नई दिल्ली: भारत और आसियान गुरुवार को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी की दिशा में काम करने पर सहमत हुए, जो उनके रणनीतिक संबंधों को और मजबूत कर सार्थक, वास्तविक तथा पारस्परिक रूप से लाभकारी हों. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत एक मजबूत, एकजुट और समृद्ध आसियान का समर्थन करता है तथा दोनों पक्षों को यूक्रेन में घटनाक्रम से पैदा हुए मुश्किल रास्ते पर चलते हुए नयी प्राथमिकताओं की पहचान करनी चाहिए. दिल्ली में भारत-आसियान विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए जयशंकर ने यूक्रेन संकट से पैदा हुई 'भूराजनीतिक प्रतिकूलताओं' और इसके खाद्य, ऊर्जा सुरक्षा, उर्वरकों तथा सामान की कीमतों के साथ ही साजोसामान तथा आपूर्ति श्रृंखलाओं पर पड़े असर के बारे में बात की.
भारत 10 दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) के साथ अपनी संबंधों की 30वीं वर्षगांठ के मौके पर दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है. इस सम्मेलन में यूक्रेन संकट के व्यापार, अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़े प्रतिकूल असर से निपटने के रास्तों को तलाशने की उम्मीद है. सिंगापुर के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन ने अपने बयान में यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना करते हुए कहा कि अगर ऐसे कार्यों को रोका नहीं गया तो इससे शांति एवं स्थिरता की पूरी व्यवस्था को खतरा हो सकता है, जिसे हमने कई दशकों तक अपनी वृद्धि, विकास और समृद्धि के आधार के लिए मजबूत किया है. आसियान में भारत के लिए देश के समन्वयक बालकृष्णन ने कहा कि रूस के कदमों ने नियमों की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को गिरा दिया है, जिस पर हम सभी निर्भर हैं.
कोविड-19 महामारी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह खत्म नहीं हुई है और जब हम महामारी के बाद बहाली की बात करते हैं तो काफी कुछ किया जाना बाकी है. उन्होंने कहा, भू-राजनीतिक प्रतिकूलताओं के कारण यह रास्ता और भी कठिन हो गया है, जिसका सामना हमें यूक्रेन के घटनाक्रम और इसके खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा पर पड़े प्रभाव के रूप में देखने को मिला है. इसके कारण उर्वरकों, सामान की कीमतों पर असर पड़ा तथा साजोसामान और आपूर्ति श्रृंखला में बाधा आई है.
जयशंकर ने कहा कि आसियान हमेशा क्षेत्रवाद, बहुपक्षवाद और वैश्वीकरण के प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा रहा है. उन्होंने कहा कि आसियान ने अपने लिए सफलतापूर्वक एक जगह बना ली है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक एवं आर्थिक संरचना के लिए नींव तैयार की है. जयशंकर ने कहा कि हिंद-प्रशांत पर आसियान के नजरिए और भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल के बीच मजबूत संयोजन है तथा यह क्षेत्र के लिए दोनों पक्षों के साझा दृष्टिकोण का प्रमाण है.
उन्होंने कहा कि जिसका हम सामना करते हैं, उस पर भारत-आसियान संबंधों को प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए. विदेश मंत्री ने कहा कि दुनिया के समक्ष भू-राजनीतिक चुनौतियों व अनिश्चितताओं को देखते हुए आसियान की भूमिका पहले के मुकाबले आज संभवत: कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं के तहत जब हम पिछले 30 वर्षों के अपने सफर की समीक्षा करते हैं और आगामी दशकों के लिए अपना रास्ता बनाते हैं तो यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी मौजूदा पहलों को जल्द ही पूरा करते हुए नयी प्राथमिकताओं की पहचान करें.
आसियान-भारत संबंधों का विकास
विदेश मंत्री ने आसियान-भारत संबंधों के विकास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे इतिहास में समाहित, साझा मूल्यों द्वारा पोषित और समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं तथा हर गुजरते दशक के साथ मजबूत हो रहे हैं. उन्होंने कहा, 'चूंकि हमारे संबंधों ने चौथे दशक में प्रवेश कर लिया है तो हमारे संबंध उस दुनिया को जवाब देने वाले होने चाहिए, जिसका हम सामना करते हैं. बेहतर तरीके से एक-दूसरे से जुड़े भारत और आसियान विकेंद्रीकृत वैश्वीकरण, लचीली और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए अच्छी स्थिति में होंगे.'
आसियान को क्षेत्र में सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है तथा भारत, अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य देश इसके संवाद साझेदार हैं. आसियान सदस्य देशों के साथ संबंधों की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत बैठक की मेजबानी कर रहा है. जयशंकर और बालकृष्णन गुरुवार से शुरू हुई दो दिवसीय बैठक के सह-अध्यक्ष हैं. यह समझा जाता है कि बैठक के दौरान संसाधन-समृद्ध क्षेत्र दक्षिण चीन सागर की स्थिति पर चर्चा की गई, जहां चीन की आक्रामकता बढ़ गई है.
अपने बयान में सह-अध्यक्षों ने कहा कि बैठक के दौरान संयुक्त राष्ट्र चार्टर, समुद्री कानून पर 1982 के संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (यूएनसीएलओएस) और अन्य प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र संधियों सहित अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सिद्धांतों पर स्थापित बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता जतायी गई. दोनों विदेश मंत्री एक खुले और समावेशी क्षेत्रीय सहयोग ढांचे को बनाए रखने की दिशा में काम करने के लिए सहमत हुए.
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दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ (आसियान) को इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है और भारत, अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देश इसके संवाद भागीदार हैं. बयान में कहा गया कि बैठक में आसियान के मौजूदा नेतृत्व वाले तंत्र का उपयोग करके व्यापक तौर पर राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और विकास सहयोग में आसियान-भारत रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत व गहरा करने पर सहमति जताई गई.
सह-अध्यक्षों ने कहा कि बैठक में आतंकवाद की रोकथाम और उसका मुकाबला करने, कट्टरता और हिंसक उग्रवाद के उभार और अंतरराष्ट्रीय अपराधों से निपटने में आसियान-भारत सहयोग का स्वागत किया गया. दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान) में 10 सदस्य हैं, जिनमें ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलीपीन, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं.