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अयोध्या केस: SC में 14वें दिन की सुनवाई, हिंदू संस्था की दलील- बाबर ने नहीं दिया था मंदिर गिराने का आदेश - बाबर ने नहीं दिया मंदिर गिराने का आदेश

अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में 14वें दिन की सुनवाई हुई. इस दौरान एक पक्षकार ने दलील दी कि बाबर ने कभी भी अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मस्जिद बनाने के लिए मंदिरा गिराने का आदेश नहीं दिया था. पढ़ें पूरी खबर....

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 28, 2019, 10:42 PM IST

Updated : Sep 28, 2019, 4:10 PM IST

नई दिल्ली: एक हिंदू संस्था ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष दावा किया कि मुगल बादशाह बाबर न तो अयोध्या गया था और और न ही विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर 1528 में मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था.

एक मुस्लिम पार्टी द्वारा दायर मुकदमे में प्रतिवादी अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष बाबरनामा, हुमायूंनामा, अकबरनामा और तुजुक-ए-जहांगीरी जैसी ऐतिहासिक पुस्तकों का उल्लेख किया. संस्था ने कहा कि इनमें से किसी में भी बाबरी मस्जिद के अस्तित्व के का जिक्र नहीं किया गया है.

हिन्दू संस्था की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी एन मिश्रा ने दशकों पुराने मामले में हो रही सुनवाई में 14वें दिन कहा कि इन पुस्तकों, खासकर बाबरनामा में प्रथम मुगल बादशाह के सेनापति मीर बाकी द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण या मंदिर गिराए जाने का कोई जिक्र नहीं है.

श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति के सदस्य ब्रह्म विद्यानंद से बातचीत

मिश्रा ने पीठ से कहा कि बाबर अयोध्या नहीं गया था और इसलिए उसके पास 1528 में मंदिर के विध्वंस और मस्जिद के निर्माण का आदेश देने का कोई अवसर नहीं था. इसके अलावा, मीर बाक़ी नाम का कोई व्यक्ति उसका कमांडर नहीं था.

पढ़ें-SC में अयोध्या केस का 13वां दिनः निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि वह 'राम लला' के दावे का विरोध नहीं कर रहा

पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नाजेर भी शामिल हैं.

मिश्रा ने पीठ से कहा कि मीर बाकी अयोध्या पर आक्रमण का नेतृत्व करने वाला सेनापति नहीं था. इस पर पीठ ने उनसे सवाल किया कि वह इन ऐतिहासिक पुस्तकों का उल्लेख करके क्या साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.

मिश्रा ने कहा कि जहां तक मुसलमानों के मामले का सवाल है, बाबरनामा पहली ऐतिहासिक पुस्तक है और 'प्रतिवादी होने के नाते मैं उनके मामले को खारिज करना चाहता हूं. उन्होंने कहा कि हमारे मंदिर को मस्जिद घोषित किया जाए.'
उन्होंने कहा, 'अगर किसी इमारत को मस्जिद घोषित किया जाना है तो उन्हें यह साबित करना होगा कि बाबर वहां से वाकिफ था.'

मिश्रा ने कहा कि बाबरनामा बादशाह के जीवन के 18 वर्षों से संबंधित है, लेकिन उसमें अयोध्या में किसी मस्जिद के बारे में जिक्र नहीं करता. इसके अलावा जब तथाकथित मस्जिद का निर्माण करने का आदेश दिया गया था, उस समय बादशाह राजा आगरा में था. मिश्रा ने कहा, 'कोई आदमी झूठ बोल सकता है, लेकिन हालात झूठ नहीं बोलते.'

उन्होंने कहा कि बाबर ने अवध के मुस्लिम शासक इब्राहिम लोदी को पराजित किया और उसकी हत्या कर दी और फिर उसके भाई को क्षेत्र का कमांडर बना दिया. उन्होंने कहा कि यहां मुसलमानों ने कहा कि मीर बाकी बाबर का सेनापति था जो गलत है.

पढ़ें-अयोध्या मामला: पढ़ें 12वें दिन की सुनवाई में दी गई दलीलें

उन्होंने कहा कि जिन तथाकथित शिलालेखों में मस्जिद के अस्तित्व का जिक्र है, उन्हें सबसे पहले 1946 में देखा गया था जब एक मजिस्ट्रेट ने वहां का दौरा किया था और उसका कहना था कि शिलालेख फर्जी थे.

उसके बाद मिश्रा ने अबुल फजल की किताब आइन-ए-अकबरी का भी संदर्भ दिया और कहा कि 1576 में उसमें अयोध्या में रामकोट के बारे में लिखा गया जिसे हिंदुओं द्वारा भगवान राम के जन्म स्थान के रूप में पूजा जाता था.

उन्होंने कहा कि लेकिन इस किताब में अयोध्या में किसी मस्जिद के होने का जिक्र नहीं है.

मिश्रा ने कहा कि यह बात स्थापित है कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने नहीं बल्कि औरंगजेब ने कराया था और उसने मथुरा और काशी में मंदिरों को गिरवा दिया था. उन्होंने कहा कि दिवानी मामले में यह प्रतिवादी का कर्तव्य है कि वह वादी की याचिका को असत्य प्रमाणित करे.

वकील ने कहा कि गलत दलीलों को लेकर वह मुकदमा खारिज करने की मांग कर रहे हैं.

पढ़ें-अयोध्या केस : सुप्रीम कोर्ट में 11वें दिन की दलीलें, अब 26 अगस्त को सुनवाई

उन्होंने कहा कि रामचरित मानस लिखने वाले तुलसी दास समकालीन थे लेकिन उन्होंने बाबरी मस्जिद के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है. बता दें, मामले में गुरूवार को भी सुनवाई होगी.

नई दिल्ली: एक हिंदू संस्था ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष दावा किया कि मुगल बादशाह बाबर न तो अयोध्या गया था और और न ही विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर 1528 में मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था.

एक मुस्लिम पार्टी द्वारा दायर मुकदमे में प्रतिवादी अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष बाबरनामा, हुमायूंनामा, अकबरनामा और तुजुक-ए-जहांगीरी जैसी ऐतिहासिक पुस्तकों का उल्लेख किया. संस्था ने कहा कि इनमें से किसी में भी बाबरी मस्जिद के अस्तित्व के का जिक्र नहीं किया गया है.

हिन्दू संस्था की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी एन मिश्रा ने दशकों पुराने मामले में हो रही सुनवाई में 14वें दिन कहा कि इन पुस्तकों, खासकर बाबरनामा में प्रथम मुगल बादशाह के सेनापति मीर बाकी द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण या मंदिर गिराए जाने का कोई जिक्र नहीं है.

श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति के सदस्य ब्रह्म विद्यानंद से बातचीत

मिश्रा ने पीठ से कहा कि बाबर अयोध्या नहीं गया था और इसलिए उसके पास 1528 में मंदिर के विध्वंस और मस्जिद के निर्माण का आदेश देने का कोई अवसर नहीं था. इसके अलावा, मीर बाक़ी नाम का कोई व्यक्ति उसका कमांडर नहीं था.

पढ़ें-SC में अयोध्या केस का 13वां दिनः निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि वह 'राम लला' के दावे का विरोध नहीं कर रहा

पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नाजेर भी शामिल हैं.

मिश्रा ने पीठ से कहा कि मीर बाकी अयोध्या पर आक्रमण का नेतृत्व करने वाला सेनापति नहीं था. इस पर पीठ ने उनसे सवाल किया कि वह इन ऐतिहासिक पुस्तकों का उल्लेख करके क्या साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.

मिश्रा ने कहा कि जहां तक मुसलमानों के मामले का सवाल है, बाबरनामा पहली ऐतिहासिक पुस्तक है और 'प्रतिवादी होने के नाते मैं उनके मामले को खारिज करना चाहता हूं. उन्होंने कहा कि हमारे मंदिर को मस्जिद घोषित किया जाए.'
उन्होंने कहा, 'अगर किसी इमारत को मस्जिद घोषित किया जाना है तो उन्हें यह साबित करना होगा कि बाबर वहां से वाकिफ था.'

मिश्रा ने कहा कि बाबरनामा बादशाह के जीवन के 18 वर्षों से संबंधित है, लेकिन उसमें अयोध्या में किसी मस्जिद के बारे में जिक्र नहीं करता. इसके अलावा जब तथाकथित मस्जिद का निर्माण करने का आदेश दिया गया था, उस समय बादशाह राजा आगरा में था. मिश्रा ने कहा, 'कोई आदमी झूठ बोल सकता है, लेकिन हालात झूठ नहीं बोलते.'

उन्होंने कहा कि बाबर ने अवध के मुस्लिम शासक इब्राहिम लोदी को पराजित किया और उसकी हत्या कर दी और फिर उसके भाई को क्षेत्र का कमांडर बना दिया. उन्होंने कहा कि यहां मुसलमानों ने कहा कि मीर बाकी बाबर का सेनापति था जो गलत है.

पढ़ें-अयोध्या मामला: पढ़ें 12वें दिन की सुनवाई में दी गई दलीलें

उन्होंने कहा कि जिन तथाकथित शिलालेखों में मस्जिद के अस्तित्व का जिक्र है, उन्हें सबसे पहले 1946 में देखा गया था जब एक मजिस्ट्रेट ने वहां का दौरा किया था और उसका कहना था कि शिलालेख फर्जी थे.

उसके बाद मिश्रा ने अबुल फजल की किताब आइन-ए-अकबरी का भी संदर्भ दिया और कहा कि 1576 में उसमें अयोध्या में रामकोट के बारे में लिखा गया जिसे हिंदुओं द्वारा भगवान राम के जन्म स्थान के रूप में पूजा जाता था.

उन्होंने कहा कि लेकिन इस किताब में अयोध्या में किसी मस्जिद के होने का जिक्र नहीं है.

मिश्रा ने कहा कि यह बात स्थापित है कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने नहीं बल्कि औरंगजेब ने कराया था और उसने मथुरा और काशी में मंदिरों को गिरवा दिया था. उन्होंने कहा कि दिवानी मामले में यह प्रतिवादी का कर्तव्य है कि वह वादी की याचिका को असत्य प्रमाणित करे.

वकील ने कहा कि गलत दलीलों को लेकर वह मुकदमा खारिज करने की मांग कर रहे हैं.

पढ़ें-अयोध्या केस : सुप्रीम कोर्ट में 11वें दिन की दलीलें, अब 26 अगस्त को सुनवाई

उन्होंने कहा कि रामचरित मानस लिखने वाले तुलसी दास समकालीन थे लेकिन उन्होंने बाबरी मस्जिद के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है. बता दें, मामले में गुरूवार को भी सुनवाई होगी.

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SC-AYODHYA
Babur neither visited Ayodhya nor constructed mosque by demolishing temple: Hindu body tells SC
By Sanjeev Kumar
         New Delhi, Aug 28 (PTI) Mughal emperor Babur neither visited Ayodhya nor ordered demolition of the temple to construct a mosque in 1528 at the disputed Ram Janmbhoomi-Babri masjid site, a Hindu body claimed before the Supreme Court on Wednesday.
         'Akhil Bhartiya Sri Ram Janam Bhoomi Punarudhar Samiti', a defendant in a lawsuit filed by a Muslim party in the case, referred to the historical books like 'Tuzuk-i-Baburi or Baburnama', 'Humayunnama', 'Akbarnama' and 'Tuzuk-i-Jahangiri' before a 5-judge Constitution bench, headed by Chief Justice Ranjan Gogoi, to highlight its point that none of these talked about the existence of Babri masjid.
         Advancing submissions on the 14th day of the decades-old case, senior advocate P N Mishra, appearing for the Hindu body, said these books, specially 'Baburnama', did not talk about either destruction of the temple or construction of the Babri mosque in Ayodhjya by Mir Baki, the commander of the first Mughal emperor.
         "Babur did not enter Ayodhya and therefore, he had no occasion to direct demolition of the temple and construction of the mosque in 1528 AD and moreover, there was no person with the name of Mir Baqi as his commander," Mishra told the bench which also comprised Justices S A Bobde, D Y Chandrachud, Ashok Bhushan and S A Nazeer.
         Mir Baki was not the commander who had led the invasion on Ayodhya, Mishra said leading the bench to ask him as to what he was trying to prove by referring to these historical books.
         'Baburnama' is the first historical book so far as the case of Muslims is concerned, Mishra said, adding, "I, being the defendant, want to disprove their case. They said that the our temple be declared as mosque.
         "If any building is to be declared a mosque then they will have to prove that Babur was the 'wakif' of the place."
          Mishra said that 'Baburnama' deals with the 18 years of life of the emperor, but does not talk about any mosque at Ayodhya and moreover, when the so called mosque was ordered to be constructed, the king was in Agra.
         "A man can tell a lie, but the circumstances do not tell a lie," Mishra said.
         Babur defeated Muslim ruler of Awadh, Ibrahim Lodi and killed him and then made his brother the commander of the area, he said, adding that the Muslims here said that Mir Baki was the commander of Babur, which is wrong.
         He then said the inscriptions, which allegedly dealt with existence of the mosque there, were first seen in 1946 when a magistrate visited the place and it was his submission those inscriptions were forged.
         Mishra then referred to 'Ain-i-Akbari', written by Abul Fazal and said in that 1576 he wrote about 'Ramkot' in Ayodhya which was worshipped by the Hindus as being the birth place of Lord Ram.
         "But, 'Ain-i-Akbari' does not refer to any mosque at Ayodhya," he said, adding that though this book notes down minute details of three graves in nearby localities.
         "Does 'Ain-i-Akbari mention any other mosques," the bench asked. To this, the lawyer said that he would come back with the details.
         Then the lawyer cited 'Humayunnama', written by Babur's daughter Gulbadan Begaum and 'Tuzuk-i-Jahangiri' of Babur's great grandson and emphasised that these two books also did not mention anything about construction of mosque at Ayodhya.
         "What is your theory to the claim that the building has the characteristic of both mosque and temple... you say that the structure was destroyed by Aurangzeb," the bench asked.
         It was established that Babur did not make the mosque and it was built by Aurangzeb who destroyed temples at places like Mathura and Kashi, Mishra responded, adding that in a civil lawsuit the defendant's duty is to disprove the case of the plaintiff.
         One of the commanders of Aurangzeb had said that the Mughal emperor destroyed four famous Hindu structures.
         The bench then asked as to what will happen to the prayer of the Muslim party seeking declaration of the place as the mosque after demolition of the structure.
         The lawyer said that he was seeking dismissal of the suit on the ground of incorrect pleadings.
         Referring to Tulsi Das, who had written 'Ramayana', the lawyer said that he was the contemporary, but nothing is written about the Babri masjid.
         He then said that he would refer to Islamic law and 'Hadith' to establish the fact that "usurpation" of other's property in Islam was 'haram' (prohibited).
         Mishra opposed the submission of senior lawyer Rajeev Dhavan, counsel for Muslim parties, that the books, which have not been exhibited in the High Court cannot be cited in the apex court saying that the Evidence Act permitted that.
         Referring to the concept of 'Darul Islam', Mishra said that as Babur won Awadh from Muslim ruler Lodi, he was disentitled under Islamic law to confiscate properties of 'kafirs' (non-believers).
         The advancing of arguments would continue on Thursday.
         The Allahabad High Court, in its judgment of 2010 on four civil lawsuits, had partitioned the 2.77-acre disputed land equally among the three parties Sunni Waqf Board, Nirmohi Akhara and Ram Lalla.
         Fourteen appeals have been filed in the Supreme Court against the verdict. PTI SJK RKS
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Last Updated : Sep 28, 2019, 4:10 PM IST
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