नई दिल्ली : अटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल (Attorney General K K Venugopal) ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि बंबई उच्च न्यायालय के उस विवादास्पद फैसले को पलटने की जरूरत है जिसमें कहा गया है कि अगर आरोपी और पीड़ित बच्चे के बीच कोई सीधा 'त्वचा से त्वचा' संपर्क (direct skin-to-skin contact) नहीं हुआ है तो पोक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है.
मंगलवार को सर्वोच्च अदालत अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रही थी. न्यायालय ने 27 जनवरी को उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें एक व्यक्ति को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) कानून के तहत बरी कर दिया गया था.
फैसले को रद्द करने का अनुरोध करते हुए विधि अधिकारी ने न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ के समक्ष आगे दलीलें देते कहा कि कपड़े हटाए बिना भी नाबालिग के वक्ष को छूना अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध है.
उन्होंने कहा, 'मान लीजिए, कल कोई व्यक्ति सर्जिकल दस्ताने पहनकर नाबालिग के पूरे शरीर को छूता है, तो उसे इस फैसले के अनुसार यौन उत्पीड़न के लिए दंडित नहीं किया जाएगा. यह अपमानजनक है. त्वचा से त्वचा का संपर्क जरूरी है- यह कहने का इसका मतलब होगा कि कोई व्यक्ति जिसने दस्ताने पहन रखा हो, बरी हो जाएगा. उच्च न्यायालय ने इसके दूरगामी परिणाम पर गौर नहीं किया.'
उन्होंने मामले के तथ्यों का भी उल्लेख किया और कहा कि आरोपी ने नाबालिग का पीछा किया और पकड़ लिया तथा नाबालिग ने शोर भी मचाया था और बिना किसी देरी के प्राथमिकी दर्ज की गयी. महाराष्ट्र और राष्ट्रीय महिला आयोग ने अटॉर्नी जनरल के विचारों से सहमति जताई.
न्यायालय द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किए जाने के बावजूद आरोपी की ओर से कोई पेश नहीं हुआ. इस पर पीठ ने उच्चतम न्यायालय विधि सेवा समिति (एससीएलएससी) को आरोपी की ओर से ‘एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड' (एओआर) के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता या अधिवक्ताओं की सेवाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया.
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पीठ ने कहा, 'हमने पहले ही वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया है. पेपर आज ही एससीएलएससी को सौंप दिए जाएं. 14 सितंबर को निपटारे के लिए सभी मामलों की सूची बनाएं.'
(पीटीआई-भाषा)