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मीडिया के लिए दिशा-निर्देश बनाने संबंधी याचिका खारिज, अदालत ने कहा- यह कोर्ट के दायरे में नहीं

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Published : Sep 8, 2021, 10:36 PM IST

याचिका कर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि मीडिया को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी कराए जाने से झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित समाचार फैलाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है. इस पर अदालत ने कहा कि प्रार्थना मुख्य रूप से नीति के दायरे में है और कोर्ट के दायरे में नहीं है. इसलिए कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया.

अदालत
अदालत

लखनऊ : मीडिया को विनियमित करने के उद्देश्य से दिशा-निर्देश तैयार करने की राज्य को निर्देश देने की याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित खबरों का खतरा समाज को नुकसान पहुंचा रहा है. लेकिन याचिकाकर्ता की मांग नीति के दायरे में आती है, कोर्ट के दायरे में नहीं.

जानकारी के मुताबिक, जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अब्दुल मोइन की खंडपीठ ने इस याचिका की सुनवाई की. याचिका कर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि मीडिया को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी कराए जाने से झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित समाचार फैलाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है. इस पर अदालत ने कहा कि प्रार्थना मुख्य रूप से नीति के दायरे में है और कोर्ट के दायरे में नहीं है. इसलिए कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस तरह से मीडिया में गड़बड़ी की प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक नीति तैयार करने/लाने के लिए राज्य को निर्देश देने की मांग की है, जो कोर्ट के दायरे से बाहर है.

बता दें कि इससे पहले भी उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया मंचों और वेब पोर्टल्स पर फर्जी खबरों पर गंभीर चिंता जतायी थी. अदालत ने कहा था कि मीडिया के एक वर्ग में दिखायी जाने वाली खबरों में साम्प्रदायिकता का रंग होने से देश की छवि खराब हो सकती है.

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ फर्जी खबरों के प्रसारण पर रोक के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में निजामुद्दीन स्थित मरकज में धार्मिक सभा से संबंधित 'फर्जी खबरें' फैलाने से रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

अदालत ने कहा कि वेब पोर्टल्स और यूट्यूब चैनलों पर फर्जी खबरों तथा छींटाकशीं पर कोई नियंत्रण नहीं है. अगर आप यूट्यूब देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे फर्जी खबरें आसानी से प्रसारित की जा रही हैं और कोई भी यूट्यूब पर चैनल शुरू कर सकता है.

लखनऊ : मीडिया को विनियमित करने के उद्देश्य से दिशा-निर्देश तैयार करने की राज्य को निर्देश देने की याचिका को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित खबरों का खतरा समाज को नुकसान पहुंचा रहा है. लेकिन याचिकाकर्ता की मांग नीति के दायरे में आती है, कोर्ट के दायरे में नहीं.

जानकारी के मुताबिक, जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अब्दुल मोइन की खंडपीठ ने इस याचिका की सुनवाई की. याचिका कर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि मीडिया को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी कराए जाने से झूठी, मनगढ़ंत और सुनियोजित समाचार फैलाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है. इस पर अदालत ने कहा कि प्रार्थना मुख्य रूप से नीति के दायरे में है और कोर्ट के दायरे में नहीं है. इसलिए कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस तरह से मीडिया में गड़बड़ी की प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक नीति तैयार करने/लाने के लिए राज्य को निर्देश देने की मांग की है, जो कोर्ट के दायरे से बाहर है.

बता दें कि इससे पहले भी उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया मंचों और वेब पोर्टल्स पर फर्जी खबरों पर गंभीर चिंता जतायी थी. अदालत ने कहा था कि मीडिया के एक वर्ग में दिखायी जाने वाली खबरों में साम्प्रदायिकता का रंग होने से देश की छवि खराब हो सकती है.

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ फर्जी खबरों के प्रसारण पर रोक के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में निजामुद्दीन स्थित मरकज में धार्मिक सभा से संबंधित 'फर्जी खबरें' फैलाने से रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

अदालत ने कहा कि वेब पोर्टल्स और यूट्यूब चैनलों पर फर्जी खबरों तथा छींटाकशीं पर कोई नियंत्रण नहीं है. अगर आप यूट्यूब देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे फर्जी खबरें आसानी से प्रसारित की जा रही हैं और कोई भी यूट्यूब पर चैनल शुरू कर सकता है.

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