हैदराबाद : तकनीक के इस दौर में मोबाइल-लैपटॉप (mobile-laptop) और गैजेट्स (Gadgets) जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं. कोरोना महामारी के कारण ऑनलाइन क्लासेज (online classes) जरूरी हो गईं. बच्चे लैपटॉप और मोबाइल के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं. कोरोना के कारण घर से निकलना-खेलने जाना भी काफी हद तक बंद है, जिस वजह से ऑनलाइन गेम का चलन भी बढ़ गया है. कुल मिलाकर बदलते दौर में कंप्यूटर, मोबाइल और गैजेट्स से बच्चों को दूर रखना उनके साथ नाइंसाफी है, लेकिन वह इनका इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं अभिभावकों को इस पर नजर रखने की जरूरत है.
हाल ही में दो ऐसे मामले सामने आए जिनके बारे में हर पेरेंट्स का जानना जरूरी है. जानकारी रखेंगे, सतर्क रहेंगे तो ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता है. पहला मामला यूपी के गाजियाबाद का है जहां एक 11 साल की बच्ची ने मोबाइल फोन इस्तेमाल करने से मना करने और माता-पिता की डांट से परेशान होकर ऐसा किया, जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे.
बच्ची ने अपने माता-पिता के व्हाट्सएप नंबर को वेब के माध्यम से लैपटॉप पर इस्तेमाल किया. अपने ही पिता से 1 करोड़ रुपए की रंगदारी मांग ली. पुलिस ने जांच की तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि बेटी ने गुस्से में आकर ये कदम उठाया था. बच्ची के पिता इंजीनियर हैं. बच्ची ने पिता को धमकाने के लिए लैपटॉप पर इंटरनेट मैसेजिंग का इस्तेमाल किया.
ऑनलाइन गेम में 40 हजार गंवाए तो लगा ली फांसी
दूसरा मामला मध्य प्रदेश के छतरपुर का है, जहां ऑनलाइन गेम में 40 हजार रुपए गंवाने पर एक 13 साल के लड़के ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) शशांक जैन ने बताया कि बच्चे ने सुसाइड नोट में लिखा है कि उसने मां के खाते से 40 हजार रुपए निकाले और 'फ्री फायर' गेम में हार गया. छात्र ने मां से माफी मांगते हुए लिखा है कि अवसाद के कारण वह आत्महत्या कर रहा है. बच्चे की मां प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में नर्स हैं.
बच्चे के मोबाइल पर रुपये हारने का मैसेज आने के बाद उन्होंने उसे डांट लगाई थी, जिसके बाद बेटे ने ये कदम उठाया. इससे पहले, जनवरी माह में मध्य प्रदेश के सागर जिले में भी एक पिता ने 'फ्री फायर' गेम की लत के कारण अपने बेटे से मोबाइल फोन छीन लिया तो 12 वर्षीय छात्र ने कथित तौर पर फांसी लगा ली थी.
अभिभावक इन बातों का रखें ध्यान
यूपी और मध्यप्रदेश में हुई इन घटनाओं की बात करें तो दोनों ही परिवार शिक्षित थे. लेकिन ध्यान न रखने की वजह से ऐसा हुआ. मनोचिकित्सकों का कहना है कि कम उम्र में सही-गलत की जानकारी नहीं होने के कारण बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं. रुपये हारने या अन्य किसी जाल में फंसने पर वह असुरक्षित महसूस कर ऐसे कदम उठा लेते हैं. अभिभावकों को समय-समय पर बच्चों से बात करने की जरूरत है.
ऐसे में सलाह है कि नौकरीपेशा हों तो भी कुछ समय ऐसा जरूर निकालें कि बच्चे से खुलकर बात करें. अभिभावकों के लिए ये जरूरी है कि वह जानें कि बच्चा मोबाइल-लैपटॉप कर क्या कर रहा है. गेम खेल रहा है तो कोई ऐसा गेम तो नहीं है जिससे उसकी जिंदगी को खतरा हो. कई गेम हिंसक होते हैं जो बच्चों के मनोविज्ञान पर बुरा असर डालते हैं. बच्चों के माता-पिता का भी उन पर नियंत्रण नहीं रह जाता है.
मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चे की एक्टिविटी पर नजर रखेंगे तो इन हालात से बचा जा सकता है.
आंकड़ों पर नजर
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट एवं आंकड़ों पर नजर डालें तो 2017 में बच्चों के खिलाफ 88 साइबर अपराध के मामले सामने आए. 2018 में ये बढ़कर 232 पहुंच गए. 2019 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध के 305 मामले दर्ज किए गए.
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