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कर्नाटक के स्कूलों में भगवद् गीता, महाभारत बनेंगी नैतिक शिक्षा का हिस्सा : नागेश

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Published : Apr 19, 2022, 6:34 PM IST

कर्नाटक के स्कूलों में अगले शैक्षणिक वर्ष से 'भगवद् गीता' और 'महाभारत' को पाठ्टक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा (Bhagavad Gita and Mahabharata ). शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने मंगलवार को इस संबंध में जानकारी दी.

Minister BC Nagesh
शिक्षा मंत्री बीसी नागेश

बेंगलुरु : कर्नाटक सरकार अगले शैक्षणिक वर्ष से अपने स्कूली पाठ्यक्रम में 'भगवद् गीता' और 'महाभारत' को शामिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है. हालांकि इस संबंध में कुछ समय पहले एक प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन सत्ताधारी भाजपा सरकार ने विपक्ष के रुख को देखते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था. सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने मंगलवार को कहा, 'अगले साल से नैतिक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा. 'भगवद् गीता', 'महाभारत' और 'पंचतंत्र कहानियां' भी नैतिक शिक्षा का हिस्सा होंगी.'

उन्होंने कहा, 'जो भी विचारधाराएं बच्चों को उच्च नैतिकता की ओर बढ़ने में मदद करती हैं, उन्हें नैतिक शिक्षा में अपनाया जाएगा. यह एक धर्म तक ही सीमित नहीं होगा. विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के पहलुओं को अपनाया जाएगा जो बच्चों के लिए फायदेमंद हैं. हालांकि, एक विशेष धर्म के पहलुओं का पालन किया जाएगा. 90 प्रतिशत बच्चों को अधिक वरीयता मिलेगी और यह अपरिहार्य है.'

मंत्री नागेश ने यह भी स्पष्ट किया कि मैसूर साम्राज्य के पूर्व शासक टीपू सुल्तान की जीवनी भी 'मैसुरु हुली' (मैसूर का शेर) शीर्षक से पाठ्यपुस्तकों में रखा जाएगा. दरअसल भाजपा विधायक अप्पाचू रंजन ( BJP MLA Appachhu Ranjan) ने टीपू सुल्तान पर पाठ्यपुस्तकों से पाठ हटाने की मांग की है. रंजन ने कहा कि उन्होंने अपने दावे की पुष्टि के लिए सबूत पेश किए हैं. विधायक रंजन का कहना है कि 'अगर टीपू सुल्तान पर पाठ पढ़ाया जाए तो सभी पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए. टीपू एक कन्नड़ विरोधी शासक था, जिसने प्रशासन में फारसी भाषा थोप दी थी. कोडागु में उसके अत्याचार के बारे में भी बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए.'

इसे लेकर नागेश ने कहा कि टीपू पर पाठ नहीं छोड़ा गया है, विवरण बरकरार रखा जाएगा. किन पहलुओं को छोड़ दिया जाएगा, इसका विवरण बाद में साझा किया जाएगा. मंत्री नागेश ने कहा कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता ने उनसे उन स्कूलों में समकालीन पाठ्यक्रम शुरू करने का अनुरोध किया है. उन्हें डर है कि उनके बच्चे इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में पिछड़ जाएंगे. हालांकि, मदरसों (madarasas) या अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से ऐसी कोई मांग नहीं है.

पढ़ें- कर्नाटक : पाठ्यक्रम में शामिल की जा सकती है भगवद् गीता, शिक्षा मंत्री ने दिए संकेत

बेंगलुरु : कर्नाटक सरकार अगले शैक्षणिक वर्ष से अपने स्कूली पाठ्यक्रम में 'भगवद् गीता' और 'महाभारत' को शामिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है. हालांकि इस संबंध में कुछ समय पहले एक प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन सत्ताधारी भाजपा सरकार ने विपक्ष के रुख को देखते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था. सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने मंगलवार को कहा, 'अगले साल से नैतिक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा. 'भगवद् गीता', 'महाभारत' और 'पंचतंत्र कहानियां' भी नैतिक शिक्षा का हिस्सा होंगी.'

उन्होंने कहा, 'जो भी विचारधाराएं बच्चों को उच्च नैतिकता की ओर बढ़ने में मदद करती हैं, उन्हें नैतिक शिक्षा में अपनाया जाएगा. यह एक धर्म तक ही सीमित नहीं होगा. विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के पहलुओं को अपनाया जाएगा जो बच्चों के लिए फायदेमंद हैं. हालांकि, एक विशेष धर्म के पहलुओं का पालन किया जाएगा. 90 प्रतिशत बच्चों को अधिक वरीयता मिलेगी और यह अपरिहार्य है.'

मंत्री नागेश ने यह भी स्पष्ट किया कि मैसूर साम्राज्य के पूर्व शासक टीपू सुल्तान की जीवनी भी 'मैसुरु हुली' (मैसूर का शेर) शीर्षक से पाठ्यपुस्तकों में रखा जाएगा. दरअसल भाजपा विधायक अप्पाचू रंजन ( BJP MLA Appachhu Ranjan) ने टीपू सुल्तान पर पाठ्यपुस्तकों से पाठ हटाने की मांग की है. रंजन ने कहा कि उन्होंने अपने दावे की पुष्टि के लिए सबूत पेश किए हैं. विधायक रंजन का कहना है कि 'अगर टीपू सुल्तान पर पाठ पढ़ाया जाए तो सभी पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए. टीपू एक कन्नड़ विरोधी शासक था, जिसने प्रशासन में फारसी भाषा थोप दी थी. कोडागु में उसके अत्याचार के बारे में भी बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए.'

इसे लेकर नागेश ने कहा कि टीपू पर पाठ नहीं छोड़ा गया है, विवरण बरकरार रखा जाएगा. किन पहलुओं को छोड़ दिया जाएगा, इसका विवरण बाद में साझा किया जाएगा. मंत्री नागेश ने कहा कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता ने उनसे उन स्कूलों में समकालीन पाठ्यक्रम शुरू करने का अनुरोध किया है. उन्हें डर है कि उनके बच्चे इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में पिछड़ जाएंगे. हालांकि, मदरसों (madarasas) या अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से ऐसी कोई मांग नहीं है.

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