अहमदनगर : बीते 28 दिनों से जारी किसान आंदोलन को वरिष्ठ गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का समर्थन मिला है. उन्होंने कहा है कि वे किसानों की मांगों के समर्थन में दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन करेंगे. अन्ना ने कहा कि वे पिछले 4 वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं, प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री और सरकार की ओर से तमाम आश्वासन दिए जा रहे हैं, लेकिन कोई अपनी बात पर कायम नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार अपने वादे का पालन नहीं कर रही है, इसलिए उन्होंने फिर से आंदोलन करने का फैसला लिया है.
ईटीवी भारत संवाददाता राजेंद्र त्रिमुखे ने अन्ना हजारे से विशेष बात की. आंदोलन की जगह के सवाल पर अन्ना ने कहा कि उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन करने की अनुमति लेने के लिए उन्होंने दिल्ली पुलिस कमिश्नर और अन्य संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखा है. जवाब आने पर जगह फाइनल की जाएगी.
अन्ना हजारे ने कहा कि चार वर्षों से किसानों की उपज का सही दाम मिलना चाहिए. स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश के आधार पर किसानों को भुगतान होना चाहिए. उन्होंने कहा कि उत्पादों की ठीक कीमत न मिलने का कारण राज्य की ओर से जो एमएसपी केंद्र के पास भेजती है, इसमें केंद्र 20 से 50 फीसदी की कटौती करती है. इस कारण किसानों को ठीक कीमतें नहीं मिल पातीं, इस कारण किसान आत्महत्या करते हैं.
समस्या के समाधान को लेकर अन्ना हजारे ने कहा कि केंद्रीय कृषि आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की जरूरत है. ऐसा करने से सरकार का हस्तक्षेप बंद होगा. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की तरह एक स्वायत्त निकाय बनने और सरकारी हस्तक्षेप बंद होने के बाद किसानों की परेशानी दूर की जा सकेगी.
फसलों की एमएसपी पर अन्ना ने कहा कि आलू, टमाटर और दूध जैसी चीजों पर एमएसपी तय नहीं की गई है. इनकी एमएसपी तय होनी चाहिए. ऐसा करने से किसान दूध, टमाटर और आलू सड़कों पर नहीं फेंकेंगे.
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गौरतलब है कि विगत 26 नवंबर से ही कई किसान संगठन दिल्ली-हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर व उत्तर प्रदेश से लगती सीमा पर धरना दे रहे हैं. इस संबंध में संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि सरकार जब तक तीनों कानूनों को रद्द नहीं करती, उनका विरोध जारी रहेगा.
दिलचस्प है कि कृषि मंत्री तोमर ने गत 17 दिसंबर को एक पत्र लिखकर किसानों से गतिरोध समाप्त करने की अपील की थी. तोमर ने अपने पत्र में 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध का भी जिक्र किया था. उनके पत्र को पीएम मोदी ने रीट्वीट कर कहा था कि कृषि मंत्री ने अपनी भावनाएं किसानों के सामने रखी हैं, तोमर के पत्र को अन्नदाता जरूर पढ़ें.
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बता दें कि केंद्र और किसानों के बीच तीन दिसंबर को हुई सात घंटे की मैराथन वार्ता बेनतीजा रहने के बाद पांच दिसंबर को अगली बैठक का फैसला लिया गया था. किसानों और केंद्र सरकार के बीच अंतिम वार्ता विगत पांच दिसंबर को होने के बाद आठ दिसंबर के भारत बंद के बाद गृह मंत्री शाह और कुछ किसान नेताओं के बीच भी बैठक हुई थी. शाह के साथ बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि सरकार अड़ियल रूख दिखा रही है. अब वार्ता नहीं होगी.
आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट का रूख
इससे पहले 17 दिसंबर को किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा वैकेशन बैंच इस मामले की सुनवाई करेगी. कोर्ट ने कहा किसान संगठनों की बात सुनने के बाद ही आदेश जारी किया जाएगा. उच्चतम न्यायालय ने संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है क्योंकि यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है.
कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष
बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.
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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.