हैदराबाद : देश के 14 राज्यों की 30 विधानसभा सीटों और लोकसभा की तीन सीटों पर शनिवार को उपचुनाव होंगे. इनमें बिहार की दो, हरियाणा की एक, हिमाचल प्रदेश में तीन, मध्य प्रदेश की दो, तेलंगाना की एक, आंध्र प्रदेश की एक, कर्नाटक में दो, महाराष्ट्र में एक, प. बंगाल में चार, असम की पांच, मेघालय में तीन, नागालैंड में एक, मिजोरम में एक, राजस्थान में दो सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. लोकसभा के लिए दादरा एवं नगर हवेली, हिमाचल प्रदेश की मंडी और मध्य प्रदेश की खंडवा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं.
भाजपा के रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद मंडी सीट खाली हो गई थी. खंडवा संसदीय क्षेत्र के लिए उपचुनाव भाजपा सदस्य नंद कुमार सिंह चौहान की मृत्यु के कारण कराना पड़ रहा है. दादरा और नगर हवेली से निर्दलीय लोकसभा सदस्य मोहन देलकर के निधन के बाद उपचुनाव करवाए जा रहे हैं. मुंबई के एक होटल से उनका शव बरामद हुआ था.
हालांकि, यह बात सही है कि इनके परिणामों से किसी राज्य में वर्तमान सरकार के अस्तित्व पर खतरा पैदा नहीं होगा. लेकिन चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि इनके नतीजों से जीतने वाली को नई ऊर्जा जरूर मिलेगी. अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो जाएगा. जिन पार्टियों को अधिक सीटें मिलेंगी, वे आत्मविश्वास का प्रदर्शन करेंगी.
संभवतः यही वजह है कि इन चुनावों को सभी पार्टियों ने गंभीरता से लिया है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार में जिन दो सीटों तारापुर और कुशेश्वरस्थान पर उपचुनाव हो रहे हैं. उन सीटों पर प्रचार करने के लिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव खुद मैदान में आ गए. साढे छह साल बाद उन्होंने किसी चुनावी सभा को संबोधित किया. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा हमला भी किया. उपचुनाव के प्रचार के लिए सीएम भी प्रचार में कूदे. उन्होंने भी विपक्षी नेताओं और उनकी मंशा को लेकर निशाना साधा. नीतीश ने तो यहां तक कह दिया कि हो सकता है लालू यादव उन्हें गोली मरवा सकते हैं. कांग्रेस पार्टी के लिए भी यह उपचुनाव काफी अहम है. लंबे समय बाद पार्टी बिहार में कुछ उम्मीद कर रही है. कन्हैया कुमार के आने के बाद कांग्रेस को लगता है कि उनकी पार्टी में नई जान आई है. इसका कितना असर चुनाव में दिखेगा, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं. लोजपा इस बार क्या किसी पार्टी का खेल बिगाड़ेगी, या खुद कोई कमाल दिखाएगी, यह देखना सचमुच ही दिलचस्प होगा.
इसी तरह से हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव प्रचार काफी दिलचस्प हो गया है. यहां पर तीन विधानसभा सीटों अर्की, फतेहपुर तथा जुब्बल-कोटखाई के साथ-साथ मंडी लोकसभा सीट के लिए भी उपचुनाव हो रहे हैं. इस सीट पर एक ओर कांग्रेस पार्टी ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारा है, तो वहीं भाजपा ने कारगिल के मैदान में वीरता दिखाने वाले ब्रिगेडियर कुशल सिंह ठाकुर को खड़ा कर दिया. चुनाव प्रचार के दौरान कई विवादास्पद टिप्पणियां भी की गईं.
हरियाणा के सिरसा जिले के ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. विपक्षी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के उम्मीदवार अभय सिंह चौटाला की नजरें एक बार फिर इस सीट पर जीत हासिल करने पर टिकी हैं. चौटाला ने केंद्रीय कृषि कानूनों के मुद्दे पर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जिसके चलते इस सीट पर उपचुनाव की जरूरत पड़ी है. हरियाणा लोकहित पार्टी के प्रमुख तथा विधायक गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा ने हाल में भाजपा का दामन थाम लिया था. वह इस सीट पर भाजपा-जजपा गठबंधन के उम्मीदवार हैं. पिछले चुनाव में अभय चौटाला से हार का सामना करने वाले पवन बेनीवाल कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं. वह हाल में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए थे. ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण है, जहां ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं.
चुनाव प्रचार के दौरान, अभय चौटाला के बड़े भाई और जननायक जनता पार्टी (जजपा) प्रमुख अजय सिंह चौटाला, उनके बेटे और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने इनेलो के पतन के लिये अभय को जिम्मेदार बताते हुए उन पर निशाना साधा. अभय चौटाला के लिए शनिवार का उपचुनाव जीतना महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि हार इनेलो के लिए एक बड़ा झटका होगी, जो हाल के वर्षों में सिलसिलेवार चुनावी असफलताओं से जूझ रही है. इस उपचुनाव में जहां केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है, वहीं कुछ गांवों में सिंचाई सुविधाओं की कमी और कुछ क्षेत्रों में जलभराव की समस्या जैसे कुछ कारक भी उपचुनाव में भूमिका निभा सकते हैं.
राजस्थान के वल्लभनगर (उदयपुर) और धरियावद (प्रतापगढ़) विधानसभा सीटों पर शनिवार को होने वाले मतदान की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. इस उपचुनाव को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के प्रदर्शन के लिये एक महत्वपूर्ण परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है. दिसम्बर में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के तीन साल पूरे हो रहे हैं. राजस्थान में नेतृत्व के मुद्दे पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच कलह होने के बावजूद गहलोत और पायलट ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी अजय माकन और प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के साथ दोनों विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी रैलियों को संबोधित करने और पार्टी उम्मीदवारों के नामांकन के लिये जयपुर से हेलीकॉप्टर में एक साथ यात्रा कर एकजुटता दिखाने की कोशिश की है. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने जहां महंगाई और ईंधन की बढती कीमतों, घरेलू सिलेंडरों की कीमतों में वृद्धि को लेकर केन्द्र सरकार को निशाना बनाया और राज्य सरकार के कार्यकाल में किये गये काम पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की, वहीं भाजपा ने प्रदेश की कानून व्यवस्था, अपराध दर, बेरोजगारी भत्ता, बिजली की दरों में वृद्धि को प्रमुख तौर पर चुनावी मुद्दा बनाया.
तेलंगाना में हजूराबाद सीट को लेकर टेंपर काफी हाई है. यहां पर सत्ताधारी पार्टी टीआरएस को छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले एटला राजेंद्र मैदान में हैं. उन्होंने खुद टीआरएस से इस्तीफा दिया, इसलिए यहां पर उपचुनाव हो रहे हैं. उन्होंने जमीन हथियाने के आरोपों के बीच मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाये जाने के बाद विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. इस उपचुनाव में 30 प्रत्याशी हैं. लेकिन मुख्य मुकाबला टीआरएस के गेल्लू श्रीनिवास यादव, भाजपा के राजेंद्र और कांग्रेस के वेंकट बालमूरी के बीच है. राजेंद्र के लिए यह उपचुनाव करो या मरो जैसा है और उनकी पार्टी के लिए भी बड़ा अहम है जो 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले टीआरएस के विकल्प के रूप में उभरने का लक्ष्य लेकर चल रही है. विश्लेषक मानते हैं कि बहुत संभव है कि चुनाव में टीआरएस, विपक्षी भाजपा एवं कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हो.
आंध्र प्रदेश के कडपा जिले के बडवेल विधानसभा में उपचुनाव हो रहे हैं. सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के विधायक गुंथोती वेंकट सुब्बैया के मार्च में निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी. पार्टी ने विधायक की पत्नी सुधा को अपना उम्मीदवार बनाया है. विपक्षी दल तेलुगूदेशम पार्टी (तेदेपा) ने परंपरा का सम्मान करने और चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. पार्टी का कहना है कि उनकी पार्टी ने यह परंपरा शुरू की थी अगर उपचुनाव में सीट से निवर्तमान दिवंगत विधायक की पत्नी को टिकट दिया जाता है, तो वह अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी. अभिनेता पवन कल्याण की जन सेना पार्टी द्वारा समर्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार सुरेश पनाथला मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने पी कमलम्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है.
असम में गुसाईंगांव और तामुलपुर के विधायकों के निधन के बाद वहां उपचुनाव की जरूरत पड़ी. वहीं भबानीपुर, मरियानी तथा थोवरा के विधायकों ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के लिए विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
भाजपा के सूत्रों ने बताया कि आमतौर पर उप चुनाव को लेकर बहुत अधिक उत्सुकता नहीं होती है. इसमें तत्कालीन और स्थानीय मुद्दे हावी होते हैं. इसके बावजूद पार्टी इसे पूरी गंभीरता से ले रही है. उन्होंने बताया कि इन परिणामों से हमें राज्य की जनता का मूड भांपने का एक मौका मिल जाएगा. और हो सकता है हम आवश्यकतानुसार वहां पर उसी तरीके से काम भी करें.
इस उपचुनाव में खड़ा होने वाले उम्मीदवारों के बारे में एडीआर ने भी एक विश्लेषण किया है. ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के मुताबिक इस साल विधानसभा उपचुनाव लड़ने जा रहे 235 उम्मीदवारों में कम से कम 44 ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की घोषणा की है. रिपोर्ट में कहा गया है, 'इनमें से 36 (15 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले होने की घोषणा की है.' इसमें कहा गया है कि 77 उम्मीदवार या 33 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं और उनकी संपत्ति का औसत मूल्य 2.99 करोड़ रुपये है. चुनाव निगरानी संस्था ने कहा, '235 उम्मीदवारों में 18 महिलाएं हैं.'