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UP विधानसभा चुनाव : सियासी पार्टियों में गठबंधन की होड़, छाेटी पार्टियाें की बढ़ी डिमांड

आगामी यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी सियासी पार्टियों में अब गठबंधन की होड़ मची है. लेकिन खास बात यह है कि बड़ी पार्टियों की तुलना में छोटी पार्टियां अधिक डिमांड में हैं. वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तो यहां तक कह दिया है कि उन्हें बड़ी पार्टियों से गठबंधन की कोई जरूरत नहीं है.

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Published : Nov 6, 2021, 3:07 PM IST

हैदराबाद : यूपी विधानसभा चुनाव को अभी वक्त है. लेकिन सियासी पार्टियों में सब्र नहीं है और बेसब्री का आलम यह है कि अभी से ही प्रचार के लिए पार्टियां मैदान में कूद गई हैं. वहीं, खुद के नफा-नुकसान को देखते हुए अब तेजी से गठबंधन की गांठे बंधने लगी हैं.

भाजपा के साथ हैं ये पार्टियां

बात अगर सूबे की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के सहयोगी पार्टियों की करें तो यहां भाजपा के साथ अपना दल (सोनेलाल) से पुराना गठबंधन है. इसकी नेता अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री भी हैं. वो नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में भी मंत्री थीं. अपना दल (सोनेलाल) को मुख्य तौर पर कुर्मी जाति की पार्टी माना जाता है. जिसका पूर्वांचल और अवध के कुछ जिलों में खासा प्रभाव है. वहीं, अपना दल ने साल 2017 का विधानसभा चुनाव भी भाजपा के साथ मिलकर 11 सीटों पर लड़ा था, जिसमें से उसे नौ सीटों पर कामयाबी मिली थी.

बता दें कि प्रदेश में यादव के बाद कुर्मी पिछड़ा वर्ग का सबसे बड़े वोट बैंक हैं. सीटों के आधार पर अपना दल (सोनेलाल) फिलहाल कांग्रेस से बड़ी पार्टी है. इसके अलावा भाजपा का निषाद पार्टी से भी समझौता है. केवट, मल्लाह, बिंद और नोनिया जैसी पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली निषाद पार्टी का आधार भी पूर्वांचल में ही है. गोरखपुर लोकसभा सीट पर 2018 में हुए उपचुनाव में मिली हार के बाद भाजपा ने निषाद पार्टी से गठबंधन किया था.

इधर, भाजपा ने 2019 के आम चुनाव में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद के बेटे प्रवीन कुमार निषाद को संतकबीरनगर से टिकट दिया था और वे यहां से जीत दर्ज किए थे. इसके बाद भाजपा ने संजय निषाद को विधान परिषद भेज दिया. ऐसे में अब भाजपा और निषाद पार्टी ने 2022 के चुनाव के लिए अभी सीट बंटवारे पर कोई घोषणा नहीं की है. लेकिन गठबंधन तय है.

इससे पहले बीते 20 अक्टूबर को ओमप्रकाश राजभर ने जब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा की तो भाजपा ने भी सात छोटी पार्टियों के सहयोग व समर्थन की घोषणा कर दी. ये पार्टियां हैं केवट रामधनी बिन्द की भारतीय मानव समाज पार्टी, चन्द्रमा वनवासी की मुसहर आन्दोलन मंच (गरीब पार्टी), बाबू लाल राजभर की शोषित समाज पार्टी, कृष्णगोपाल सिंह कश्यप की मानवहित पार्टी, चन्दन सिंह चौहान की पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और महेंद्र प्रजापति की भारतीय समता समाज पार्टी. ये सभी जाति आधारित सियासी पार्टियां हैं.

सपा के साथ हैं ये पार्टियां

दरअसल, समाजवादी पार्टी ने 2017 का चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था, जिसमें उसे बुरी तरह से पराजय का मुंह देखना पड़ा था. ऐसे में अब सपा की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि वे अब बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. सपा ने अब तक ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और महान दल से हाथ मिलाया है. वहीं, उसने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और कुछ अन्य छोटी पार्टियों के साथ भी समझौते की बात कही है.

इधर, ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा का आधार भी पिछड़ी जातियों में ही है. इसे ध्यान में रखकर सपा ने उससे समझौता किया है. सुभासपा ने पिछला चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था और उसे आठ में से चार सीटों पर जीत मिली थी. सपा का दूसरा बड़ा सहयोगी है, महान दल. इसकी स्थापना केशव देव मौर्य ने 2008 में बसपा छोड़कर किया था. इसका आधार कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, सैनी जैसी पिछड़ी जातियों में माना जाता है. साथ ही इसका प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में है. महान दल ने 2008 के बाद सभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़े.

लेकिन उसे जीत नहीं मिल सकी. महान दल ने 2012 का चुनाव 14 सीटों पर लड़ा था. लेकिन सभी सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. महान दल को 96 हजार 87 वोट मिले थे. वहीं, 2017 का चुनाव महान दल ने 74 सीटों पर लड़ा. इनमें से 71 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी और पार्टी पर कुल 6 लाख 83 हजार 808 मतदाताओं ने भरोसा जताया था. सपा इनके अलावा ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी मोर्चे के कुछ और दलों के साथ भी तालमेल कर सकती है.

खैर, कांग्रेस और बसपा ने फिलहाल तक किसी से समझौता नहीं किया है. बसपा ने अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा की है. वहीं ऐसी खबरें हैं कि कांग्रेस समझौते के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाली रालोद के साथ बातचीत कर रही है. वहीं, रालोद ने अपना घोषणापत्र तो जारी कर दिया है. लेकिन गठबंधन पर फिलहाल खामोशी साध रखा है.

हैदराबाद : यूपी विधानसभा चुनाव को अभी वक्त है. लेकिन सियासी पार्टियों में सब्र नहीं है और बेसब्री का आलम यह है कि अभी से ही प्रचार के लिए पार्टियां मैदान में कूद गई हैं. वहीं, खुद के नफा-नुकसान को देखते हुए अब तेजी से गठबंधन की गांठे बंधने लगी हैं.

भाजपा के साथ हैं ये पार्टियां

बात अगर सूबे की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के सहयोगी पार्टियों की करें तो यहां भाजपा के साथ अपना दल (सोनेलाल) से पुराना गठबंधन है. इसकी नेता अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री भी हैं. वो नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में भी मंत्री थीं. अपना दल (सोनेलाल) को मुख्य तौर पर कुर्मी जाति की पार्टी माना जाता है. जिसका पूर्वांचल और अवध के कुछ जिलों में खासा प्रभाव है. वहीं, अपना दल ने साल 2017 का विधानसभा चुनाव भी भाजपा के साथ मिलकर 11 सीटों पर लड़ा था, जिसमें से उसे नौ सीटों पर कामयाबी मिली थी.

बता दें कि प्रदेश में यादव के बाद कुर्मी पिछड़ा वर्ग का सबसे बड़े वोट बैंक हैं. सीटों के आधार पर अपना दल (सोनेलाल) फिलहाल कांग्रेस से बड़ी पार्टी है. इसके अलावा भाजपा का निषाद पार्टी से भी समझौता है. केवट, मल्लाह, बिंद और नोनिया जैसी पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली निषाद पार्टी का आधार भी पूर्वांचल में ही है. गोरखपुर लोकसभा सीट पर 2018 में हुए उपचुनाव में मिली हार के बाद भाजपा ने निषाद पार्टी से गठबंधन किया था.

इधर, भाजपा ने 2019 के आम चुनाव में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद के बेटे प्रवीन कुमार निषाद को संतकबीरनगर से टिकट दिया था और वे यहां से जीत दर्ज किए थे. इसके बाद भाजपा ने संजय निषाद को विधान परिषद भेज दिया. ऐसे में अब भाजपा और निषाद पार्टी ने 2022 के चुनाव के लिए अभी सीट बंटवारे पर कोई घोषणा नहीं की है. लेकिन गठबंधन तय है.

इससे पहले बीते 20 अक्टूबर को ओमप्रकाश राजभर ने जब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा की तो भाजपा ने भी सात छोटी पार्टियों के सहयोग व समर्थन की घोषणा कर दी. ये पार्टियां हैं केवट रामधनी बिन्द की भारतीय मानव समाज पार्टी, चन्द्रमा वनवासी की मुसहर आन्दोलन मंच (गरीब पार्टी), बाबू लाल राजभर की शोषित समाज पार्टी, कृष्णगोपाल सिंह कश्यप की मानवहित पार्टी, चन्दन सिंह चौहान की पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और महेंद्र प्रजापति की भारतीय समता समाज पार्टी. ये सभी जाति आधारित सियासी पार्टियां हैं.

सपा के साथ हैं ये पार्टियां

दरअसल, समाजवादी पार्टी ने 2017 का चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था, जिसमें उसे बुरी तरह से पराजय का मुंह देखना पड़ा था. ऐसे में अब सपा की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि वे अब बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. सपा ने अब तक ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और महान दल से हाथ मिलाया है. वहीं, उसने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और कुछ अन्य छोटी पार्टियों के साथ भी समझौते की बात कही है.

इधर, ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा का आधार भी पिछड़ी जातियों में ही है. इसे ध्यान में रखकर सपा ने उससे समझौता किया है. सुभासपा ने पिछला चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था और उसे आठ में से चार सीटों पर जीत मिली थी. सपा का दूसरा बड़ा सहयोगी है, महान दल. इसकी स्थापना केशव देव मौर्य ने 2008 में बसपा छोड़कर किया था. इसका आधार कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, सैनी जैसी पिछड़ी जातियों में माना जाता है. साथ ही इसका प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में है. महान दल ने 2008 के बाद सभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़े.

लेकिन उसे जीत नहीं मिल सकी. महान दल ने 2012 का चुनाव 14 सीटों पर लड़ा था. लेकिन सभी सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. महान दल को 96 हजार 87 वोट मिले थे. वहीं, 2017 का चुनाव महान दल ने 74 सीटों पर लड़ा. इनमें से 71 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी और पार्टी पर कुल 6 लाख 83 हजार 808 मतदाताओं ने भरोसा जताया था. सपा इनके अलावा ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी मोर्चे के कुछ और दलों के साथ भी तालमेल कर सकती है.

खैर, कांग्रेस और बसपा ने फिलहाल तक किसी से समझौता नहीं किया है. बसपा ने अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा की है. वहीं ऐसी खबरें हैं कि कांग्रेस समझौते के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभाव रखने वाली रालोद के साथ बातचीत कर रही है. वहीं, रालोद ने अपना घोषणापत्र तो जारी कर दिया है. लेकिन गठबंधन पर फिलहाल खामोशी साध रखा है.

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