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राजस्थान में मोदी मैजिक नहीं चला, सत्ता विरोधी लहर ने पहुंचाया नुकसान: कांग्रेस

राजस्थान के प्रभारी एआईसीसी सचिव काजी निज़ामुद्दीन ने कहा, 'ऐसा लगता है कि सत्ता विरोधी लहर ने हमारे खिलाफ काम किया है. लेकिन मैंने देखा है कि राज्य चुनावों में कोई मोदी फैक्टर नहीं था.' ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता अमित अग्निहोत्री की रिपोर्ट. rajasthan assembly election result 2023, ElectionResults, four state assembly elections 2023 result.

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कांग्रेस खबर
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 3, 2023, 7:34 PM IST

Updated : Dec 3, 2023, 7:47 PM IST

नई दिल्ली: कांग्रेस ने रविवार को कहा कि राजस्थान विधानसभा के नतीजे 'इतने बुरे नहीं' हैं और दावा किया कि भाजपा की जीत के पीछे कोई 'मोदी मैजिक' नहीं था. राजस्थान के प्रभारी एआईसीसी सचिव काजी निज़ामुद्दीन ने ईटीवी भारत से कहा कि 'यह हमारे लिए ख़ुशी का दिन नहीं है लेकिन नतीजा इतना बुरा भी नहीं है. ऐसा लगता है कि सत्ता विरोधी लहर ने हमारे खिलाफ काम किया है. लेकिन मैंने देखा है कि राज्य चुनावों में कोई मोदी फैक्टर नहीं था.'

एआईसीसी पदाधिकारी ने अपनी बात साबित करने के लिए कुछ उदाहरणों का हवाला दिया. काजी निज़ामुद्दीन ने कहा कि 'हनुमानगढ़ जिले की इलिबंगा आरक्षित सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार विनोद गोठवाल 2018 में 278 वोटों से हार गए थे लेकिन इस बार उन्होंने 50,000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की. पीएम मोदी ने इलाके में प्रचार तो किया था लेकिन उनका जादू नहीं चला. इसी तरह, नागौर सीट पर पीएम मोदी ने बहुचर्चित बीजेपी उम्मीदवार ज्योति मिर्धा के लिए प्रचार किया लेकिन वह हार गईं. चुनाव से ठीक पहले ज्योति मिर्धा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गईं. फिर भी यहां कोई मोदी जादू नहीं चला. और भी कई उदाहरण हैं.'

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, चुनावी हार के पीछे कांग्रेस विधायकों के खिलाफ जनता के गुस्से ने भूमिका निभाई. एआईसीसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'जहां भी हमने मौजूदा विधायकों को बदला वहां परिणाम अच्छे रहे. उदाहरण के लिए हमने अनूपगढ़, सूरतगढ़ और रायसिंहनगर में मौजूदा विधायकों को बदल दिया और हम जीत गए. हम कुछ कारणों से सादुलशहर में मौजूदा विधायकों को नहीं बदल सके और हम सीट हार गए.'

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि गौरव गोगोई की अध्यक्षता वाली स्क्रीनिंग कमेटी ने 99 मौजूदा विधायकों में से कम से कम आधे को बदलने का सुझाव दिया था, लेकिन उनमें से कई को गहलोत के प्रभाव के कारण समायोजित किया गया था और इस तथ्य के कारण भी कि उन्हें अंतिम समय में बदला नहीं जा सका था.

कांग्रेस ने 2018 में सरकार बनाई थी लेकिन 2013 का चुनाव बुरी तरह हार गई थी और कुल 200 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 21 सीटें जीत पाई थी. बीजेपी ने 163 सीटें जीती थीं.

राजस्थान के उम्मीदवारों का चयन करने वाली स्क्रीनिंग कमेटी का हिस्सा रहे एआईसीसी सचिव अभिषेक दत्त ने ईटीवी भारत से कहा कि 'यह अच्छा परिणाम नहीं है लेकिन हमने राजस्थान में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. हर बार कांग्रेस टर्नअराउंड में 30-35 सीटों तक पहुंच जाती थी लेकिन इस बार हम 70 के करीब पहुंचे. पार्टी की नीतियों को जनता ने स्वीकार किया.'

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके पूर्व डिप्टी सचिन पायलट के बीच लगातार सार्वजनिक विवादों के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच संवादहीनता की स्थिति पैदा हुई.

एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, 'पिछले पांच वर्षों में गहलोत-पायलट के झगड़े ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया. आलाकमान ने हस्तक्षेप किया और चुनाव से पहले युद्धविराम किया लेकिन नुकसान हो चुका था. गहलोत-पायलट के झगड़े के परिणामस्वरूप हम लगभग 20-25 सीटें हार गए. इसके अलावा, राज्य सरकार द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई और आधे विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी.'

कांग्रेस के रणनीतिकार राजस्थान में रिवाल्विंग डोर परंपरा को उलटने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे, जहां पिछले तीन दशकों में हर पांच साल में सरकारें बदलती रहीं लेकिन सफल नहीं रहीं.

काजी निज़ामुद्दीन ने कहा कि 'पार्टी ने जोरदार लड़ाई लड़ी. गहलोत ने आक्रामक अभियान का नेतृत्व किया और जीत सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया. उनकी कल्याणकारी योजनाओं का लोगों ने स्वागत किया और सात गारंटी का व्यापक प्रचार किया. ऐसा लगता है कि मतदाताओं को अधिक उम्मीदें थीं और वे भाजपा के प्रचार में बह गए.'

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नई दिल्ली: कांग्रेस ने रविवार को कहा कि राजस्थान विधानसभा के नतीजे 'इतने बुरे नहीं' हैं और दावा किया कि भाजपा की जीत के पीछे कोई 'मोदी मैजिक' नहीं था. राजस्थान के प्रभारी एआईसीसी सचिव काजी निज़ामुद्दीन ने ईटीवी भारत से कहा कि 'यह हमारे लिए ख़ुशी का दिन नहीं है लेकिन नतीजा इतना बुरा भी नहीं है. ऐसा लगता है कि सत्ता विरोधी लहर ने हमारे खिलाफ काम किया है. लेकिन मैंने देखा है कि राज्य चुनावों में कोई मोदी फैक्टर नहीं था.'

एआईसीसी पदाधिकारी ने अपनी बात साबित करने के लिए कुछ उदाहरणों का हवाला दिया. काजी निज़ामुद्दीन ने कहा कि 'हनुमानगढ़ जिले की इलिबंगा आरक्षित सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार विनोद गोठवाल 2018 में 278 वोटों से हार गए थे लेकिन इस बार उन्होंने 50,000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की. पीएम मोदी ने इलाके में प्रचार तो किया था लेकिन उनका जादू नहीं चला. इसी तरह, नागौर सीट पर पीएम मोदी ने बहुचर्चित बीजेपी उम्मीदवार ज्योति मिर्धा के लिए प्रचार किया लेकिन वह हार गईं. चुनाव से ठीक पहले ज्योति मिर्धा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गईं. फिर भी यहां कोई मोदी जादू नहीं चला. और भी कई उदाहरण हैं.'

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, चुनावी हार के पीछे कांग्रेस विधायकों के खिलाफ जनता के गुस्से ने भूमिका निभाई. एआईसीसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'जहां भी हमने मौजूदा विधायकों को बदला वहां परिणाम अच्छे रहे. उदाहरण के लिए हमने अनूपगढ़, सूरतगढ़ और रायसिंहनगर में मौजूदा विधायकों को बदल दिया और हम जीत गए. हम कुछ कारणों से सादुलशहर में मौजूदा विधायकों को नहीं बदल सके और हम सीट हार गए.'

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि गौरव गोगोई की अध्यक्षता वाली स्क्रीनिंग कमेटी ने 99 मौजूदा विधायकों में से कम से कम आधे को बदलने का सुझाव दिया था, लेकिन उनमें से कई को गहलोत के प्रभाव के कारण समायोजित किया गया था और इस तथ्य के कारण भी कि उन्हें अंतिम समय में बदला नहीं जा सका था.

कांग्रेस ने 2018 में सरकार बनाई थी लेकिन 2013 का चुनाव बुरी तरह हार गई थी और कुल 200 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 21 सीटें जीत पाई थी. बीजेपी ने 163 सीटें जीती थीं.

राजस्थान के उम्मीदवारों का चयन करने वाली स्क्रीनिंग कमेटी का हिस्सा रहे एआईसीसी सचिव अभिषेक दत्त ने ईटीवी भारत से कहा कि 'यह अच्छा परिणाम नहीं है लेकिन हमने राजस्थान में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. हर बार कांग्रेस टर्नअराउंड में 30-35 सीटों तक पहुंच जाती थी लेकिन इस बार हम 70 के करीब पहुंचे. पार्टी की नीतियों को जनता ने स्वीकार किया.'

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके पूर्व डिप्टी सचिन पायलट के बीच लगातार सार्वजनिक विवादों के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच संवादहीनता की स्थिति पैदा हुई.

एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, 'पिछले पांच वर्षों में गहलोत-पायलट के झगड़े ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया. आलाकमान ने हस्तक्षेप किया और चुनाव से पहले युद्धविराम किया लेकिन नुकसान हो चुका था. गहलोत-पायलट के झगड़े के परिणामस्वरूप हम लगभग 20-25 सीटें हार गए. इसके अलावा, राज्य सरकार द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई और आधे विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी.'

कांग्रेस के रणनीतिकार राजस्थान में रिवाल्विंग डोर परंपरा को उलटने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे, जहां पिछले तीन दशकों में हर पांच साल में सरकारें बदलती रहीं लेकिन सफल नहीं रहीं.

काजी निज़ामुद्दीन ने कहा कि 'पार्टी ने जोरदार लड़ाई लड़ी. गहलोत ने आक्रामक अभियान का नेतृत्व किया और जीत सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया. उनकी कल्याणकारी योजनाओं का लोगों ने स्वागत किया और सात गारंटी का व्यापक प्रचार किया. ऐसा लगता है कि मतदाताओं को अधिक उम्मीदें थीं और वे भाजपा के प्रचार में बह गए.'

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Last Updated : Dec 3, 2023, 7:47 PM IST
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