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ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट पेश करने के लिए ASI ने फिर मांगा तीन सप्ताह का समय, कल होगी सुनवाई - स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर

वाराणसी ज्ञानवापी परिसर (Varanasi Gyanvapi Parisar) के सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने एक बार फिर कोर्ट से तीन सप्ताह का समय मांगा है. इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई जारी है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 28, 2023, 10:25 AM IST

Updated : Nov 28, 2023, 3:21 PM IST

वाराणसी: ज्ञानवापी परिसर के सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी जिला जज अजय कृष्णा विश्वेश की अदालत में पेश करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने एक बार फिर तीन सप्ताह का समय मांगा है. प्रार्थना पत्र पर मंगलवार को कंडोलेंस होने के करण सुनवाई नहीं हो पाई. अब जिला जज 29 को इस मामले की सुनवाई करेंगी. इस दौरान ज्ञानवापी से संबंधित फाइल भी पेश होगी. वहीं, ज्ञानवापी प्रकरण से संबंधित पांच वादनी महिलाओं के मुकदमे की सुनवाई 29 को नवंबर होगी.

दोनों पक्ष के अधिवक्ता पहुंचे कोर्ट
वाराणसी जिला जज अजय कृष्णा विश्वेश की अदालत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी पहुंच गए हैं. बता दें कि 17 नवंबर को ज्ञानवापी सर्वे की रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में सौंपने का आदेश इसके पहले कोर्ट ने दिया था, लेकिन एएसआई की टीम ने कोर्ट में एक एप्लीकेशन देकर 15 दिन का अतिरिक्त वक्त मांगा था.

कोर्ट ने दिया था 10 दिन का समय
सर्वे के दौरान मिली हनुमान, गणेश समेत शंकर और पार्वती इत्यादि की खंडित मूर्तियों के अलावा शिखर और फूल इत्यादि की कलाकृतियों के टूटे हुए हिस्से के अलावा अन्य चीजों को भी संरक्षित करने का आदेश कोर्ट ने देकर जिलाधिकारी को उसकी जिम्मेदारी सौंपी थी. कोर्ट ने इस रिपोर्ट के अलावा 17 नवंबर को एएसआई द्वारा तिथि बढ़ाए जाने की एप्लीकेशन पर सुनवाई करते हुए 15 की जगह 10 दिन का समय दिया था. साथ ही 28 नवंबर तक रिपोर्ट सबमिट करने का आदेश दिया था. उस वक्त एएसआई के वकील की यह दलील थी कि रिपोर्ट तैयार है, बस तकनीक की पहलुओं और रडार सिस्टम के इस्तेमाल के बाद उसकी रिपोर्ट को तैयार करने में वक्त लग रहा है.

हैदराबाद की टीम ने किया जीपीआर का प्रयोग
फिलहाल ज्ञानवापी परिसर में हुए सर्वे के दौरान हैदराबाद से आई एक्सपोर्ट टीम ने ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार यानी जीपीआर का उपयोग किया था. हैदराबाद की टीम ने लगभग 120 पन्ने की रिपोर्ट एएसआई को दी है. इसके बाद जिसकी संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार करने के साथ ही रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी.

रिपोर्ट डिजिटल और फिजिकल होगी पेश
फिलहाल यहां पर सर्वे के दौरान टीम ने दोनों तहखाना, मुख्य गुंबद, मुख्य हाल और अन्य जगहों पर एक्सरे के साथ जीपीआर तकनीक का प्रयोग करके जमीन के अंदर छुपी सच्चाई को भी जानने की कोशिश की है.

350 साल पुराना है विवाद
हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर ध्वस्त करके मस्जिद बनाई गई थी. वाराणसी जिला कोर्ट में पहली याचिका स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से दाखिल की गई थी. इसमें परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी. 1936 में ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व पर बहस आगे बढ़ी. उसी समय तीन मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने पूरे क्षेत्र को मस्जिद का हिस्सा घोषित करने की मांग की. सुनवाई में मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी में नमाज अदा करने का अधिकार दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि पूरे परिसर में कहीं भी नमाज पढ़ी जा सकती है.

हाईकोर्ट से याचिका हुई थी खारिज
1942 में इस फैसले के खिलाफ हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हिंदू पक्ष को झटका लग गया था. हाईकोर्ट में 1942 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और याचिका खारिज कर दिया था.

1991 में सुर्खियों में आया मामला
एक लंबे वक्त के बाद 1991 में ज्ञानवापी का मुद्दा एकबार फिर सुर्खियों में आ गया था. 1991 में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर के नाम पर फिर से नया मुकदमा दाखिल हुआ. इसमें मस्जिद को पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम के लागू न होने की बात कहते हुए पुरातन मंदिर का हिस्सा बताया गया.


2020 में हुई थी सर्वेक्षण की मांग
1998 में दलील पर ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन ने जवाबी आवेदन किया. 1991 की पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधानों के अधीन इस पूरे परिसर को बताया. 2019 में भगवान विश्वेश्वर की ओर से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में 2019 में अपील करते हुए पूरे क्षेत्र के सर्वेक्षण की मांग की. इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया और 2020 में सर्वेक्षण की मांग खारिज होने के बाद हाईकोर्ट ने इस पर स्टे को आगे नहीं बढ़ाया.

5 महिलाओं ने की पूजा-अर्चना की मांग
अप्रैल 2021 में फिर से सर्वेक्षण की मांग की गई, जिस पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इंतजामिया कमेटी ने विरोध किया. हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद सर्वे पर अंतिम रोक लगा दी. 18 अप्रैल 2021 में मामले में नया मोड़ आया और राखी सिंह समेत 4 अन्य महिलाओं लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने यहां मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में नियमित दर्शन पूजन की अनुमति मांगी. पूरे क्षेत्र को मंदिर का हिस्सा बताते हुए इसे सुरक्षित संरक्षित करने की मांग की गई.


वजूखाने में शिवलिंग का दावा
6 मई 2022 को वकीलों की टीम की देखरेख में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी शुरू हुई. 12 मई 2022 को विरोध के बाद कोर्ट ने सर्वे जारी रखने की बात कही. 17 मई तक कमीशन की रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया गया. इसमे 16 मई को हिंदू पक्ष की तरफ से परिसर के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया. इस पर जिला कोर्ट ने और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस जगह को सुरक्षित करने के लिए सील करने का आदेश दिया.

ज्ञानवापी परिसर में सीआईएसएफ की तैनाती
11 नवंबर 2022 को वजूखाने में मिली संरचना को संरक्षित करने के आदेश के बाद यहां पर सीआईएसएफ की तैनाती की गई और परिसर सील कर दिया गया. जुलाई 2023 को ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का आदेश दिया गया और एएसआई सर्वे की शुरुआत 21 जुलाई के आदेश के बाद हुई. इस आदेश के बाद सर्वे शुरू हुआ, लेकिन मुस्लिम पक्ष के विरोध की वजह से उसे रोक दिया गया.

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दोनों पक्ष के अधिवक्ता पहुंचे कोर्ट
वाराणसी जिला जज अजय कृष्णा विश्वेश की अदालत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी पहुंच गए हैं. बता दें कि 17 नवंबर को ज्ञानवापी सर्वे की रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में सौंपने का आदेश इसके पहले कोर्ट ने दिया था, लेकिन एएसआई की टीम ने कोर्ट में एक एप्लीकेशन देकर 15 दिन का अतिरिक्त वक्त मांगा था.

कोर्ट ने दिया था 10 दिन का समय
सर्वे के दौरान मिली हनुमान, गणेश समेत शंकर और पार्वती इत्यादि की खंडित मूर्तियों के अलावा शिखर और फूल इत्यादि की कलाकृतियों के टूटे हुए हिस्से के अलावा अन्य चीजों को भी संरक्षित करने का आदेश कोर्ट ने देकर जिलाधिकारी को उसकी जिम्मेदारी सौंपी थी. कोर्ट ने इस रिपोर्ट के अलावा 17 नवंबर को एएसआई द्वारा तिथि बढ़ाए जाने की एप्लीकेशन पर सुनवाई करते हुए 15 की जगह 10 दिन का समय दिया था. साथ ही 28 नवंबर तक रिपोर्ट सबमिट करने का आदेश दिया था. उस वक्त एएसआई के वकील की यह दलील थी कि रिपोर्ट तैयार है, बस तकनीक की पहलुओं और रडार सिस्टम के इस्तेमाल के बाद उसकी रिपोर्ट को तैयार करने में वक्त लग रहा है.

हैदराबाद की टीम ने किया जीपीआर का प्रयोग
फिलहाल ज्ञानवापी परिसर में हुए सर्वे के दौरान हैदराबाद से आई एक्सपोर्ट टीम ने ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार यानी जीपीआर का उपयोग किया था. हैदराबाद की टीम ने लगभग 120 पन्ने की रिपोर्ट एएसआई को दी है. इसके बाद जिसकी संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार करने के साथ ही रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी.

रिपोर्ट डिजिटल और फिजिकल होगी पेश
फिलहाल यहां पर सर्वे के दौरान टीम ने दोनों तहखाना, मुख्य गुंबद, मुख्य हाल और अन्य जगहों पर एक्सरे के साथ जीपीआर तकनीक का प्रयोग करके जमीन के अंदर छुपी सच्चाई को भी जानने की कोशिश की है.

350 साल पुराना है विवाद
हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर ध्वस्त करके मस्जिद बनाई गई थी. वाराणसी जिला कोर्ट में पहली याचिका स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से दाखिल की गई थी. इसमें परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी. 1936 में ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व पर बहस आगे बढ़ी. उसी समय तीन मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने पूरे क्षेत्र को मस्जिद का हिस्सा घोषित करने की मांग की. सुनवाई में मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी में नमाज अदा करने का अधिकार दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि पूरे परिसर में कहीं भी नमाज पढ़ी जा सकती है.

हाईकोर्ट से याचिका हुई थी खारिज
1942 में इस फैसले के खिलाफ हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हिंदू पक्ष को झटका लग गया था. हाईकोर्ट में 1942 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और याचिका खारिज कर दिया था.

1991 में सुर्खियों में आया मामला
एक लंबे वक्त के बाद 1991 में ज्ञानवापी का मुद्दा एकबार फिर सुर्खियों में आ गया था. 1991 में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर के नाम पर फिर से नया मुकदमा दाखिल हुआ. इसमें मस्जिद को पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम के लागू न होने की बात कहते हुए पुरातन मंदिर का हिस्सा बताया गया.


2020 में हुई थी सर्वेक्षण की मांग
1998 में दलील पर ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन ने जवाबी आवेदन किया. 1991 की पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधानों के अधीन इस पूरे परिसर को बताया. 2019 में भगवान विश्वेश्वर की ओर से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में 2019 में अपील करते हुए पूरे क्षेत्र के सर्वेक्षण की मांग की. इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया और 2020 में सर्वेक्षण की मांग खारिज होने के बाद हाईकोर्ट ने इस पर स्टे को आगे नहीं बढ़ाया.

5 महिलाओं ने की पूजा-अर्चना की मांग
अप्रैल 2021 में फिर से सर्वेक्षण की मांग की गई, जिस पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और इंतजामिया कमेटी ने विरोध किया. हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद सर्वे पर अंतिम रोक लगा दी. 18 अप्रैल 2021 में मामले में नया मोड़ आया और राखी सिंह समेत 4 अन्य महिलाओं लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने यहां मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में नियमित दर्शन पूजन की अनुमति मांगी. पूरे क्षेत्र को मंदिर का हिस्सा बताते हुए इसे सुरक्षित संरक्षित करने की मांग की गई.


वजूखाने में शिवलिंग का दावा
6 मई 2022 को वकीलों की टीम की देखरेख में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी शुरू हुई. 12 मई 2022 को विरोध के बाद कोर्ट ने सर्वे जारी रखने की बात कही. 17 मई तक कमीशन की रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया गया. इसमे 16 मई को हिंदू पक्ष की तरफ से परिसर के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया. इस पर जिला कोर्ट ने और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस जगह को सुरक्षित करने के लिए सील करने का आदेश दिया.

ज्ञानवापी परिसर में सीआईएसएफ की तैनाती
11 नवंबर 2022 को वजूखाने में मिली संरचना को संरक्षित करने के आदेश के बाद यहां पर सीआईएसएफ की तैनाती की गई और परिसर सील कर दिया गया. जुलाई 2023 को ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का आदेश दिया गया और एएसआई सर्वे की शुरुआत 21 जुलाई के आदेश के बाद हुई. इस आदेश के बाद सर्वे शुरू हुआ, लेकिन मुस्लिम पक्ष के विरोध की वजह से उसे रोक दिया गया.

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Last Updated : Nov 28, 2023, 3:21 PM IST
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