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पुलिस की 'डिक्शनरी' से गायब होंगे अरबी, फारसी और उर्दू के शब्द, जानिए क्या होगा बदलाव - अरबी फारसी भाषा का इस्तेमाल

यूपी पुलिस के दस्तावेजों की लिखापढ़ी में अंग्रेजों के जमाने वाली अरबी फारसी भाषा का इस्तेमाल होता रहा है, लेकिन जल्द ही इसे बदलने की तैयारी की जा रही है.

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Published : Jun 8, 2023, 5:25 PM IST

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लखनऊ : कत्ल, आला-ए-कत्ल, फर्द, तरमीम, मौका-ए-वारदात और गश्त ये वो शब्द हैं जो आपने कभी न कभी सुने होंगे, लेकिन शायद ही इसका मतलब जानते ही होंगे. ये वो शब्द हैं जो पुलिसिया लिखा पढ़ी में सौ वर्षों से इस्तमाल होते आ रहे हैं, लेकिन अब ये शब्द पुलिस की 'डिक्शनरी' से गायब होने वाले हैं. वो इसलिए क्योंकि इन उर्दू और फारसी शब्दों को हिंदी में बदलने को तैयारी हो रही है.

चार्जशीट या एफआईआर में होते हैं कठिन शब्द : मुगल काल के दौरान प्रचलन में आए अरबी, फारसी और उर्दू के शब्द आज भी पुलिस की लिखा पढ़ी में चल रहे हैं. अक्सर फर्द में लिखा जाता है कि पुलिस गश्त में मामूर थी, तभी जरिए मुखबिर मालूम हुआ कि एक नफर अभियुक्त मयमाल मौजूद है, जिस पर हमरान सिपाहियान संग दबिश देकर उसे पकड़ा गया है. रूबरू संतरी प्रहरी जामा तलाशी ली गई, जिस्म जरवात पाक-साफ व ताजा है, हस्ब ख्वाहिश खुराक पूछी गई, गमे गिरफ्तारी खुराक खाने से मुनकिर है. ये शब्द आम जनता को तो छोड़िए अधिकांश पुलिस कर्मियों को भी इन शब्दों के हिंदी अर्थ की जानकारी तक नहीं है. इसी को लेकर तीन वर्ष पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने इन शब्दों के स्थान पर सरल हिंदी शब्दों के इस्तमाल करने के निर्देश दिए थे, जिसके बाद वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग ने सार्थक पहल करते हुए इन सभी उर्दू, फारसी और अरबी शब्दों का हिंदी अनुवाद करना शुरू किया था, जो अब अंतिम चरण में है.


शब्दों में होगा बदलाव
शब्दों में होगा बदलाव



आयोग के अध्यक्ष प्रो. गिरीशनाथ झा के मुताबिक, 'मुगल और अंग्रेज शासनकाल से ही पुलिस और कोर्ट की शब्दावली में उर्दू, अरबी व फारसी शब्दों का प्रयोग होता रहा है. ऐसे में उनकी टीम इन शब्दों को हिंदी में अनुवाद कर रही है, जिसकी शुरुआत पुलिस की शब्दावली से हुई है. उन्होंने बताया कि, अब तक मौलिक शब्दकोशों के पांच हजार शब्दों का डोगरी, संथाली, डुमका सहित 10 अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है.'

ये शब्द होते हैं इस्तमाल

आला-ए-कल्ल - हत्या में प्रयुक्त हथियार
मरसला - भेजी गई
लफ है - संलग्न है
आमदोरफत - आवागमन
इकरारनामा - प्रतिज्ञापन
जरे तजवीज - विचाराधीन
हमराही मुलाजमान - साथ वाले कर्मचारी
अस्साल है - प्रस्तुत है
मुजारिया - भेजा गया
जमानतदार - प्रतिभूतिदाता
खतो खितावत - पत्राचार
अर्जदारात - याचिका
रवानगी - प्रस्थान करना
आमद - पहुंचना
सुपुर्दगी - सौंपना
तफ्तीश - जांच
हमराह - साथ में
तस्दीक - किसी के बारे में पुष्टि करना
तामील - आज्ञा का पालन करना
समन - अदालत का आदेश
दबिश - छापामारी
चिक खुराक - थाने पर आरोपित के खाने पर हुआ खर्च
नकल रपट - किसी लेख की नकल
नकल चिक - एफआइआर की प्रति
मौका मुरत्तिब - घटनास्थल पर की गई कार्रवाई
बाइस्तवा - शक, संदेह,
तरमीम - बदलाव करना अथवा बदलना
चस्पा - चिपकाना
जरे खुराक - खाने का पैसा
जामा तलाशी - वस्त्रों की छानबीन
बयान तहरीर - लिखित कथन
नक्शे अमन - शांतिभंग
माल मसरूका - लूटी अथवा चोरी गई संपत्ति
मजरूब - पीड़ित,
मुजामत - झगड़ा
मुचलका - व्यक्तिगत पत्र
रोजनामचा आम - सामान्य दैनिक
रोजनामचा खास - अपराध दैनिक
सफीना - बुलावा पत्र
हाजा - स्थान अथवा परिसर
अदम तामील - सूचित न होना
अदम तकमीला - अंकन न होना
अदम मौजूदगी - बिना उपस्थिति
अहकाम - महत्वपूर्ण
गोस्वारा - नक्शा

हिंदी प्रोफसर मानते हैं अच्छा कदम : लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी प्रोफेसर पवन अग्रवाल कहते हैं कि 'राजभाषा की एक नियति होती है कि जैसे-जैसे शासक बदलता है वैसे ही राजभाषा भी बदलती रहती है. भारत में काफी वर्षों से मुगलों का शासन रहा है और फिर अंग्रेजों ने शासन किया. ऐसे में शासकीय दस्तावेजों में उर्दू, अरबी और फारसी शब्द आने लगे थे. अब यह विडंबना है कि 1947 में आजाद होने के बाद भी हम उन शब्दों को ज्यों के त्यों इस्तमाल करते रहे, हालांकि खुशी इस बात की है कि अब की सरकारें इस ओर कार्य कर रही हैं.'

यह भी पढ़ें : ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार को करने होंगे और काम

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लखनऊ : कत्ल, आला-ए-कत्ल, फर्द, तरमीम, मौका-ए-वारदात और गश्त ये वो शब्द हैं जो आपने कभी न कभी सुने होंगे, लेकिन शायद ही इसका मतलब जानते ही होंगे. ये वो शब्द हैं जो पुलिसिया लिखा पढ़ी में सौ वर्षों से इस्तमाल होते आ रहे हैं, लेकिन अब ये शब्द पुलिस की 'डिक्शनरी' से गायब होने वाले हैं. वो इसलिए क्योंकि इन उर्दू और फारसी शब्दों को हिंदी में बदलने को तैयारी हो रही है.

चार्जशीट या एफआईआर में होते हैं कठिन शब्द : मुगल काल के दौरान प्रचलन में आए अरबी, फारसी और उर्दू के शब्द आज भी पुलिस की लिखा पढ़ी में चल रहे हैं. अक्सर फर्द में लिखा जाता है कि पुलिस गश्त में मामूर थी, तभी जरिए मुखबिर मालूम हुआ कि एक नफर अभियुक्त मयमाल मौजूद है, जिस पर हमरान सिपाहियान संग दबिश देकर उसे पकड़ा गया है. रूबरू संतरी प्रहरी जामा तलाशी ली गई, जिस्म जरवात पाक-साफ व ताजा है, हस्ब ख्वाहिश खुराक पूछी गई, गमे गिरफ्तारी खुराक खाने से मुनकिर है. ये शब्द आम जनता को तो छोड़िए अधिकांश पुलिस कर्मियों को भी इन शब्दों के हिंदी अर्थ की जानकारी तक नहीं है. इसी को लेकर तीन वर्ष पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने इन शब्दों के स्थान पर सरल हिंदी शब्दों के इस्तमाल करने के निर्देश दिए थे, जिसके बाद वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग ने सार्थक पहल करते हुए इन सभी उर्दू, फारसी और अरबी शब्दों का हिंदी अनुवाद करना शुरू किया था, जो अब अंतिम चरण में है.


शब्दों में होगा बदलाव
शब्दों में होगा बदलाव



आयोग के अध्यक्ष प्रो. गिरीशनाथ झा के मुताबिक, 'मुगल और अंग्रेज शासनकाल से ही पुलिस और कोर्ट की शब्दावली में उर्दू, अरबी व फारसी शब्दों का प्रयोग होता रहा है. ऐसे में उनकी टीम इन शब्दों को हिंदी में अनुवाद कर रही है, जिसकी शुरुआत पुलिस की शब्दावली से हुई है. उन्होंने बताया कि, अब तक मौलिक शब्दकोशों के पांच हजार शब्दों का डोगरी, संथाली, डुमका सहित 10 अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है.'

ये शब्द होते हैं इस्तमाल

आला-ए-कल्ल - हत्या में प्रयुक्त हथियार
मरसला - भेजी गई
लफ है - संलग्न है
आमदोरफत - आवागमन
इकरारनामा - प्रतिज्ञापन
जरे तजवीज - विचाराधीन
हमराही मुलाजमान - साथ वाले कर्मचारी
अस्साल है - प्रस्तुत है
मुजारिया - भेजा गया
जमानतदार - प्रतिभूतिदाता
खतो खितावत - पत्राचार
अर्जदारात - याचिका
रवानगी - प्रस्थान करना
आमद - पहुंचना
सुपुर्दगी - सौंपना
तफ्तीश - जांच
हमराह - साथ में
तस्दीक - किसी के बारे में पुष्टि करना
तामील - आज्ञा का पालन करना
समन - अदालत का आदेश
दबिश - छापामारी
चिक खुराक - थाने पर आरोपित के खाने पर हुआ खर्च
नकल रपट - किसी लेख की नकल
नकल चिक - एफआइआर की प्रति
मौका मुरत्तिब - घटनास्थल पर की गई कार्रवाई
बाइस्तवा - शक, संदेह,
तरमीम - बदलाव करना अथवा बदलना
चस्पा - चिपकाना
जरे खुराक - खाने का पैसा
जामा तलाशी - वस्त्रों की छानबीन
बयान तहरीर - लिखित कथन
नक्शे अमन - शांतिभंग
माल मसरूका - लूटी अथवा चोरी गई संपत्ति
मजरूब - पीड़ित,
मुजामत - झगड़ा
मुचलका - व्यक्तिगत पत्र
रोजनामचा आम - सामान्य दैनिक
रोजनामचा खास - अपराध दैनिक
सफीना - बुलावा पत्र
हाजा - स्थान अथवा परिसर
अदम तामील - सूचित न होना
अदम तकमीला - अंकन न होना
अदम मौजूदगी - बिना उपस्थिति
अहकाम - महत्वपूर्ण
गोस्वारा - नक्शा

हिंदी प्रोफसर मानते हैं अच्छा कदम : लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी प्रोफेसर पवन अग्रवाल कहते हैं कि 'राजभाषा की एक नियति होती है कि जैसे-जैसे शासक बदलता है वैसे ही राजभाषा भी बदलती रहती है. भारत में काफी वर्षों से मुगलों का शासन रहा है और फिर अंग्रेजों ने शासन किया. ऐसे में शासकीय दस्तावेजों में उर्दू, अरबी और फारसी शब्द आने लगे थे. अब यह विडंबना है कि 1947 में आजाद होने के बाद भी हम उन शब्दों को ज्यों के त्यों इस्तमाल करते रहे, हालांकि खुशी इस बात की है कि अब की सरकारें इस ओर कार्य कर रही हैं.'

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