लखनऊ : यूपी पुलिस का आंकड़ा बताता है कि, बीते पांच वर्षों में 57 पुलिसकर्मी घूस लेते रंगे हाथ गिरफ्तार (UP Traffic Police Employees) हुए हैं. ये गिरफ्तारी पीड़ितों की शिकायत पर विजलेंस द्वारा को गई थी. हालांकि पुलिसकर्मियों को घूस लेते उस कैमरे ने कभी नहीं पकड़ा जो थानों के सभी सब इंस्पेक्टर और ट्रैफिक पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी के समय हर वक्त लगाए रहते हैं, जिन्हें बॉडी वॉर्न कैमरा कहते हैं. ऐसे में क्या यह माना जाए कि ट्रैफिक पुलिस और थानों की पुलिस के पास मौजूद बॉडी वॉर्न कैमरा घूस लेते तस्वीर कैद नहीं करता या फिर क्या पुलिसकर्मी सिर्फ अपने मुफीद समय ही अपना बॉडी वॉर्न कैमरा ऑन रखते हैं?
राजधानी में 467 बॉडी वॉर्न कैमरे अलग अलग सब इंस्पेक्टर और हेड कांस्टेबल को दिए गए हैं, जिसमें 70 थानों और अन्य ट्रैफिक पुलिस को वितरित किए हैं. इन कैमरों को सभी थानों में तैनात सब इंस्पेक्टर और ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर को ड्यूटी के दौरान हर वक्त ऑन करने के लिए निर्देश किया जाता है. थाना स्तर पर सब इंस्पेक्टर छापेमारी या फिर गिरफ्तारी के दौरान ऑन करते हैं, लेकिन ट्रैफिक पुलिस को हर वक्त इन्हें ऑन कर के रखना जरूरी होता है.
बॉडी वॉर्न कैमरे में लगा होता है 32 जीबी का मेमोरी कार्ड : दरअसल, ट्रैफिक पुलिस को दिए गए बॉडी वॉर्न कैमरे में 32 जीबी का मेमोरी कार्ड लगा होता है, जिसमें 15 घंटे की रिकॉर्डिंग आसानी से हो जाती है. इतना ही नहीं इसकी बैटरी बैकप भी दस घंटे से अधिक का होता है. ऐसे में ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर को नियमानुसार बॉडी कैमरे को हर वक्त ऑन कर रखना जरूरी होता है, जिससे न सिर्फ कैमरे में सभी घटनाक्रम कैद हो बल्कि उच्चाधिकारी को यह भी पता चल सके कि ड्यूटी के दौरान कोई भी कर्मी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं है. हालांकि यह असल में होता नहीं है, राजधानी में तैनात 100 से अधिक ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर, जिनकी ड्यूटी अलग अलग चौराहों में रहती है वो सिर्फ अपने मुफीद समय पर ही बॉडी वॉर्न कैमरा ऑन करते हैं. बूथ के अंदर बैठते समय, किसी भी वाहन चालक के वाहन की फोटो लेने के दौरान ये सभी बॉडी वॉर्न कैमरे बंद रहते हैं.
ट्रैफिक विभाग के एक कर्मचारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि, 'ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर को दिए गए बॉडी वॉर्न कैमरों की फुटेज सिर्फ एक या दो बार ही अधिकारियों द्वारा जांच की गई है. अन्य फुटेज अपने आप स्टोरेज फुल होने पर डिलीट हो जाती है. कर्मचारी के मुताबिक, लगभग सभी ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर महज एक घंटे की रिकॉर्डिंग करते हैं बाकी समय यह कैमरा ऑफ ही रहता है. ये बॉडी वॉर्न कैमरा उस समय ही ऑन होता है जब कोई वाहन चालक उनसे बहस करता है. कर्मचारी के मुताबिक, बीते वर्ष एक ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर के बॉडी वॉर्न कैमरे में एक सिपाही वाहन चालक से रिश्वत लेते कैद हो गया था, जिसके बाद अब यह सिर्फ अपने मुफीद समय पर ही ऑन होता है.
भ्रष्टाचार रोकने व पारदर्शिता लाने के लिए दिए गए हैं कैमरे : लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट की प्रवक्ता डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक बताती हैं कि 'सभी थानों और ट्रैफिक पुलिसकर्मी को बॉडी वॉर्न कैमरे देने के पीछे का कारण है कि कभी कभी कुछ लोग अपनी गलती न मानते हुए पुलिस को ही आरोपित करने को कोशिश करते हैं. तब वह बॉडी वॉर्न कैमरों में सब रिकॉर्ड हो जाता है जो सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. डीसीपी ने बताया कि बॉडी वॉर्न कैमरे का ड्यूटी वक्त ऑन रहने से पारदर्शिता बनी रहती है और इसे रिश्वत लेने से पहले अधिकारी खुद से सोचता है कि यदि उसने घूस ली तो वह खुद के कैमरे में कैद हो जायेगा.'
अधिकारियों की नजर में सभी पुलिसकर्मी पाक साफ : एडीसीपी ट्रैफिक अजय कुमार की मानें तो कई मामलों में बॉडी वॉर्न कैमरों ने पुलिसकर्मियों की मदद की है. उनके पास कई ट्रैफिक कर्मियों को शिकायतें आईं हैं जिसमें पुलिसकर्मी द्वारा अभद्रता की बात कही जाती है, लेकिन बॉडी वॉर्न कैमरे की फुटेज देखने पर पुलिसकर्मी पर लगाया गया आरोप सिद्ध नहीं होता है. वो कहते हैं कि कभी भी बॉडी वॉर्न कैमरे में पुलिसकर्मी घूस लेते सामने नहीं आया है. एडीसीपी के मुताबिक, बॉडी वॉर्न कैमरे से पारदर्शिता आई है, हालांकि यह दावा कितना सही है उसके बारे में भी बात करते हैं.
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