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आंदोलन कर रहे किसानों को नहीं कोरोना का डर, सरकार पर लगाए ये आरोप

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Published : Apr 26, 2021, 7:28 PM IST

एक ओर कोरोना महामारी का दूसरा दौर भयावह रूप लेता जा रहा है. वहीं दूसरी ओर दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के विरोध में बीते 151 दिन से धरने पर बैठे किसानों पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है. आंदोलन के दौरान अब तक 350 से ज्यादा किसानों की मौत हुई है लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि सभी मृतक के मेडिकल टेस्ट हुए थे और उनमें से एक भी कोरोना के कारण नहीं मरा.

farmers
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नई दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने कोरोना से बचाव के लिए विशेष अभियान की शुरुआत की है. हालांकि अब तक उसका अनुपालन कम ही देखा जा रहा है.

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा रविवार को जारी व्यक्तव्य में कहा गया कि टिकरी बॉर्डर पर कोविड वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू कर दिया गया है. इसके लिए एक मेडिकल कैम्प लगाया गया है लेकिन जब ईटीवी भारत की टीम सोमवार को टिकरी बॉर्डर स्थित धरनास्थल पर पहुंची तो मंच पर मौजूद किसान नेताओं ने जानकारी दी कि अभी तक कोरोना टीकाकरण यहां शुरू नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि जल्द ही टेस्टिंग और टीका दोनों शुरू करने की बात जरूर हुई है. मंच के सामने बैठे किसानों ने आपस में दूरी जरूर रखी थी लेकिन ज्यादातर बिना मास्क ही बैठे दिखाई दिए.

आंदोलन कर रहे किसानों को नहीं कोरोना का डर

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किसान नेता अमरीक सिंह ने कहा कि सरकार किसानों को कोरोना से डराने की कोशिश कर रही है. लेकिन इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है. कोरोना से मृत्यु दर केवल एक प्रतिशत है जबकि डेंगू और हेपटाइटिस जैसी बीमारियों से मृत्यु दर कहीं ज्यादा है. सरकार का ध्यान उन बीमारियों की तरफ नहीं है. अमरीक सिंह ने आगे कहा कि कोई यदि कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करता है तो ठीक बात है लेकिन किसानों को इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है.

मंच पर मौजूद एक अन्य किसान नेता बलदेव सिंह सरोहा का कहना है कि एक साल पहले कोरोना महामारी के नाम पर ही सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन लगाया. बाद में उनका नाजायज फायदा उठाते हुए तीन कृषि कानूनों से जुड़े अध्यादेश लाए थे. सरकार को आज भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है और किसान बीते पांच महीनों से दिल्ली के बोर्डरों पर बैठे हैं. इन पांच महीनों में एक भी किसान कोरोना का शिकार नहीं हुआ है जबकि करीब 400 किसानों की मृत्यु इन पांच महीनों में हो चुकी है.

भारतीय किसान यूनियन एकता (सिद्धूपुरा) के नेता बलदेव सिंह ने कहा कि किसान आंदोलन को कोरोना का हवाला देते हुए दबाने का प्रयास करने वाली सरकार को बंगाल चुनाव और हरिद्वार कुंभ में कोरोना संक्रमण का खतरा क्यों नहीं दिखा? प्रधानमंत्री मोदी खुद बंगाल में लाखों की भीड़ व रैलियों में संबोधित करते रहे लेकिन जब बात किसान आंदोलन की आती है तो कोरोना संक्रमण का खतरा दिखता है.

यह भी पढ़ें-घरों में भी मास्क पहनें लोग, माहवारी के दौरान भी कोरोना टीका ले सकती हैं महिलाएं : स्वास्थ्य मंत्रालय

किसान मोर्चा ने कोरोना संबंधी दिशानिर्देशों के पालन, मोर्चों पर टेस्टिंग और वैक्सीनशन कैम्प्स लगवाने की बात कही है और कुछ हद तक उस पर काम भी शुरू कर दिया है. लेकिन संक्रमण के खतरे के बीच बैठे किसानों को इस बात को समझने में अभी समय लगेगा.

नई दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने कोरोना से बचाव के लिए विशेष अभियान की शुरुआत की है. हालांकि अब तक उसका अनुपालन कम ही देखा जा रहा है.

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा रविवार को जारी व्यक्तव्य में कहा गया कि टिकरी बॉर्डर पर कोविड वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू कर दिया गया है. इसके लिए एक मेडिकल कैम्प लगाया गया है लेकिन जब ईटीवी भारत की टीम सोमवार को टिकरी बॉर्डर स्थित धरनास्थल पर पहुंची तो मंच पर मौजूद किसान नेताओं ने जानकारी दी कि अभी तक कोरोना टीकाकरण यहां शुरू नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि जल्द ही टेस्टिंग और टीका दोनों शुरू करने की बात जरूर हुई है. मंच के सामने बैठे किसानों ने आपस में दूरी जरूर रखी थी लेकिन ज्यादातर बिना मास्क ही बैठे दिखाई दिए.

आंदोलन कर रहे किसानों को नहीं कोरोना का डर

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किसान नेता अमरीक सिंह ने कहा कि सरकार किसानों को कोरोना से डराने की कोशिश कर रही है. लेकिन इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है. कोरोना से मृत्यु दर केवल एक प्रतिशत है जबकि डेंगू और हेपटाइटिस जैसी बीमारियों से मृत्यु दर कहीं ज्यादा है. सरकार का ध्यान उन बीमारियों की तरफ नहीं है. अमरीक सिंह ने आगे कहा कि कोई यदि कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करता है तो ठीक बात है लेकिन किसानों को इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है.

मंच पर मौजूद एक अन्य किसान नेता बलदेव सिंह सरोहा का कहना है कि एक साल पहले कोरोना महामारी के नाम पर ही सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन लगाया. बाद में उनका नाजायज फायदा उठाते हुए तीन कृषि कानूनों से जुड़े अध्यादेश लाए थे. सरकार को आज भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है और किसान बीते पांच महीनों से दिल्ली के बोर्डरों पर बैठे हैं. इन पांच महीनों में एक भी किसान कोरोना का शिकार नहीं हुआ है जबकि करीब 400 किसानों की मृत्यु इन पांच महीनों में हो चुकी है.

भारतीय किसान यूनियन एकता (सिद्धूपुरा) के नेता बलदेव सिंह ने कहा कि किसान आंदोलन को कोरोना का हवाला देते हुए दबाने का प्रयास करने वाली सरकार को बंगाल चुनाव और हरिद्वार कुंभ में कोरोना संक्रमण का खतरा क्यों नहीं दिखा? प्रधानमंत्री मोदी खुद बंगाल में लाखों की भीड़ व रैलियों में संबोधित करते रहे लेकिन जब बात किसान आंदोलन की आती है तो कोरोना संक्रमण का खतरा दिखता है.

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किसान मोर्चा ने कोरोना संबंधी दिशानिर्देशों के पालन, मोर्चों पर टेस्टिंग और वैक्सीनशन कैम्प्स लगवाने की बात कही है और कुछ हद तक उस पर काम भी शुरू कर दिया है. लेकिन संक्रमण के खतरे के बीच बैठे किसानों को इस बात को समझने में अभी समय लगेगा.

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