।



यह कदम केंद्र के पांच अगस्त की घोषणा के अनुरूप उठाया गया जिसमें अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को मिले विशेष दर्जे को वापस ले लेने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने की बात कही गई थी।



पूर्व में राज्य रहे जम्मू-कश्मीर ने 14 फरवरी को अब तक का सबसे बुरा आतंकवादी हमला भी देखा। सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे जब जैश-ए-मोहम्मद के एक आत्मघाती हमलावर ने 100 किलोग्राम विस्फोटक लदे एक वाहन से पुलवामा में उनके बस में टक्कर मार दी थी।



पुलवामा घटना से देश भर में आक्रोश दिखा और केंद्र ने इन शहादतों का बदला लेने की प्रतिबद्धता जताई। 26 फरवरी को भारतीय वायु सेना के विमानों ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर हमला किया। 1971 के बाद से यह पहली बार था जब भारत ने पाकिस्तान की सीमा में घुस कर हमला किया हो।



पाकिस्तानी वायु सेना ने इसका जवाब देने के लिए अगले दिन जम्मू-कश्मीर के भीतर हमले किए लेकिन भारतीय वायु सेना ने त्वरित कार्रवाई की जिससे दोनों वायुसेनाओं के बीच जबर्दस्त हवाई संघर्ष हुआ।



मिग 21 उड़ा रहे विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने पाकिस्तानी वायु सेना के कहीं उन्नत विमान एफ-16 को मार गिराया और पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंधक बना लिया था। हालांकि दो दिन बाद उन्हें भारत को सौंप दिया गया।



हवाई संघर्ष में किसका पलड़ा भारी रहा, इस बात पर बहस जारी ही थी कि भारतीय वायु सेना ने 27 फरवरी को हेलीकॉप्टर में सफर कर रहे अपने छह अधिकारी खो दिए जब वायु सेना के ही दो साथी अधिकारियों ने गलत पहचान कर उस हेलीकॉप्टर को मार गिराया।



अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करने का केंद्र का कदम अभूतपूर्व था और इसका मकसद दशकों पुराने अलगाववादी आंदोलन को खत्म करना था।



फैसले को लेकर किसी तरह की हिंसा न हो खास कर कश्मीर में, केंद्र ने लोगों के आंदोलन और दूरसंचार प्रणालियों पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए।



राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह की ऐतिहासिक घोषणा से पहले लेह को छोड़ कर पूरे जम्मू-कश्मीर को छावनी में तब्दील कर दिया गया था जहां कोने-कोने में सुरक्षा बलों और पुलिस की तैनाती की गई। सेना ने भी इसमें मदद की और श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग की सुरक्षा का जिम्मा लिया।



तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती मुख्यधारा और अलगाववादी खेमे दोनों के सैकड़ों नेताओं को एहतियातन हिरासत में लिया गया।



तीन बार मुख्यमंत्री रहे फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ बाद में लोक सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया।



यह तकरीबन 60 वर्ष से ज्यादा के अंतर पर हुआ जब जम्मू-कश्मीर सरकार के पूर्व प्रमुख या मौजूदा प्रमुख को अधिकारियों ने गिरफ्तार किया गया।



नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को 1953 में गिरफ्तार किया गया था जब वह जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री थे- इस पद को 1965 में घटा कर मुख्यमंत्री का पद कर दिया था।



मुख्यधारा और अलगाववादी नेताओं दोनों के द्वारा जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के साथ छेड़छाड़ किए जाने के खिलाफ चेतावनी जारी किए जाने के चलते घाटी में और जम्मू क्षेत्र के पीर पंजाल पर्वतीय क्षेत्र के आस-पास के हिस्सों में हिंसा होने की आशंका थी।



सरकार ने कर्फ्यू लगाया और सख्ती से इसका पालन करवाया, इंटरनेट सेवाओं समेत संचार के सभी माध्यमों पर रोक लगा दी, केबल टीवी सेवाएं बंद करने के साथ ही सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद करवा दिया।



केंद्र के फैसले के मद्देनजर पथराव की सैकड़ों घटनाएं हुईं लेकिन कर्फ्यू के सख्त क्रियान्वयन के चलते बड़ी संख्या में लोग एकत्र नहीं हो पाते थे और सुरक्षा बलों को बस स्थानीय प्रदर्शनों से निपटना पड़ता था।



जहां केंद्र ने अपनी मंशा को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया था, राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अगुवाई में राज्य सरकार ने बीच में ही अमरनाथ यात्रा रोक दी और सभी गैर स्थानीय लोगों, पर्यटकों एवं मजूदरों आदि के लिए जल्द से जल्द घाटी छोड़ने का परामर्श जारी किया।



बड़े पैमाने पर हिंसा होने का सरकार का संदेश यूं ही नहीं था क्योंकि कश्मीर में 2008 से 2016 के बीच चार आंदोलन हुए हैं जिसमें करीब 300 लोग मारे गए थे।



कश्मीर के लोगों ने इस बार अहिंसक और मौन प्रदर्शन का रास्ता चुना।



जहां सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द करने के फैसले के 15 दिन के भीतर लगभग पूरी घाटी से कर्फ्यू हटा लिया था वहीं कश्मीर में यहर बंद लगभग 120 दिनों तक रहा।



स्कूल एवं शैक्षणिक संस्थान इस अवधि में बंद रहे लेकिन परीक्षाएं कार्यक्रम के मुताबिक हुईं।



इस साल कई चीजें पहली और आखिरी बार हुईं। सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर राज्य के अंतिम राज्यपाल बने।



गिरीश चंद्र मुर्मू 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पहले उपराज्यपाल बने। वहीं पूर्व नौकरशाह राधाकृष्ण माथुर लद्दाख के उपराज्यपाल बने।


Conclusion:
Last Updated : Jan 9, 2020, 8:06 PM IST
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