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Live in relation पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी, कहा- हर मौसम में साथी बदलना ठीक नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशन पर टिप्पणी (Allahabad HC Comment Live in relation) की. कहा कि फिल्में और टीवी सीरियल समाज में गंदगी फैला रहे हैं.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 2, 2023, 4:33 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहमति संबंध (लिव इन रिलेशन) पर टिप्पणी की. कहा कि लिव इन रिलेशन को समाज में मान्यता नहीं प्राप्त है. फिल्में और टीवी सीरियल समाज में गंदगी फैला रहे हैं. हर मौसम में साथी बदलना एक स्थिर और सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है, युवाओं को बाद में पछतावा होता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी शुक्रवार को लिव इन रिलेशन से जुड़े एक मामले में सहारनपुर के आरोपी को जमानत देने के दौरान की.

लिव इन रिलेशन को सामाजिक स्वीकृति नहीं : सहारनपुर के अदनान पर आरोप है कि उसने एक साल तक सहमति संबंध में रहने वाली युवती के साथ दुष्कर्म किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे जमानत दे दी. अदनान पर धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत मुकदमा दर्ज है. एक साल तक लिव इन रिलेशन में रहने वाली युवती ने गर्भवती होने के बाद अदनान पर दुष्कर्म का आरोप लगाया. शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि ऊपरी तौर पर सहमति संबंध बहुत आकर्षक रिश्ता लगता है. युवाओं को लुभाता है, लेकिन समय बीतने के साथ उन्हें अहसास होता है कि इस रिश्ते की कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं है. इस कारण उनमें हताशा बढ़ने लगती है.

लिव इन रिलेशन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की.
लिव इन रिलेशन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की.

चुनौतियों पर भी चर्चा : न्यायाधीश ने कहा कि विवाह में व्यक्ति को जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और स्थिरता मिलती है, वह सहमति संबंध में नहीं मिल पाती है. अदालत ने आदेश में सहमति संबंध से बाहर निकलने वाले लोगों, विशेषकर महिलाओं, के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा भी की. उन्होंने कहा कि उनके लिए सामान्य सामाजिक स्थिति हासिल करना मुश्किल होता है.

शर्तों का उल्लंघन पर रद्द होगी जमानत : न्यायाधीश ने अदनान को जमानत देने के फैसले के पीछे जेलों में भीड़भाड़, आरोपी के मुकदमे के त्वरित निस्तारण के अधिकार और हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया. अदालत ने जमानत देते हुए आरोपी पर कई शर्तें भी लगाईं. इसमें सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने, मुकदमे में ईमानदारी से सहयोग करने, आपराधिक गतिविधियों से बचने और गवाहों को प्रभावित नहीं करना आदि शामिल हैं. इन शर्तों का उल्लंघन करने पर जमानत रद्द हो सकती है.

यह भी पढ़ें : युवती के साथ पांच साल तक रहा लिव इन में, फिर करा दिया गर्भपात, रिपोर्ट दर्ज

लिव इन पार्टनर को शादी का झांसा देकर तीन बार किया गर्भवती, धर्म परिवर्तन का डाला दबाव

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहमति संबंध (लिव इन रिलेशन) पर टिप्पणी की. कहा कि लिव इन रिलेशन को समाज में मान्यता नहीं प्राप्त है. फिल्में और टीवी सीरियल समाज में गंदगी फैला रहे हैं. हर मौसम में साथी बदलना एक स्थिर और सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है, युवाओं को बाद में पछतावा होता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी शुक्रवार को लिव इन रिलेशन से जुड़े एक मामले में सहारनपुर के आरोपी को जमानत देने के दौरान की.

लिव इन रिलेशन को सामाजिक स्वीकृति नहीं : सहारनपुर के अदनान पर आरोप है कि उसने एक साल तक सहमति संबंध में रहने वाली युवती के साथ दुष्कर्म किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे जमानत दे दी. अदनान पर धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत मुकदमा दर्ज है. एक साल तक लिव इन रिलेशन में रहने वाली युवती ने गर्भवती होने के बाद अदनान पर दुष्कर्म का आरोप लगाया. शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि ऊपरी तौर पर सहमति संबंध बहुत आकर्षक रिश्ता लगता है. युवाओं को लुभाता है, लेकिन समय बीतने के साथ उन्हें अहसास होता है कि इस रिश्ते की कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं है. इस कारण उनमें हताशा बढ़ने लगती है.

लिव इन रिलेशन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की.
लिव इन रिलेशन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की.

चुनौतियों पर भी चर्चा : न्यायाधीश ने कहा कि विवाह में व्यक्ति को जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और स्थिरता मिलती है, वह सहमति संबंध में नहीं मिल पाती है. अदालत ने आदेश में सहमति संबंध से बाहर निकलने वाले लोगों, विशेषकर महिलाओं, के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा भी की. उन्होंने कहा कि उनके लिए सामान्य सामाजिक स्थिति हासिल करना मुश्किल होता है.

शर्तों का उल्लंघन पर रद्द होगी जमानत : न्यायाधीश ने अदनान को जमानत देने के फैसले के पीछे जेलों में भीड़भाड़, आरोपी के मुकदमे के त्वरित निस्तारण के अधिकार और हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया. अदालत ने जमानत देते हुए आरोपी पर कई शर्तें भी लगाईं. इसमें सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने, मुकदमे में ईमानदारी से सहयोग करने, आपराधिक गतिविधियों से बचने और गवाहों को प्रभावित नहीं करना आदि शामिल हैं. इन शर्तों का उल्लंघन करने पर जमानत रद्द हो सकती है.

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