देहरादून(उत्तराखंड): हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता, यहां के कण-कण में भगवान का वास है. उत्तराखंड को ऋषियों की तपस्थली भी कहा जाता है. यही कारण है कि तमाम वेदों और पुराणों में उत्तराखंड का वर्णन अपने-अपने तरीके से किया गया है. आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर टंगी घंटियां और चिट्ठयों की संख्या बताती है की इस मंदिर में लोगों की कितनी आस्था है. मंदिर में बैठे देवता को लेकर मान्यता है की वो न्याय के देवता हैं. मतलब कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने वाले लोग हो या कोई भी मुराद हो, ये देवता सबकी मनौतियां पूरी करते हैं. देवता का ये मंदिर अल्मोड़ा जिले में स्थित है. जिसे चितई गोलू देवता को नाम से जाना जाता है. क्या है इस मंदिर की मान्यता और इससे जुड़ी कहानी, चलिये आपको बताते हैं.
सफर में घुमावदार मोड़, पहाड़ और खूबसूरत मौसम: उत्तराखंड में मानसून का सीजन है. जगह-जगह पर सड़कें टूटी हुई हैं. गढ़वाल और कुमाऊं के अधिकतर हिस्सों में बारिश ने लोगों को परेशान किया हुआ हैं, मगर फिर भी बारिश से पहाड़ का मौसम खूबसूरत हो गया है. ऐसे ही एक सफर पर हम निकले. हमें जाना था उस मंदिर के दर्शन के लिए जहां के लिए कहा जाता है कि लोग उसे मंदिर में न्याय पाने के लिए आते हैं. जब सब तरफ से इंसानों के लिए रास्ते बंद हो जाते हैं तब भगवान चितई गोलू देवता लोगों का सहारा बनते हैं. हमारा सफर हरिद्वार के तराई के इलाके से शुरू हुआ. यहां से हम लगभग 5 घंटे का सफर तय करने के बाद कुमाऊं के सबसे बड़े शहर हल्द्वानी पहुंचे. यहां तक पहुंचाने के लिए लखनऊ, मुरादाबाद नेशनल हाईवे से भी पहुंचा जा सकता है. हल्द्वानी पहुंचने के बाद हमने अगले दिन आगे का सफर तय किया. खूबसूरत मौसम और हल्की बूंदाबांदी के साथ-साथ पहाड़ों में कोहरा लगा हुआ था. गाड़ी 30 से 35 किलोमीटर घंटे की रफ्तार से अब तराई के इलाके से पहाड़ी इलाके में चलने लगी. नैनीताल के आसपास की झील हमें दिखाई देने लगी थी. नौकुचियाताल, भवाली होते हुए हम अब नैनीताल जिले को पार करते हुए अल्मोड़ा की तरफ बढ़ रहे थे.
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रास्ते में हुए नीब करौली बाबा के दर्शन:नैनीताल से लगभग 35 किलोमीटर हम आगे चल ही थे कि रास्ते में हमें नीब करौली बाबा के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. सुबह के वक्त पहली आरती में हमने हिस्सा लिया. यहां भक्त बाबा नीब करौली बाबा के भक्ति में डूबे नजर आये. यहां लगभग 30 मिनट रुकने के बाद हमने आगे बढ़ाने का प्लान बनाया. नीब करौली बाबा के दरबार से बाहर निकालने के बाद यहां पर स्थित रंग बिरंगी दुकान और उसमें बिकने वाले सामान ने हमारा ध्यान खींचा. जिसमें प्रसाद, चूड़ी, माला, नीब करौली बाबा की बड़ी तस्वीरें शामिल थी. इसके अलावा कुछ होटल भी हमे दिखाई दिये. सर्द मौसम और सफर में हमने यहां रुककर चाय की चुस्कियां ली. जिससे तरोताजा होकर हम आगे के सफर पर निकल पड़े.
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दो घंटे के सफर के बाद हमारे सामने थे वो देवता: बीच-बीच में कहीं कच्ची रोड आती तो कहीं सरकारी गाड़ियां और बुलडोजर हमें यह बता रहे थे कि बारिश से यहां के हालात भी बिगड़े हैं. जिन्हें सुधारने के लिए सरकारी मशीनरी जुटी हुई है. ढ़ेड़ी मेढी सड़कों से होते हुए हमारे मन में चितई गोलू देवता के दर्शन का ईच्छा हिलोरे मार रही थी. हम जल्द से जल्द उस मंदिर के दर्शन करना चाहते थे जहां हर कोई पहुंचना चाहता है. लिहाजा, हमने अपना सफर शुरू किया. पहाड़ से गुजरती हुई गाड़ी हमें यह बता रही थी कि आखिरकार क्यों उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. हर आधे या 1 किलोमीटर दूर पर हमें कोई ना कोई धार्मिक स्थल दिखाई दे रहा था. ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर बने घर और घर में रह रहे लोग और उनका जीवन हमें यह बता रहा था की पहाड़ों पर रहना कितना मुश्किल है.
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उत्तराखंड की एक खास बात यह है कि पहाड़ के लोग पहाड़ में इतने खुश हैं कि वह तराई की ओर आना ही नहीं चाहते. उनकी दुनिया इन्हीं पहाड़ों में बसती है. पेड़ों की खुशबू और मध्यम मध्यम बरसात के बाद गीली मिट्टी से उठने वाली सौंधी खुशबू रास्ते के इस सफर को और भी मनमोहक बना रहे थे. लगभग 2 घंटे के सफर के बाद हमारे सामने भगवान चितई गोलू देवता का मंदिर था. गाड़ी से उतरने के बाद हमने देखा आसपास जो दुकाने हैं उनमें घंटे घड़ियालों का अंबार लगा हुआ है. छोटी घंटियों से लेकर बड़े-बड़े घंटे दुकानों में रखे हुए हैं. आसपास भगवान गोलू देवता की महिमा का बखान करते हुए भजन सुनाई दे रहे थे. स्थानीय लोग भी भक्ति में सराबोर दिखाई दे रहे थे. आसपास के लोगों ने हमें बताया इस मंदिर में मन्नत की चिट्ठी और न्याय के लिए घंटियों का दान किया जाता है.
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घंटियों और चिट्ठियां का मंदिर में लगा अंबार:दुकानों में 300 रुपए से लेकर 30000 रूपए तक की घंटियां आपको दिख जाएंगी. हमने सोचा भला इतनी महंगी और इतनी बड़ी घंटियां आखिरकार लोग क्यों मंदिर में चढ़ाएंगे? हमने जैसे ही मंदिर में पहला कदम रखा हम आसपास का माहौल देखकर हैरान और मंत्रमुग्ध थे. हमें मंदिर में चारों तरफ घंटियां ही घंटियां दिखाई दे रही थी. मंदिर की दीवारों, पेड़ों, मंदिर के गुंबद तक पर घंटियां और चिट्ठियां बंधी हुई थी. हम जैसे ही मंदिर में दाखिल होते गए तो हमें घंटियां और चिट्ठियों का अंबार दिखता चला गया. मंदिर के मुख्य दरवाजे से जैसे ही अंदर गये तो सामने घोड़े पर सवार भगवान गोलू देवता की मूर्ति थी. हाथों में धनुष और एक हाथ में घोड़े की नाल पकड़े देवता के बारे में हमने मंदिर के अंदर बैठे पुजारी से बातचीत की. उन्होंने हमें बताया एक छवि दीवार के अंदर दिखाई दे रही है तो दूसरी मूर्ति में आप देख पा रहे हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मन्नत की चिट्ठियां और घंटियां पहले इन्हीं देवता के सामने जाती है. पंडित जी ने संकल्प लिया. उसके बाद हाथों में प्रसाद देकर हमें कहा कि अब आप इन घंटियों और चिट्ठियों को बाहर बांध सकते हैं. हम इधर-उधर घूम रहे थे लेकिन हमें यहां कोई जगह नहीं मिली. हम यह नहीं समझ पा रहे थे कि इन्हें कहां बांधा जाए ?आखिरकार हमने इस भीड़ में अपने द्वारा लाई गई घंटियों और चिट्ठियों को वहां बांध दिया.
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क्या है मंदिर से जुड़ी मान्यता: मंदिर में पहुंचने के बाद हमें मालूम हुआ की मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं. मंदिर को गॉड ऑफ जस्टिस के नाम से भी जाना जाता है. लोग यहां पर एफिडेविट के साथ अपनी फरियाद लेकर आते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद यहां पर भगवान गोलू देवता को घंटी चढ़ाई जाती है. ऐसा नहीं है कि छोटी बड़ी घंटी का कोई महत्व नहीं है. आपकी जैसी श्रद्धा हो आप वैसा भाव भगवान को दिखा सकते है. मंदिर में मौजूद पुजारी संतोष पंत ने बताया हर साल यहां पर भारत ही नहीं बल्कि देश के अलग अलग हिस्सों से लोग दर्शन के लिए आते हैं. इस मंदिर को घंटियों वाला मंदिर भी कहा जाता है. नए-नवेले जोड़े भी इस मंदिर में माथा टेकने आते हैं.
गोलू देवता चंद राजा बहादुर शासन काल में सेवा में जनरल थे. जिन्होंने एक लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. उन्हीं के सम्मान में इस स्थान की स्थापना की गई थी. 12वीं शताब्दी में चंद्रवंश के सेनापति ने इस मंदिर का निर्माण करवाया. हालांकि, इस बात का प्रमाण आज भी किसी के पास नहीं है कि यह मंदिर कब और कैसे बना. इसे किसने बनवाया इसे लेकर भी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. यह मंदिर जिस स्वरुप में बना है उसको देखकर यही अंदाजा लगता है कि 19वीं शताब्दी में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ होगा. मंदिर में मौजूद भगवान गोलू देवता को भगवान शिव और विष्णु का अवतार भी माना जाता है. इतनी अधिक संख्या में भक्तों की भीड़, चिट्ठी और घंटियां देखकर यह साफ है की कोई ना कोई दिव्य शक्ति इस स्थान पर जरूर है. ये दिव्य शक्ति यहां आने वाले हर इंसान की मनोकामना पूरी करती है. साथ ही उसे न्याय दिलाने का काम करती है.