कोटा: राजस्थान के कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए लाखों की तादाद में विद्यार्थी कोटा आते हैं. इन बच्चों के लिए एक-एक अंक मायने रखता है. इसी सिलसिले में कोटा के निजी कोचिंग रिलाएबल ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का प्रयोग करना शुरू किया है.
कोचिंग संस्था के फिजिक्स के एचओडी चंद्रशेखर शर्मा का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का इस्तेमाल हर जगह किया जा रहा है. एकेडमिक्स में भी इसका उपयोग हो रहा है. संस्थान में वर्ष 2020 के लॉक डाउन के बाद ऑनलाइन क्लासेज शुरू की थी. हमने सिस्टम में मशीन लर्निंग सिस्टम लगाकर बच्चों के ऑनलाइन टेस्ट लिए थे. बच्चों को उनकी प्रश्न टाइमिंग, सब्जेक्ट और एग्जाम में किस तरह से टाइम मैनेजमेंट करें, यह जानकारी दी. कई बच्चों को फायदा भी हुआ है. कई बच्चों ने जेईई मेन परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए.
बच्चे को किस फील्ड में जाना चाहिए, यह रुझान भी
एचओडी चंद्रशेखर शर्मा का कहना है कि बच्चा अगर दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है और वह तय नहीं कर पा रहा है कि उसे आगे की पढ़ाई में कॉमर्स, बायोलॉजी या मैथमेटिक्स क्या पढ़ना चाहिए. उसका ओरियंटेशन कुछ टेस्ट के जरिए निकाला जा सकता है. जिसमें उसका रुझान सामने आ जाएगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एनालिसिस रिपोर्ट बता देगी कि मैथमेटिक्स में बच्चे को ज्यादा टाइम लगा था, एक्यूरेसी भी उसकी कम थी. जबकि मैथ्स के कंपैरिजन में बायोलॉजी में ज्यादा आसानी से सही उत्तर दिए हैं. यह एकदम सटीक एनालिसिस होता है.
बच्चा किस सब्जेक्ट में कमजोर
एक्सपर्ट का कहना है कि 11वीं में पढ़ रहे स्टूडेंट को फिजिक्स के 30 चैप्टर अटेंड करने होते हैं. टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर बनी आईए एनालिसिस रिपोर्ट में सामने आता है कि उसका किस टॉपिक में ज्यादा इंटरेस्ट है और किस टॉपिक में उसे सुधार की जरूरत है. मशीन लर्निंग और डेटाबेस की मदद से स्टूडेंट के बिहेवियर के बारे में पता चल जाता है. उसके इंक्लिनेशन, एफिनिटी या पर्टिकुलर टॉपिक के रिपल्शन का पता लगाया जा सकता है.
एक तरह का डायग्नोस्टिक टेस्ट
एक्सपर्ट का मानना है कि यह एक डायग्नोस्टिक टेस्ट है. जिस तरह से एक्सरे या ब्लड टेस्ट के जरिए बीमारी का पता लगाया जा सकता है. उसी तरह से स्टूडेंट की कमजोरी को खोजा जा सकता है, उनमें सुधार कर स्टूडेंट के पढ़ाई के स्तर को अच्छा किया जा सकता है. उस स्टूडेंट को बताया जा सकता है कि उसे किस टॉपिक की तरफ ज्यादा फोकस करना चाहिए. उसके कमजोरी के हिस्से को खोजा जा सकता है.
रिपोर्ट में झलकता है स्टूडेंट का नेचुरल इंटरेस्ट
अगर पांचवी के बच्चे की रिपोर्ट ली जाए, तो उसे नहीं पता होता कि एमबीबीएस या आईआईटी क्या होता है. शुरुआती स्तर पर ही उसका टेस्ट लिया जाएगा, तो नेचुरल इंटरेस्ट सामने आ जाएगा. उस बच्चे से प्रैक्टिकल सब्जेक्ट के टेस्ट लिये जाएं, तो बेसिक आईडिया होगा कि उसका झुकाव बायो की तरफ है या साइंस की तरफ ज्यादा क्यूरियस है, या फिर वह आर्टिस्टिक एक्टिविटी में पार्टिसिपेट करना चाहता है.
पढ़ें- कोटा : राजस्थान स्टेट टैलेंट सर्च एग्जाम 5 दिसंबर को, 27 अक्टूबर तक कर सकेंगे आवेदन
प्रश्नों को अटेंड करने के तरीके में भी सुधार
केमिस्ट्री के एचओडी चांदीप के. सिंघल का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिपोर्ट के आधार पर लॉजिस्टिक लगाकर निकाली गई रिपोर्ट के आधार पर स्टूडेंट से जब बात करते हैं तो उन्हें क्वेश्चन को अटेंड करने का तरीका भी बताते हैं. उन्हें कौन सा प्रश्न पहले करना चाहिए था, कौन सा प्रश्न ईजी था, किस प्रश्न में सभी बच्चों ने स्कोर किया है. ये बातें बताई जाती हैं. कुछ बच्चों को लगता है कि कठिन प्रश्न पहले हल किये जाएं, कठिन प्रश्नों में पहले समय खराब करने की आवश्यकता नहीं है. उसको बाद में हल करना चाहिए, इस तरह बच्चों का ओवरऑल स्कोर बढ़ता है.
पहले केवल गलत और सही का पता चलता था
सिंघल का कहना है कि अप्रैल महीने में बीते साल कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन क्लासेज शुरू की थी. इसी दौरान हमने अपना एक प्लेटफार्म बनाया. इसके तहत बच्चों का लाइव टेस्ट लिया जाता था, बच्चा घर से टेस्ट देता था. जब ऑफलाइन टेस्ट होता था, तब केवल यह पता चलता था कि बच्चे ने कितने प्रश्न हल किये हैं, कितने सही या कितने गलत किये हैं. लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिपोर्ट से यह तक पता लग जाता है कि एक सवाल को हल करने में बच्चे ने कितना टाइम लिया, सवालों को हल करने का उसका औसत सॉल्विंग टाइम कितना है.