कोलकाता : पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने राज्य में नौकरशाही की भूमिका की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि आईएएस और आईपीएस के सदस्य अब राज्य में लोक सेवक नहीं रहे, बल्कि उन्होंने खुद को 'राजनीतिक सेवक' बना लिया है.
धनखड़ दो सप्ताह के लिए उत्तर बंगाल के दौरे पर हैं. उन्होंने मीडिया से कहा, मैं लोकतांत्रिक मानदंडों और मूल्यों के कमजोर पड़ने से परेशान हूं. मैं मीडिया को दर्द से संकेत देता हूं कि हम जिस राज्य में हैं, वह बहुत गंभीर और दर्दनाक है, अन्य हिस्सों में ऐसा ही जाना जाता है. मुझे आश्चर्य है कि मुख्य सचिव सहित आईएएस और आईपीएस के सदस्य संविधान और कानून के शासन और राज्यपाल के प्रति अपने दायित्वों के प्रति इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं.
धनखड़ ने कहा, यह कैसी विडंबना है कि सूचना के अधिकार के तहत सभी नागरिकों को जो दस्तावेज उपलब्ध होना चाहिए, वह राज्य के मुखिया को उपलब्ध नहीं कराया जाता है. मैंने मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव, वित्त से पूछताछ की. वे 7 जून को मेरे पास आए बिना किसी कागज के, बिना किसी तैयारी के, बिना किसी दस्तावेज के. वे इतने कैजुअल कैसे हो सकते हैं? वे संवैधानिक प्रमुख के साथ इस तरह से मामले से कैसे निपट सकते हैं?
राज्यपाल अंडाल हवाईअड्डे से जुड़े दस्तावेजों और 'महामारी संरक्षण घोटाले' में कथित वित्तीय मदद का जिक्र कर रहे थे. "मैंने उन्हें सात दिनों के भीतर जवाब देने के लिए 7 जून को लिखा था. वह चिंतित नहीं हैं. मैंने उन्हें 1 अक्टूबर को फिर से बुलाया. वे बिना किसी दस्तावेज के आए. फिर मुझे उन्हें एक तंग समय देना पड़ा. वे पूरी तरह से अवज्ञा मोड पर हैं. उन दस्तावेजों को राज्यपाल से छुपाकर, उन्हें सार्वजनिक डोमेन पर नहीं डालकर वे अपराधियों को बचा रहे हैं.
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धनखड़ ने कहा, मैंने आज मुख्य सचिव को एक और कड़ा नोट भेजा है. इस तरह के आपराधिक कृत्यों में प्रशासन की मिलीभगत समाप्त होनी चाहिए. यह सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है कि अपराधियों को कानून के दायरे में लाया जाए. अपराधियों को कानून के प्रकोप का सामना करना चाहिए. कोई ऐसा नहीं, जो कानून से ऊपर हो.
यह जिक्र करते हुए कि राज्य में प्रत्येक नागरिक तनावग्रस्त है, राज्यपाल ने कहा, पुलिस राज्य बन चुके राज्य में हर नागरिक तनाव में है. वे डर में हैं. लोकतंत्र खतरे में है, इसलिए परेशान है. मानवाधिकार खतरे में हैं, इसलिए हर कोई डर में है.
उन्होंने अंत में कहा, यह बहुत ही खेदजनक स्थिति है कि नौकरशाह अब लोक सेवक नहीं हैं, बल्कि उन्होंने खुद को राजनीतिक सेवकों के स्तर तक सीमित कर लिया है. यह एक खुला रहस्य है और हर कोई यह जानता है.