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600 वर्ष पुराने बस्तर दशहरा पर्व का आगाज, निभाई गई पाठजात्रा रस्म

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Published : Jul 28, 2022, 7:35 PM IST

छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा पर्व पूरे 75 दिनों तक चलता है. हरेली अमावस्या के मौके पर इस पर्व की शुरुआत हो गई.पर्व के पहले दिन पाठजात्रा रस्म पूरी की (Jagdalpur Bastar Dashara ) गई.

bastar dussehra festival begins
बस्तर दशहरा पर्व का आगाज

जगदलपुर : विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत हरेली अमावस्या के दिन पाटजात्रा पूजा विधान(Patjatra Puja Vidhi) के साथ (Jagdalpur Bastar Dashara ) हुई. विधि-विधान से दंतेश्वरी मंदिर (Dantewada Danteshwari Temple) के सामने टूरलूखोटला लकड़ी की पूजा अर्चना करने के बाद बकरा और मांगुर मछली की बलि देकर प्रसाद चढ़ाया गया. परंपरा अनुसार विशेष गांव बिलोरी के ग्रामीण साल पेड़ की लकड़ी लेकर जगदलपुर पहुंचते हैं. इसी लकड़ी से रथ बनाने के बड़े हथौड़े और चक्के का निर्माण किया जाता है. रथ निर्माण करने वाले कारीगर, पुजारी और दशहरा पर्व से जुड़े मांझी चालकी, बस्तर कलेक्टर और स्थानीय लोगों की उपस्थिति में बस्तर दशहरा की पहली और महत्वपूर्ण रस्म की अदायगी की गयी.

बस्तर दशहरा पर्व का आगाज
कैसे हुआ परंपरा का निर्वहन : परंपरागत रूप में साल के वृक्ष की साढ़े 3 हाथ लंबी और लगभग 3 फुट की गोलाई की लकड़ी मंदिर के प्रांगण में लाई जाती है. इस लकड़ी की ही पूजा अर्चना करने के बाद शहर के सिरहासार भवन में रथ निर्माण के लिए हथौड़े और चक्कों के एक्सेल का निर्माण किया जाता है. इस विधान के बाद अब बस्तर दशहरे में चलने वाले दो मंजिले काष्ठ (लकड़ी से बनी रथ)के निर्माण के लिए जंगल से लकड़ी लाने का काम शुरू हो जाएगा.

गौमूत्र खरीदी योजना का प्रदेशवासियों को मिलेगा जबरदस्त फायदा: सीएम बघेल

कब तक चलेगा त्यौहार : बस्तर के विशेष जानकार हेमंत कश्यप ने बताया कि ''बस्तर का दशहरा 75 दिनों तक चलता है और 75 दिनों तक दशहरा पर्व की रस्में निभाई जाती है. जिनमें 10 से 12 मुख्य रस्म में होती हैं. आज पाठजात्रा रस्म निभाई गई, इसके बाद डेरी गढ़ाई, जोगी बिठाई, काछन देवी, मावली परघाव, निशा जात्रा, भीतर रैनी, बाहर रैनी, मुरिया दरबार, कुटुम जात्रा, डोली विदाई जैसे अन्य महत्वपूर्ण रस्में निभाई जाती (Bastar Dussehra lasts for seventy five days) है.''

कब से चली आ रही परंपरा : हेमंत कश्यप ने यह भी बताया कि ''बस्तर में रावण का पुतला दहन नहीं होता है बल्कि यहां शक्ति की पूजा अर्चना की जाती है. बस्तर का दशहरा आदिवासी परंपरा अनुसार बीते 600 वर्ष से चली आ रही है. यही कारण है कि इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक बस्तर दशहरे (Historical Bastar Dussehra) को करीब से निहारने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों की संख्या में पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं. दशहरा पर्व में बस्तर वासियों के साथ ही हजारों की संख्या में मौजूद आदिवासियों की मुख्य भूमिका रहती है.''

प्रशासन ने की पूरी तैयारी : इधर रस्म अदायगी के बाद बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार ने कहा कि '' बीते साल कोरोना काल की वजह से भव्य रुप से बस्तर दशहरा पर्व नहीं मनाया गया. लेकिन इस वर्ष कोरोनावायरस का प्रकोप नियंत्रण में होने की वजह से पहले की तरह बस्तर दशहरा पर्व इस वर्ष भी मनाया जाएगा.''

जगदलपुर : विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत हरेली अमावस्या के दिन पाटजात्रा पूजा विधान(Patjatra Puja Vidhi) के साथ (Jagdalpur Bastar Dashara ) हुई. विधि-विधान से दंतेश्वरी मंदिर (Dantewada Danteshwari Temple) के सामने टूरलूखोटला लकड़ी की पूजा अर्चना करने के बाद बकरा और मांगुर मछली की बलि देकर प्रसाद चढ़ाया गया. परंपरा अनुसार विशेष गांव बिलोरी के ग्रामीण साल पेड़ की लकड़ी लेकर जगदलपुर पहुंचते हैं. इसी लकड़ी से रथ बनाने के बड़े हथौड़े और चक्के का निर्माण किया जाता है. रथ निर्माण करने वाले कारीगर, पुजारी और दशहरा पर्व से जुड़े मांझी चालकी, बस्तर कलेक्टर और स्थानीय लोगों की उपस्थिति में बस्तर दशहरा की पहली और महत्वपूर्ण रस्म की अदायगी की गयी.

बस्तर दशहरा पर्व का आगाज
कैसे हुआ परंपरा का निर्वहन : परंपरागत रूप में साल के वृक्ष की साढ़े 3 हाथ लंबी और लगभग 3 फुट की गोलाई की लकड़ी मंदिर के प्रांगण में लाई जाती है. इस लकड़ी की ही पूजा अर्चना करने के बाद शहर के सिरहासार भवन में रथ निर्माण के लिए हथौड़े और चक्कों के एक्सेल का निर्माण किया जाता है. इस विधान के बाद अब बस्तर दशहरे में चलने वाले दो मंजिले काष्ठ (लकड़ी से बनी रथ)के निर्माण के लिए जंगल से लकड़ी लाने का काम शुरू हो जाएगा.

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कब तक चलेगा त्यौहार : बस्तर के विशेष जानकार हेमंत कश्यप ने बताया कि ''बस्तर का दशहरा 75 दिनों तक चलता है और 75 दिनों तक दशहरा पर्व की रस्में निभाई जाती है. जिनमें 10 से 12 मुख्य रस्म में होती हैं. आज पाठजात्रा रस्म निभाई गई, इसके बाद डेरी गढ़ाई, जोगी बिठाई, काछन देवी, मावली परघाव, निशा जात्रा, भीतर रैनी, बाहर रैनी, मुरिया दरबार, कुटुम जात्रा, डोली विदाई जैसे अन्य महत्वपूर्ण रस्में निभाई जाती (Bastar Dussehra lasts for seventy five days) है.''

कब से चली आ रही परंपरा : हेमंत कश्यप ने यह भी बताया कि ''बस्तर में रावण का पुतला दहन नहीं होता है बल्कि यहां शक्ति की पूजा अर्चना की जाती है. बस्तर का दशहरा आदिवासी परंपरा अनुसार बीते 600 वर्ष से चली आ रही है. यही कारण है कि इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक बस्तर दशहरे (Historical Bastar Dussehra) को करीब से निहारने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों की संख्या में पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं. दशहरा पर्व में बस्तर वासियों के साथ ही हजारों की संख्या में मौजूद आदिवासियों की मुख्य भूमिका रहती है.''

प्रशासन ने की पूरी तैयारी : इधर रस्म अदायगी के बाद बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार ने कहा कि '' बीते साल कोरोना काल की वजह से भव्य रुप से बस्तर दशहरा पर्व नहीं मनाया गया. लेकिन इस वर्ष कोरोनावायरस का प्रकोप नियंत्रण में होने की वजह से पहले की तरह बस्तर दशहरा पर्व इस वर्ष भी मनाया जाएगा.''

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