नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन कानून, 2016 के कई प्रावधानों को रद्द करने वाले फैसले की समीक्षा करने की उसकी याचिका पर मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से खुली अदालत में सुनवाई करने का अनुरोध किया. केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ से अनुरोध किया कि मामले की महत्ता को ध्यान में रखते हुए पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की जाए.
तुषार मेहता ने कहा, "यह एक असामान्य अनुरोध है. हम फैसले की समीक्षा की खुली अदालत में सुनवाई करने का अनुरोध करते हैं. इस फैसले के कारण कई आदेश पारित किए जा रहे हैं जबकि बेनामी कानून के कुछ प्रावधानों को चुनौती तक नहीं दी गयी है." इस पर सीजेआई ने कहा, "हम इस पर विचार करेंगे." मृत्युदंड के मामलों को छोड़कर पुनर्विचार याचिका पर फैसला आमतौर पर संबंधित न्यायाधीश अपने चैम्बर में करते हैं.
शीर्ष न्यायालय ने पिछले साल 23 अगस्त को बेनामी कानून के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था. इनमें से एक प्रावधान के तहत 'बेनामी' लेनदेन में शामिल होने पर तीन साल की अधिकतम जेल की सजा या जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती थी. उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से मनमाना होने के आधार पर इस प्रावधान को 'असंवैधानिक' करार दिया था. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि बेनामी लेनदेन (निषेध) कानून, 1988 की धारा 3(2) और धारा 5 अस्पष्ट तथा मनमानी है.
केंद्र सरकार ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती देते हुए इस बाबत अपील की थी, जिस पर शीर्ष अदालत का निर्णय आया था. उच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया था कि 1988 के अधिनियम में वर्ष 2016 में किये गये संशोधन भावी प्रभाव से लागू होंगे.
(पीटीआई-भाषा)