नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश सरकार ने यह आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि तेलंगाना सरकार ने उसे पीने और सिंचाई के लिए पानी के अपने वैध हिस्से से वंचित कर दिया है. आंध्र सरकार ने इसे 'असंवैधानिक और अवैध' करार दिया है.
जगन मोहन रेड्डी सरकार ने कहा कि तेलंगाना की टीआरएस सरकार आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत गठित शीर्ष परिषद में लिए गए निर्णयों, इस अधिनियम के तहत गठित कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) के निर्देशों और केंद्र के निर्देशों का पालन करने से इनकार कर रही है.
याचिका में कहा गया है कि धारा 87 (1) के तहत बोर्ड केवल ऐसे पहलुओं के संबंध में अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकता है, जो केंद्र द्वारा अधिसूचित किए गए हैं, लेकिन अभी तक ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है.
दलील में तर्क दिया गया कि केआरएमबी के अधिकार क्षेत्र की अधिसूचना पर कोई प्रगति नहीं होने के कारण, तेलंगाना अपने आयोग के जरिए सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिए आंध्र प्रदेश को पानी की आपूर्ति को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है.
याचिका में कहा गया है कि श्रीशैलम बांध परियोजना में, तेलंगाना में बिजली उत्पादन के लिए पानी के उपयोग के कारण जलाशय की मात्रा गंभीर रूप से कम हो गई है.
आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा कि इससे उसके लोगों को भारी कठिनाई हुई है, क्योंकि श्रीशैलम बांध परियोजना (Srisailam Dam) के साथ-साथ नागार्जुन सागर परियोजना और पुलीचिंतला परियोजना जैसी अन्य परियोजनाओं में कमी से पानी की उपलब्धता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है.
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जगन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस सरकार ने तर्क दिया कि तेलंगाना सरकार की कार्रवाई असंवैधानिक है और यह हमारे लोगों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.
आंध्र प्रदेश ने शीर्ष अदालत से केंद्र को निर्देश देने का आग्रह किया कि वह श्रीशैलम, नागार्जुनसागर और पुलीचिंतला जलाशय के सामान्य जलाशयों को अपने सभी आउटलेट के साथ नियंत्रित करे और प्रचलित संचालन नियमों के अनुसार इसे संचालित करे.