नई दिल्ली : चीन द्वारा नया नक्शा जारी किए जाने पर भारत ने आपत्ति जाहिर की थी. अब भारत की इस आपत्ति का मलेशिया ने भी समर्थन किया है. मलेशिया का कहना है कि वह भी चीन के नए नक्शे को मानने के लिए बाध्य नहीं है. दरअसल, चीन ने दक्षिण चीन सागर के उन जल क्षेत्रों पर भी दावा किया है, जिस पर मलेशिया का पहले से ही प्रभुत्व है. नए मैप में चीन ने उस एरिया को भी अपना बता दिया. मलेशिया के विदेश मंत्री ने कहा कि वह टकराव नहीं लेना चाहता है, लेकिन वह संवाद जरूर करेगा और इस समस्या का तार्किक हल निकालने की कोशिश करेगा.
भारत के लिए मलेशिया का समर्थन क्यों मायने रखता है ? इसकी दो वजहें हैं, पहला यह कि मलेशिया मुस्लिम देश है और दूसरा कि मलेशिया का वर्तमान प्रशासन भारत के प्रति सौहार्द नजरिया रखता है, जबकि इनसे पूर्व महातिर मुहम्मद के समय में मलेशिया ने कई मौकों पर भारत का विरोध किया था. महातिर मुहम्मद ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का भी विरोध किया था. उन्होंने सीएए और एनआरसी जैसे आंतरिक मामलों पर भी निगेटिव प्रतिक्रिया दी थी. प्रतिक्रिया स्वरूप भारत ने मलेशिया ने आने वाले पाम ऑयल के आयात पर पाबंदी लगा दी थी. भारत के विवादास्पद धर्म गुरु जाकिर नाइक को भी महातिर मुहम्मद के समय में ही शरण दी गई थी.
ऐसा नहीं है कि मलेशिया ने इस मुद्दे को पहले नहीं उठाया है, वह पहले भी इस तरह के मुद्दे उठाता रहा है. 2021 में भी मलेशिया ने अपने इकोनोमिक जोन में चीनी पोत के दाखिले का विरोध किया था. विरोध स्वरूप मलेशिया ने चीनी राजदूत को भी तलब कर लिया था. लेकिन चीन अपनी अकड़ में इन आपत्तियों को नजरअंदाज करता रहा है.
अतंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने भी चीन को किया था आगाह - यहां यह भी जानना जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने इस क्षेत्र में चीन के दावे को सही नहीं ठहराया है, फिर भी चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना अधिकार जताता रहा है. जाहिर है, मलेशिया की तरह फिलीपीन्स और वियतनाम भी चीन के दावे को खारिज करता रहा है. खुद अमेरिका भी अपना एक नौसैनिक पोत द.चीन सागर में रखता है. इस मार्ग से अंतरराष्ट्रीय व्यापार होते हैं. एक तथ्य यह भी है कि चीन ने द. चीन सागर में छोटे-छोटे कई कृत्रिम द्वीप बना लिए हैं. इन द्वीपों पर चीनी नौसेना का कब्जा है और वे इन इलाकों से गुजरने वाले जहाजों को पेरशान करते हैं.
दूसरों के इलाकों पर दावा करना चीन की पुरानी आदत - भारत के विदेश मंत्री ने भी अपने बयान में कहा कि चीन की यह पुरानी आदत रही है कि वो दूसरे देशों के इलाकों पर दावा करता है और उसके बाद उस पर कुतर्क करता रहता है. भारत की इस प्रतिक्रिया पर चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस मुद्दे की जरूरत से ज्यादा व्याख्या करने की जरूरत नहीं है.
जी-20 की बैठक से ठीक पहले मैप का मुद्दा क्यों उठाया - अब सवाल ये है कि चीन ने इसी समय यह मुद्दा क्यों उठाया. ऐसे समय में जबकि अगले सप्ताह जी-20 की बैठक होने वाली है, इसमें चीन के राष्ट्रपति को भी आमंत्रित किया गया है, वह जी-20 का सदस्य देश है, फिर भी उसने जानबूझकर यह समय चुना. उसने जानबूझकर इस मुद्दे पर फोकस करने के लिए इसे उठाया है. मीडिया में यह भी चर्चा चल रही है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी-20 की बैठक में नहीं आ सकते हैं. हो सकता है, चीन ने इसके लिए भूमिका तैयार की हो और एक नया मैप जारी कर विवाद जानबूझकर बढ़ा दिया, ताकि उसे नहीं आने का एक बहाना मिल जाए.
चीन के साथ भारत का सीमा विवाद - आपको बता दें कि चीन के नए नक्शे में अरुणाचल प्रदेश, डोकलाम और अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बताया गया है. भारत ने तत्काल इस मैप को खारिज कर दिया. आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच कुल 3500 किमी की लंबी सीमा है. जम्मू कश्मीर की ओर इसकी लंबाई 1597 किमी है. पश्चिमी सेक्टर में इसकी लंबाई 1346 किमी. है. मध्य सेक्टर में इसकी लंबाई 545 किमी है. मध्य सेक्टर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का इलाका है. पूर्वी क्षेत्र सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश वाले इलाके हैं. अक्साई चिन के इलाके पर चीन ने कब्जा जमा रखा है. यह एरिया करीब 38 हजार वर्ग किमी का है. यह लद्दाख का हिस्सा है.
स्टेप्लड वीजा - चीन अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को स्टेप्लड वीजा जारी करता है. भारत इसका शुरू से ही विरोध करता रहा है. वह अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी इलाका मानता है. अरुणाचल प्रदेश में भारत कोई भी कार्यक्रम रखता है, तो चीन उसका विरोध करता है. इतना ही नहीं, चीन जम्मू कश्मीर में भी आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेता है. जी-20 की कई बैठकें भारत के अलग-अलग इलाकों में हुई. चीन ने उन बैठकों में हिस्सा नहीं लिया, जो जम्मू-कश्मीर में हुई.
ताइवान ने भी किया विरोध - चीन के नए मैप का ताइवान ने भी विरोध किया है. उनके विदेश मंत्री जोसेफ वू ने कहा कि डराने और धमकाने की उनकी पुरानी आदत है.
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