त्रिशूर: केरल के त्रिशूर जिले में स्थित एक संग्रहालय में कभी एशिया के सबसे बड़े हाथी रहे चेंगल्लूर रंगनाथन का स्केलेटन (कंकाल) डिस्प्ले में लगाया गया है. यह हाथी एशिया का सबसे बड़ा हाथी हुआ करता था, जिसकी ऊंचाई 11.4 फीट हुआ करती थी. इतना ही नहीं, इस हाथी का जिक्र केरल के मंदिरों की लोक कथाओं में भी मिलता है, जिसपर महाकवि वल्लथोल नारायण मेनन ने कविताएं भी लिखी हैं. इस हाथी का स्केलेटन संग्रहालय के मुख्य हॉल में लगाया गया है.
बताया जाता है कि इस हाथी को बचपन से तमिलनाडु के मशहूर श्रीरंगम मंदिर में ही पाला गया था, जहां इससे मंदिर में पानी लाने का काम लिया जाता था. बड़ा होने पर इसकी कद काठी इतनी विशालकाय हो गई जिससे इसे मंदिर में अंदर आने के लिए झुकना पड़ता था. इस कारण उसके शरीर में काफी जगह चोटें भी आईं. इसके बाद मंदिर प्रशासन ने इसे डेढ़ हजार रुपये में बेचने के लिए अखबार में विज्ञापन भी दिया था.
विज्ञापन को देखकर चेंगाल्लूर परमेश्वरन नंबूदिरी ने इस हाथी को खरीदा और उसका सही तरह से इलाज कराया. तब से यह हाथी यहां के मंदिरों के उत्सव की शान बन गया और मंदिरों द्वारा आयोजित शोभायात्रा में भगवान की मूर्तियों को ले जाने वाला हाथी बना. हालांकि 1914 में इसपर कुछ हाथियों ने हमला किया जिससे यह काफी घायल हो गया और 1917 में इसकी मौत हो गई.
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हालांकि बात यहीं खत्म नहीं हुई, क्योंकि ब्रिटिश अधिकारियों ने हाथी के मालिक को कहा कि उसके कंकाल को मद्रास संग्रहालय को सौंपा जाए, जिसके बाद उसको दफाना दिया गया. सालों बाद गड्ढे को फिर से खोदा गया और हाथी के कंकाल को बाहर निकाला गया. इस बीच केरल के त्रिशूर संग्रहालय ने मद्रास में अपने समकक्षों से चेंगल्लूर रंगनाथन का स्केलेटन उन्हें देने का आग्रह किया, क्योंकि यह कभी त्रिशूर की शान हुआ करता था. इस बाद मद्रास संग्रहालय राजी हुआ और स्केलेटन त्रिशूर संग्रहालय को सौंपने का निर्णय लिया. बाद में विशेषज्ञों की देखरेख में इसे संग्रहालय के केंद्रीय हॉल में डिस्प्ले में लगाया गया.