बेंगलुरु: कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर दो पक्षों के बीच की टकराहट की गूंज अभी थमी नहीं थी कि एक और नया विवाद 'हलाल बनाम झटका' सुर्खियां बटोरने लगा है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के राज्य के सभी जिलाधिकारियों और पुलिस निरीक्षकों को दिये गये निर्देश पर रविवार को 'होसा टुडुके'(उगादी के अगले दिन मनाया जाने त्योहार, जिसमें लोग मांस खाते हैं) त्योहार के मद्देनजर सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखी गयी है.
राज्य में हिंदू संगठन 'हलाल' मांस का बहिष्कार करने की मांग कर रहे हैं और सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के नेता इसका खुला समर्थन कर रहे हैं. हिंदू संगठन राज्य की बहुसंख्यक आबादी से सिर्फ 'झटका' मांस खरीदने की अपील कर रहे हैं , जिससे राज्य में हलाल बनाम झटका का विवाद उभरने लगा है.
'हलाल' और 'झटका' पक्षियों या पशुओं को खाने के लिये मारे जाने का तरीका है. मुस्लिम 'हलाल' मांस को सही मानते हैं. 'हलाल' विधि के तहत पशु या पक्षी को एकबार में नहीं मारा जाता है बल्कि उसमें एक हल्का चीरा लगाया जाता है और उसका सारा खून धीरे-धीरे करके बाहर आ जाता है. 'झटका' विधि में एकबार में ही उन्हें मार दिया जाता है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने इस विवाद को सत्तारुढ़ भाजपा का आगामी चुनाव में 150 सीट जीतने का रोडमैप बताया है.
कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, उससे पहले ही पूरे राज्य का माहौल राजनीतिक रंग में रंगने लगा है. कुछ दिनों पहले बायोकॉन लिमिटेड की प्रमुख किरण मजूमदार शॉ ने भी इस मसले पर ट्वीट किया था. राइट विंग थिंकर चक्रवर्ती सुलीबेले आईएएनएस को बताते हैं कि हिंदू संगठनों का अभियान जरूरी है क्योंकि मुस्लिम हर उद्योग में आर्थिक विभाजन पैदा कर रहे हैं. उन्होंने कहा, हमें वहां चोट करनी होगी, जहां सबसे अधिक चोट पहुंचती है. मुस्लिमों को अपनी गलती सुधारनी होगी और उन्हें हिंदुओं के साथ मिलजुल कर रहना चाहिये जैसा वे आज से 50 या 100 साल पहले रहा करते थे.
हलाल मांस पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाले हिंदू संगठनों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाले वकीलों के समूह की अगुवाई कर रहे वकील यूनियन के पूर्व अध्यक्ष एपी रंगनाथन ने कहा कि राज्य में जो हो रहा है, वह अच्छा नहीं है. उन्होंने कहा, कर्नाटक एक शांतिपूर्ण राज्य था. अब अगर इन चंद लोगों के खिलाफ कार्रवाई होती है, जो इस विभाजनकारी एजेंडे को चला रहे हैं, तो सबकुछ शांत हो जायेगा. रंगनाथन कहते हैं, इस तरह की गतिविधियां बहुत कम लोगों द्वारा की जा रही हैं. अगर इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू होती है तो यह नफरत फैलाने का अभियान थम जायेगा. हम सरकार पर दबाव बनाना जारी रखेंगे. किसी बल का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये बल्कि यह व्यक्ति पर छोड़ देना चाहिये कि वह कौन सा मांस खाना चाहेगा. अगर सरकार कार्रवाई नहीं करेगी, तो अदालत का रास्ता खुला है और हम सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेंगे.
दूसरी तरफ मुजरई, वक्फ मंत्री शशिकला जोले कहती हैं कि हलाल मांस के मुद्दे पर मुख्यमंत्री निर्णय लेंगे. उन्होंने कहा, हम हिंदू संगठनों के साथ हैं, जो झटका मांस के लिये अभियान चला रहे हैं. हलाल मांस की तरफ झटका मांस भी होना चाहिये. 'हलाल बनाम झटका' का यह विवाद तब सुर्खियों में आया, जब हाईकोर्ट ने हिजाब के मुद्दे पर फैसला सुनाते हुये कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है. इस फैसले के विरोध में मुस्लिम कारोबारियों ने बंद का आयोजन किया.
इस हड़ताल के विरोध में हिंदू संगठन मंदिर परिसर के अंदर और धार्मिक मेलों में मुस्लिम कारोबारियों के स्टॉल पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगे. इसके बाद हलाल और झटका विवाद भी सिर उठाने लगा. राज्य सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें सभी मीट विक्रेताओं से कहा गया कि वे पशुओं को प्रताड़ित न करें और उसे मारने के लिये 'स्टनिंग' का प्रयोग करें. स्टनिंग के जरिये वध किये जाने वाले पशु को पहले बेहोश किया जाता है और फिर उसे मारा जाता है.
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राज्य सरकार का यह सर्कुलर विवाद की बड़ी वजह बन सकता है क्योंकि मुस्लिम सिर्फ हलाल किये हुये जानवर का मांस ही खाते हैं.
आईएएनएस