ETV Bharat / bharat

कोरोना : लड़कों के मुकाबले लड़कियों की पढ़ाई बंद होने का खतरा बढ़ा

बालिका दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में जागरूकता पैदा करना है, ताकि लड़के और लड़की में किया जाने वाला भेदभाव खत्म हो. गैरकानूनी होने के बावजूद आज भी हमारे देश में लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या के मामले काफी ज्यादा हैं. लड़कियां भले ही हर क्षेत्र में परचम लहरा रहीं हों, लेकिन दकियानूसी सोच के चलते उनके साथ भेदभाव होता है. अगर किसी परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर है और वह एक साथ दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकता, तो हमेशा लड़की की पढ़ाई ही छुड़ाई जाती है.

बालिका दिवस
बालिका दिवस
author img

By

Published : Jan 25, 2021, 3:30 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना का दुनियाभर में स्कूली शिक्षा पर गहरा असर पड़ा है. लड़कियों की पढ़ाई पर इसका असर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ा है. आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना खत्म होने के बाद भी कम और मध्यम आय वाले देशों को मिलाकर तकरीबन दो करोड़ लड़कियां स्कूल नहीं लौट सकेंगी. इन देशों में भारत भी शामिल है.

कोविड-19 महामारी का लड़कियों पर ज्यादा प्रभाव पड़ा है. कोरोना के कारण 15-18 वर्ष की आयु की लगभग 40 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से वंचित हो गईं. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में लगभग 10 मिलियन माध्यमिक स्कूल की लड़कियां कोविड-19 के कारण बाहर नहीं निकल पा रही हैं, जिससे उन पर जल्दी शादी, गर्भावस्था, गरीबी, तस्करी और हिंसा जैसी परेशानियों का खतरा मंडरा रहा है.

रविवार को राष्ट्रीय बालिका दिवस और शिक्षा के अंतरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर, शिक्षा का अधिकार फोरम ने बताया कि लड़कियों में ड्रॉपआउट की बढ़ती दर के चलते चिंता का स्तर बढ़ गया है. एक संगठन, जो 19 राज्यों में 10,000 नागरिक समाज संगठनों का एक नेटवर्क है, ने ये जानकारी दी है.

भारत में फाइट इनइक्वाएलिटी अलायंस द्वारा असमानता के खिलाफ कार्रवाई के ग्लोबल वीक के हिस्से के रूप में स्कूली शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लिए काम करने वाले शिक्षाविद् और शिक्षक संघों ने 22 जनवरी को एक पॉलिसी ब्रीफ जारी किया था.

पॉलिसी में सभी बच्चों को इसके दायरे में शामिल करने के लिए, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के विस्तार की आवश्यकता की सिफारिश की गई है. यह लड़कियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के उपायों पर प्रकाश डालता है. यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा गुणवत्ता मामले में भेदभाव उत्तरदायी है. यह सशक्तीकरण और लड़कियों के जीवन कौशल को बढ़ावा देता है. उनके विकास में बाधा खड़ी कर रही परेशानियों का समाधान करता है. यह सुनिश्चित करने के लिए भी कि क्या देखभाल की आवश्यकता है.

पॉलिसी को लगभग 300 प्रतिभागियों की उपस्थिति में शुरू किया गया था. हाल ही में एनसीपीसीआर (NCPCR) और रमन मैग्सेसे अवार्डी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. शांता सिन्हा द्वारा एक मुख्य भाषण दिया गया था, जिसमें लड़कियों को शिक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डाला गया था कि कैसे स्कूल सामाजिक परिवर्तन के साधन बन सकते हैं. स्कूल और लोकतंत्र के बीच एक संबंध है. हमें खुद से पूछना है क्या स्कूल समावेशी हैं, उन्हें और अधिक समावेशी कैसे बनाया जा सकता है?

पढ़ें : दुनिया की यंगेस्ट कैलीग्राफी कोच है जयपुर की यह बिटिया

उन्होंने आगे कहा कि वैसे तो छोटी-मोटी भेदभावपूर्ण प्रथाएं हर जगह मौजूद हैं, जिन्हें लड़कियां बिना किसी सवाल के स्वीकार कर लेती हैं. यौन शोषण और उत्पीड़न के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, इनसे निरटारा जरूरी है. वहीं, स्कूल शिक्षा प्रणाली को और अधिक मजबूत किया गया है. स्कूलों को लोकतंत्र, समानता और न्याय के लिए हब बनना चाहिए.

आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. अंबरीश राय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण ने कैसे असमानताओं को खत्म किया है, जिससे भारत के गरीब बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है. अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस और राष्ट्रीय बालिका दिवस (24 जनवरी) के अवसर पर हम समान शिक्षा प्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराना चाहते हैं. इस समय, भारत को अभी न केवल प्रवासियों, दलितों, पिछड़े समूहों, लड़कियों के मुद्दों में एक समान स्कूल प्रणाली की आवश्यकता है, हमने वित्त मंत्री से अनुरोध किया है कि इसे सी श्रेणी में न रखा जाए.

नई दिल्ली : कोरोना का दुनियाभर में स्कूली शिक्षा पर गहरा असर पड़ा है. लड़कियों की पढ़ाई पर इसका असर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ा है. आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना खत्म होने के बाद भी कम और मध्यम आय वाले देशों को मिलाकर तकरीबन दो करोड़ लड़कियां स्कूल नहीं लौट सकेंगी. इन देशों में भारत भी शामिल है.

कोविड-19 महामारी का लड़कियों पर ज्यादा प्रभाव पड़ा है. कोरोना के कारण 15-18 वर्ष की आयु की लगभग 40 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से वंचित हो गईं. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में लगभग 10 मिलियन माध्यमिक स्कूल की लड़कियां कोविड-19 के कारण बाहर नहीं निकल पा रही हैं, जिससे उन पर जल्दी शादी, गर्भावस्था, गरीबी, तस्करी और हिंसा जैसी परेशानियों का खतरा मंडरा रहा है.

रविवार को राष्ट्रीय बालिका दिवस और शिक्षा के अंतरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर, शिक्षा का अधिकार फोरम ने बताया कि लड़कियों में ड्रॉपआउट की बढ़ती दर के चलते चिंता का स्तर बढ़ गया है. एक संगठन, जो 19 राज्यों में 10,000 नागरिक समाज संगठनों का एक नेटवर्क है, ने ये जानकारी दी है.

भारत में फाइट इनइक्वाएलिटी अलायंस द्वारा असमानता के खिलाफ कार्रवाई के ग्लोबल वीक के हिस्से के रूप में स्कूली शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लिए काम करने वाले शिक्षाविद् और शिक्षक संघों ने 22 जनवरी को एक पॉलिसी ब्रीफ जारी किया था.

पॉलिसी में सभी बच्चों को इसके दायरे में शामिल करने के लिए, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के विस्तार की आवश्यकता की सिफारिश की गई है. यह लड़कियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के उपायों पर प्रकाश डालता है. यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा गुणवत्ता मामले में भेदभाव उत्तरदायी है. यह सशक्तीकरण और लड़कियों के जीवन कौशल को बढ़ावा देता है. उनके विकास में बाधा खड़ी कर रही परेशानियों का समाधान करता है. यह सुनिश्चित करने के लिए भी कि क्या देखभाल की आवश्यकता है.

पॉलिसी को लगभग 300 प्रतिभागियों की उपस्थिति में शुरू किया गया था. हाल ही में एनसीपीसीआर (NCPCR) और रमन मैग्सेसे अवार्डी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. शांता सिन्हा द्वारा एक मुख्य भाषण दिया गया था, जिसमें लड़कियों को शिक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डाला गया था कि कैसे स्कूल सामाजिक परिवर्तन के साधन बन सकते हैं. स्कूल और लोकतंत्र के बीच एक संबंध है. हमें खुद से पूछना है क्या स्कूल समावेशी हैं, उन्हें और अधिक समावेशी कैसे बनाया जा सकता है?

पढ़ें : दुनिया की यंगेस्ट कैलीग्राफी कोच है जयपुर की यह बिटिया

उन्होंने आगे कहा कि वैसे तो छोटी-मोटी भेदभावपूर्ण प्रथाएं हर जगह मौजूद हैं, जिन्हें लड़कियां बिना किसी सवाल के स्वीकार कर लेती हैं. यौन शोषण और उत्पीड़न के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, इनसे निरटारा जरूरी है. वहीं, स्कूल शिक्षा प्रणाली को और अधिक मजबूत किया गया है. स्कूलों को लोकतंत्र, समानता और न्याय के लिए हब बनना चाहिए.

आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. अंबरीश राय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण ने कैसे असमानताओं को खत्म किया है, जिससे भारत के गरीब बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है. अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस और राष्ट्रीय बालिका दिवस (24 जनवरी) के अवसर पर हम समान शिक्षा प्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराना चाहते हैं. इस समय, भारत को अभी न केवल प्रवासियों, दलितों, पिछड़े समूहों, लड़कियों के मुद्दों में एक समान स्कूल प्रणाली की आवश्यकता है, हमने वित्त मंत्री से अनुरोध किया है कि इसे सी श्रेणी में न रखा जाए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.