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संघर्ष में हर साल मरते हैं 400 से ज्यादा लोग, टकराव रोकने में एलिफैंट कॉरिडोर अहम

हाथियों की सुरक्षा कि लिए वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने एक नई पहल शुरू की है. इसके माध्यम से जिन गलियारों से हाथी गुजरते हैं, उनकी निगरानी की जाएगी. इस पहल के अंतर्गत 11 राज्य आते हैं. जानें पूरा विवरण

डब्ल्यूटीआई के वन्य भूमि प्रभाग की प्रमुख उपासना गांगुली.
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Published : May 17, 2019, 11:24 PM IST

Updated : May 17, 2019, 11:39 PM IST

नई दिल्ली: वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से राइट ऑफ पैसेज नाम से पहल की शुरूआत की गई है. इसके अंतर्गत नेशनल एलीफैंट कॉरिडोर आता है. राइट ऑफ पैसेज 11 राज्यों से जुड़ा हुआ है.

इन 11 राज्यों में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड को शामिल किया गया है. भारत में 101 गलियारों एलिफैंट कॉरिडोर की पहचान कर इसमें से छह को संरक्षित किया जा चुका है. सुरक्षित गलियारों में केरल में तिरुनेल्ली-क्रुडकोट, कर्नाटक में एडेयारहल्ली-डोड्डासैमपिग और कनियानपुरा-मोयार, मेघालय में सिजू-रीवाक और रीवाक-एमैग्रे और उत्तराखंड में चिल्ला-मोतीचुर शामिल हैं.

हाथियों और इंसानों के टकराव और एलिफैंट कॉरिडोर जैसे मामलों पर ईटीवी भारत ने डब्ल्यूटीआई के वन्य भूमि प्रभाग की प्रमुख उपासना गांगुली से बात की. उपासना गांगुली ने कहा, 'हमने इन राज्यों में 101 गलियारों जिससे हाथी गुजरते हैं की पहचान की है और इन राज्यों के वन विभाग के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.'

वे आगे कहती हैं कि डब्ल्यूटीआई ने पहले से ही राज्य वन विभाग के साथ गलियारों की रक्षा करने का एक खाका साझा किया है और इसे अपनी प्रबंधन योजना में शामिल करने का इरादा है.

गांगुली बताती हैं कि कुछ साल पूहले किए गए एक सर्वेक्षण में हमें पता चला कि कुल गलियारों कि संख्या 108 पहुंच गई है. इसके साथ ही एक और बात खुल कर आई की इसमें से ही सात गलियारे बाधित हुए हैं. अब हमारे पास 101 गलियारे हाथियों के लिए हैं, वो भी पूरे भारत में. हमें इन सभी गलियारों की पूरी सुरक्षा का ध्यान देना है.

डब्ल्यूटीआई के वन्य भूमि प्रभाग की प्रमुख उपासना गांगुली से बातचीत.

उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण था, सात गलियारे अवरुद्ध हो गए हैं. गांगुली ने कहा, 'गलियारों का बंद होना हमारे लिए एक बड़ी चिंता है.'

डब्ल्यूटीआई अधिकारी का कहना है, 'हम परियोजना हाथी, रेलवे, एनएचएआई और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि जंगली हाथियों के गलियारों और आवास को बचाया जा सके.'

हाथियों काफी खुली जगह घूमने के लिए चाहिए. एक हाथी झुंड की होम रेंज औसतन लगभग 250 वर्ग किमी (राजाजी नेशनल पार्क में) 3500 वर्ग किमी (पश्चिम बंगाल के अत्यधिक खंडित परिदृश्य में) से भिन्न हो सकती है.

वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट के आंकड़ों के मुताबिक हर साल औसतन 400 इंसान हाथियों से होने वाले संघर्ष में मारे जाते हैं.

वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के अनुसार, पिछले पांच सालों में अकेले भारत में रेल संबंधी दुर्घटनाओं में लगभग 100 हाथियों की मौत हो चुकी है. अपने बच्चों के साथ धीमी गति से आगे बढ़ते हुए हाथी उनकी तरफ तेज रफ्तार से आगे आने वाली रेलगाड़ी से बचने में असमर्थ हो जाते हैं. इस साल ऐसी दुर्घटनाओं में अब तक 26 हाथियों की मौत हो चुकी है.

भारतीय रेलवे से 30 लाख रुपये की मदद मिलने के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली (आईआईटी-डी) के एक प्रोफेसर सुब्रत कर एक सेंसर बना रहे हैं. अगर यह परीक्षण में सफल हो जाता है तो रेल ट्रैक पर हाथियों की जान बचाई जा सकेगी. सुब्रत आईआईटी दिल्ली में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत हैं.

वन्यजीवों का अपने प्राकृतिक आवास से आबादी वाले क्षेत्रों में जाना अब एक आम बात हो गई है. वे अपने शिकार या दूसरी जरूरतों के लिए कभी भी आबादी वाले क्षेत्रों का रुख करते हैं. इससे वन्यजीवों व मनुष्यों के बीच संघर्ष शुरू हो जाता है.

वन्यजीवों का इंसानों की आबादी वाले क्षेत्रों में घुसना व अन्य समस्याओं पर वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी-इंडिया (डब्ल्यूसीएस-आई) की वैज्ञानिक विद्या अत्रेया ने कहा कि जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास की परिभाषा नहीं पता.

वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास से बाहर क्यों आ रहे हैं? इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानती हैं? इस सवाल पर विद्या अत्रेया ने कहा, 'आप हमें बताएं कि जानवरों को किसने नेचुरल हैबिटेट (प्राकृतिक आवास) का डेफिनिशन बताया है. जानवरों को क्या पता कि कौन सा नेचुरल हैबिटेट उनका है. नक्शे को इंसान ने ड्रॉ किया है, जानवर उस नक्शे को नहीं मानते. जंगल में किसी जानवर को क्या पता कि कौन सा हैबिटेट उसका है.'

उन्होंने आगे कहा, 'नक्शे में हमने अभयारण्य को ड्रॉ किया है. मगर किसी जानवर को हम नहीं बता सकते कि यह उसका नेचुरल हैबिटेट है. पूर्वी महाराष्ट्र में ब्रिटिश काल से ही बेहतरीन जंगल रहा है, यहां काफी जानवर थे आज भी हैं. हमें साइंटिफिट तरीके से कार्यक्रम बनाने की जरूरत है.'

वन्यजीवों का हिंसक होना व आबादी की तरफ पलायन करना बड़ी चुनौती है. इस पर आप क्या कहेंगी? यह पूछे जाने पर विद्या कहती हैं, 'मैं सहमत नहीं हूं कि वन्य जीव बहुत ज्यादा हिंसक हैं. मीडिया वन्यजीवों के मामले में ज्यादा वायलेंस है, क्योंकि मीडिया सिर्फ वायलेंट न्यूज रिपोर्ट करता है, जैसे आदमखोर आ गया..आदि तरह से. आप गांव में जाकर काम करेंगे तो पाएंगे आप वन्य जीवों को हिंसक नहीं कहिए.'

उन्होंने कहा, 'हम ऐसे नहीं कह सकते कि जानवर लोगों की बस्ती की तरफ आ रहे हैं, क्योंकि आप दस हजार साल पहले के हालात पर गौर करें तो उस समय कोई अभयारण्य नहीं था. भारत में हर जगह जंगली जानवर हैं व पालतू जानवर भी हैं. वैसे भी, मानव होने के नाते समायोजन व पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी ज्यादा है. हमें पर्यावरण व वन्यजीवों का ख्याल रखना होगा.'

एक अंतरराष्ट्रीय संगठन-इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेल्फेयर (IFAW) ने भी भारत में हाथियों की मौत की घटनाओं में हो रही वृद्धि पर चिंता जाहिर की है.

जंतु-संरक्षण कार्य से जुड़े संगठन IFAW ने देश में तेज दर से घटती हाथियों की आबादी पर नियंत्रण के लिए नीतियों में व्यापक बदलाव की आवश्यकता बताई है.

IFAW के प्रेसिडेंट अजेडाइन डॉउंस ने मौजूदा दौर में घुमंतू जानवरों को राजमार्गों और रेलवे समेत अन्य कारणों से पैदा हुए खतरों पर जानकारी दी. उन्होंने कहा कि मानव और पारितंत्र की बेहतरी के लिए हाथियों को उनके विकास के लिए जगह देने की जरूरत है और इसके लिए सरकार, नीति और उद्योग के बीच समन्वय स्थापति करना होगा.

डाउंस ने कहा, 'रेलवे, सिंचाई, राजमार्ग और बिजली के तार जैसे बुनियादी ढांचों से हाथियों को खतरा है. इसलिए हाथियों की आबादी में तेजी से आ रही कमी को रोकने के लिए मजबूत और व्यापक नीति की तत्काल जरूरत है.'

भारत में करीब 27,000 जंगली एशियाई हाथी हैं. ये इनकी वैश्विक आबादी का 55 फीसदी है. फिर भी देश में इनके भविष्य की अनिश्चितता बनी हुई है.

बकौल डाउंस वे भारतीय हाथी के भविष्य को लेकर आशावादी हैं. उन्होंने बताया कि IFAW और वाइल्ड ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) समस्या के उचित समाधान के लिए एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इसका जंतुओं, मानव और सभी जीवों के आवास पर तत्काल पर प्रभाव पड़ेगा और इसका दीर्घकालिक असर होगा.'

(एक्सट्रा इनपुट- आईएएनएस)

नई दिल्ली: वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से राइट ऑफ पैसेज नाम से पहल की शुरूआत की गई है. इसके अंतर्गत नेशनल एलीफैंट कॉरिडोर आता है. राइट ऑफ पैसेज 11 राज्यों से जुड़ा हुआ है.

इन 11 राज्यों में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड को शामिल किया गया है. भारत में 101 गलियारों एलिफैंट कॉरिडोर की पहचान कर इसमें से छह को संरक्षित किया जा चुका है. सुरक्षित गलियारों में केरल में तिरुनेल्ली-क्रुडकोट, कर्नाटक में एडेयारहल्ली-डोड्डासैमपिग और कनियानपुरा-मोयार, मेघालय में सिजू-रीवाक और रीवाक-एमैग्रे और उत्तराखंड में चिल्ला-मोतीचुर शामिल हैं.

हाथियों और इंसानों के टकराव और एलिफैंट कॉरिडोर जैसे मामलों पर ईटीवी भारत ने डब्ल्यूटीआई के वन्य भूमि प्रभाग की प्रमुख उपासना गांगुली से बात की. उपासना गांगुली ने कहा, 'हमने इन राज्यों में 101 गलियारों जिससे हाथी गुजरते हैं की पहचान की है और इन राज्यों के वन विभाग के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.'

वे आगे कहती हैं कि डब्ल्यूटीआई ने पहले से ही राज्य वन विभाग के साथ गलियारों की रक्षा करने का एक खाका साझा किया है और इसे अपनी प्रबंधन योजना में शामिल करने का इरादा है.

गांगुली बताती हैं कि कुछ साल पूहले किए गए एक सर्वेक्षण में हमें पता चला कि कुल गलियारों कि संख्या 108 पहुंच गई है. इसके साथ ही एक और बात खुल कर आई की इसमें से ही सात गलियारे बाधित हुए हैं. अब हमारे पास 101 गलियारे हाथियों के लिए हैं, वो भी पूरे भारत में. हमें इन सभी गलियारों की पूरी सुरक्षा का ध्यान देना है.

डब्ल्यूटीआई के वन्य भूमि प्रभाग की प्रमुख उपासना गांगुली से बातचीत.

उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण था, सात गलियारे अवरुद्ध हो गए हैं. गांगुली ने कहा, 'गलियारों का बंद होना हमारे लिए एक बड़ी चिंता है.'

डब्ल्यूटीआई अधिकारी का कहना है, 'हम परियोजना हाथी, रेलवे, एनएचएआई और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि जंगली हाथियों के गलियारों और आवास को बचाया जा सके.'

हाथियों काफी खुली जगह घूमने के लिए चाहिए. एक हाथी झुंड की होम रेंज औसतन लगभग 250 वर्ग किमी (राजाजी नेशनल पार्क में) 3500 वर्ग किमी (पश्चिम बंगाल के अत्यधिक खंडित परिदृश्य में) से भिन्न हो सकती है.

वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट के आंकड़ों के मुताबिक हर साल औसतन 400 इंसान हाथियों से होने वाले संघर्ष में मारे जाते हैं.

वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के अनुसार, पिछले पांच सालों में अकेले भारत में रेल संबंधी दुर्घटनाओं में लगभग 100 हाथियों की मौत हो चुकी है. अपने बच्चों के साथ धीमी गति से आगे बढ़ते हुए हाथी उनकी तरफ तेज रफ्तार से आगे आने वाली रेलगाड़ी से बचने में असमर्थ हो जाते हैं. इस साल ऐसी दुर्घटनाओं में अब तक 26 हाथियों की मौत हो चुकी है.

भारतीय रेलवे से 30 लाख रुपये की मदद मिलने के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली (आईआईटी-डी) के एक प्रोफेसर सुब्रत कर एक सेंसर बना रहे हैं. अगर यह परीक्षण में सफल हो जाता है तो रेल ट्रैक पर हाथियों की जान बचाई जा सकेगी. सुब्रत आईआईटी दिल्ली में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत हैं.

वन्यजीवों का अपने प्राकृतिक आवास से आबादी वाले क्षेत्रों में जाना अब एक आम बात हो गई है. वे अपने शिकार या दूसरी जरूरतों के लिए कभी भी आबादी वाले क्षेत्रों का रुख करते हैं. इससे वन्यजीवों व मनुष्यों के बीच संघर्ष शुरू हो जाता है.

वन्यजीवों का इंसानों की आबादी वाले क्षेत्रों में घुसना व अन्य समस्याओं पर वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी-इंडिया (डब्ल्यूसीएस-आई) की वैज्ञानिक विद्या अत्रेया ने कहा कि जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास की परिभाषा नहीं पता.

वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास से बाहर क्यों आ रहे हैं? इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानती हैं? इस सवाल पर विद्या अत्रेया ने कहा, 'आप हमें बताएं कि जानवरों को किसने नेचुरल हैबिटेट (प्राकृतिक आवास) का डेफिनिशन बताया है. जानवरों को क्या पता कि कौन सा नेचुरल हैबिटेट उनका है. नक्शे को इंसान ने ड्रॉ किया है, जानवर उस नक्शे को नहीं मानते. जंगल में किसी जानवर को क्या पता कि कौन सा हैबिटेट उसका है.'

उन्होंने आगे कहा, 'नक्शे में हमने अभयारण्य को ड्रॉ किया है. मगर किसी जानवर को हम नहीं बता सकते कि यह उसका नेचुरल हैबिटेट है. पूर्वी महाराष्ट्र में ब्रिटिश काल से ही बेहतरीन जंगल रहा है, यहां काफी जानवर थे आज भी हैं. हमें साइंटिफिट तरीके से कार्यक्रम बनाने की जरूरत है.'

वन्यजीवों का हिंसक होना व आबादी की तरफ पलायन करना बड़ी चुनौती है. इस पर आप क्या कहेंगी? यह पूछे जाने पर विद्या कहती हैं, 'मैं सहमत नहीं हूं कि वन्य जीव बहुत ज्यादा हिंसक हैं. मीडिया वन्यजीवों के मामले में ज्यादा वायलेंस है, क्योंकि मीडिया सिर्फ वायलेंट न्यूज रिपोर्ट करता है, जैसे आदमखोर आ गया..आदि तरह से. आप गांव में जाकर काम करेंगे तो पाएंगे आप वन्य जीवों को हिंसक नहीं कहिए.'

उन्होंने कहा, 'हम ऐसे नहीं कह सकते कि जानवर लोगों की बस्ती की तरफ आ रहे हैं, क्योंकि आप दस हजार साल पहले के हालात पर गौर करें तो उस समय कोई अभयारण्य नहीं था. भारत में हर जगह जंगली जानवर हैं व पालतू जानवर भी हैं. वैसे भी, मानव होने के नाते समायोजन व पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी ज्यादा है. हमें पर्यावरण व वन्यजीवों का ख्याल रखना होगा.'

एक अंतरराष्ट्रीय संगठन-इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेल्फेयर (IFAW) ने भी भारत में हाथियों की मौत की घटनाओं में हो रही वृद्धि पर चिंता जाहिर की है.

जंतु-संरक्षण कार्य से जुड़े संगठन IFAW ने देश में तेज दर से घटती हाथियों की आबादी पर नियंत्रण के लिए नीतियों में व्यापक बदलाव की आवश्यकता बताई है.

IFAW के प्रेसिडेंट अजेडाइन डॉउंस ने मौजूदा दौर में घुमंतू जानवरों को राजमार्गों और रेलवे समेत अन्य कारणों से पैदा हुए खतरों पर जानकारी दी. उन्होंने कहा कि मानव और पारितंत्र की बेहतरी के लिए हाथियों को उनके विकास के लिए जगह देने की जरूरत है और इसके लिए सरकार, नीति और उद्योग के बीच समन्वय स्थापति करना होगा.

डाउंस ने कहा, 'रेलवे, सिंचाई, राजमार्ग और बिजली के तार जैसे बुनियादी ढांचों से हाथियों को खतरा है. इसलिए हाथियों की आबादी में तेजी से आ रही कमी को रोकने के लिए मजबूत और व्यापक नीति की तत्काल जरूरत है.'

भारत में करीब 27,000 जंगली एशियाई हाथी हैं. ये इनकी वैश्विक आबादी का 55 फीसदी है. फिर भी देश में इनके भविष्य की अनिश्चितता बनी हुई है.

बकौल डाउंस वे भारतीय हाथी के भविष्य को लेकर आशावादी हैं. उन्होंने बताया कि IFAW और वाइल्ड ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) समस्या के उचित समाधान के लिए एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इसका जंतुओं, मानव और सभी जीवों के आवास पर तत्काल पर प्रभाव पड़ेगा और इसका दीर्घकालिक असर होगा.'

(एक्सट्रा इनपुट- आईएएनएस)

Intro:New Delhi: Shocked over the alarming growth of man-elephant conflict, as many as 11 states in India are closely working with the Wildlife Trust of India (WTI) to protect 101 corridors for the pachyderm.


Body:Initiatiated by the WTI, Right of Passage: The National Elephant Corridors Project covers Kerala, Karnataka, Tamil Nadu, Chhattisgarh, Jharkhand, Odisha, Assam, Meghalaya, West Bengal, Arunachal Pradesh and Uttarakhand.

"We have identified 101 elephant corridors in these states and working closely with the forest department of these states," said Upasana Ganguly, Head-WTI's wild land division.

The WTI has already shared a blueprint on protecting the corridors with the state forest department with an intention to include it in their management plan.

"In a survey done few years back, we have found that the total number of corridors have reached to 108 but seven old corridors were also blocked. So, now, we have 101 elephant corridors across India and we need to protect the corridors," said Ganguly.

She said that rapid industrialisation was one of the major reason for which seven corridors have been blocked. "Closure of the corridors is a major concern for us," added Ganguly.

"We are closely working with project elephant, railways, NHAI and local communities so that the corridors and habitat of the wild elephants could be saved," the WTI official said.


Conclusion:The elephants need a large area to roam. The home range of an elephant herd can vary from an average of about 250 sq km (in Rajaji National Park) to over 3500 sq km (in the highly fragmented landscape of West Bengal).

On an average 400-450 elephants get killed in men-elephant conflicts every year.

end.
Last Updated : May 17, 2019, 11:39 PM IST
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