प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को पारिवारिक विवाद पर सुनवाई करते हुए थानों में दर्ज होने वाली FIR को लेकर अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि एफआईआर कोई पोर्न साहित्य नहीं है, जहां चित्रमय विवरण पेश किया जाए. कोर्ट ने एफआईआर दर्ज कराते समय भाषा की मर्यादा को बनाए रखने के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका को भी रेखांकित किया. इसके साथ ही कहा कि पारिवारिक विवादों को निस्तारित करने के लिए मामलों को पहले गठित होने वाली परिवार कल्याण समितियों के पास भेजा जाए.
इसके साथ ही कूलिंग पीरियड (FIR दर्ज होने के बाद दो महीने का समय) के दौरान गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. कोर्ट ने हाईकोर्ट के महानिबंधक को निर्देश दिया है कि वह कोर्ट के आदेश की कॉपी को उत्तर प्रदेश सरकार, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव कानून, जिला न्यायालयों को भेजेंगे. कहा है कि जिससे परिवार कल्याण समितियां गठित होकर तीन महीने में काम शुरू कर दें. यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने हापुर जिले के साहिब बंसल, मंजू बंसल और मुकेश बंसल की पुनर्विचार याचिका पर एक साथ निस्तारित करते हुए दिया है.
कोर्ट ने कहा है कि मामले में वादी मुकदमा ने एफआईआर की भाषा ऐसी लिखाई है कि उसे पढ़ने पर मन में घृणित मनोभाव पैदा होता है. कोर्ट ने मामले में वादी मुकदमा की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर की निंदा की. कहा कि प्रतिवादी की ओर से चित्रमय विवरण देने का प्रयास किया गया है. कहा कि एफआईआर सूचना देने के लिए है. यह सॉफ्ट पोर्न साहित्य नहीं है, जहां चित्रमय विवरण प्रस्तुत किया जाए.
कोर्ट ने मामले में सर्वोच्च न्यायालय केएक केस का हवाला देते हुए अधिवक्ताओं के दायित्व को भी रेखाकिंत किया. कहा कि वे बहुत बार मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, जिसमें भाषा की मर्यादा को लांघ जाते हैं. कोर्ट ने एफआईआर में केवल घटना की जानकारी देने पर ज़ोर दिया. इसकेसाथ ही कहा कि वैवाहिक विवादों में एफआईआर दर्ज होने के बाद दो महीने तक (कूलिंग पीरियड) कोई भी गिरफ्तारी नहीं होगी और मामले को तुरंत परिवार कल्याण समिति के पास भेजा जाएगा.
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