नई दिल्ली : श्रीलंका के हंबनटोटा और पाकिस्तान के ग्वादर (बलूचिस्तान) में बंदरगाह सह विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) विकसित करने के बाद, चीन म्यांमार के कयौक्फ्यु (Kyaukphyu) में भारत के पड़ोस में अपना तीसरा बंदरगाह सह SEZ बनाने के लिए आगे बढ़ रहा है. इसे हिंद महासागर तक पहुंचने की चीनी योजनाओं की एक और महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में देखा जा रहा है.
बीते 15 सितंबर को बीजिंग में कयौक्फ्यु एसईजेड डीप सी पोर्ट प्रोजेक्ट (KPSEZ DSP Project) के लिए परामर्श कार्य शुरू करने के लिए एक समझौता हुआ था.
एक कंपनी विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह म्यांमार और सीआईटीआईसी कंसोर्टियम (CITIC Consortium) द्वारा केपीएसईजेड डीएसपी परियोजना के संयुक्त विकास में एक महत्वपूर्ण कदम का संकेत देता है.
विज्ञप्ति के मुताबिक, सीआईटीआईसी कंसोर्टियम म्यांमार पोर्ट इन्वेस्टमेंट लिमिटेड, ग्राहक के रूप में, CITIC कंस्ट्रक्शन और CCCC FHDI (चाइना कम्युनिकेशन कंस्ट्रक्शन कंपनी की सहायक कंपनी) के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए.
कंपनी विज्ञप्ति में आगे कहा गया कि CITIC कंस्ट्रक्शन - CCCC FHDI कंसोर्टियम सभी बोलीदाताओं में पहले स्थान पर रही और उसे बोली प्रदान की जाती है.
CITIC (चाइना इंटरनेशनल ट्रस्ट एंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ग्रुप) इस परियोजना का मुख्य डेवलपर है, जिसके प्रगाढ़ रणनीतिक निहितार्थ हैं.
चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत, बंगाल की खाड़ी से दूर म्यांमार के अशांत रखाइन प्रांत में स्थित कयौक्फ्यु, रेल द्वारा चीन के दक्षिण-पश्चिमी युन्नान प्रांत में कुनमिंग से जुड़ेगा.
पहले से ही 770 किलोमीटर लंबी समानांतर तेल और गैस पाइपलाइन युन्नान प्रांत के रुइली (Ruili) से कयौक्फ्यु तक संचालन में है और इसके आगे 2,800 किलोमीटर तक गुआंग्शी (Guangxi) तक फैली हुई है.
समुद्र के माध्यम से चीनी निर्यात और आयात के लिए एक व्यापार केंद्र बनने की योजना के अलावा, चीन की 4,300 एकड़ में फैली KPSEZ DSP परियोजना का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, फार्मास्यूटिकल्स, समुद्री आपूर्ति और अनुसंधान का केंद्र बनना है.
KPSEZ DSP परियोजना पश्चिमी म्यांमार में चीन के बीआरआई मुहिम का हिस्सा है और प्रस्तावित चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (CMEC) की प्रमुख परियोजना है.
बीआरआई का लक्ष्य सड़क, समुद्र और रेल संपर्क बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से दुनिया भर के 70 देशों को जोड़ना है.
जनवरी 2020 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की म्यांमार यात्रा के दौरान चीन और म्यांमार ने गहरे बंदरगाह के लिए रियायत और शेयरधारक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. हालांकि, इसकी परिकल्पना 2015 में की गई थी. परियोजना के पूरा होने पर इसे संयुक्त रूप से संचालित किया जाएगा.
शुरुआत में नौ अरब डॉलर की परियोजना के रूप में कल्पना की गई थी. दोनों पक्षों ने पहले चरण में इसे 1.5 अरब डॉलर की परियोजना के साथ शुरू करने पर सहमति व्यक्त की. साथ ही चीन ने इस चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है कि वह म्यांमार को अपनी 'कर्ज-जाल' कूटनीति का शिकार बना रहा है.
दिलचस्प बात यह है कि चीन जिस गति से हिंद महासागर तक पहुंच के लिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को विकसित कर रहा है, यह इसका संकेत है कि 26 अगस्त, 2021 को, चीन ने एक महत्वपूर्ण रेल रूट का उद्घाटन किया, जो चेंगदू के वाणिज्यिक और सैन्य केंद्र को सीमावर्ती शहर लिनकांग (Lincang) से जोड़ती है. यह शहर म्यांमार के शान प्रांत (Shan State) के सीमावर्ती शहर चिन श्वे हौ (Chin Shwe Haw) के ठीक सामने है, जो हकीकत में एक समुद्री-सड़क-रेल लिंक को पूरा करता है, जो सिंगापुर को चेंगदू से जोड़ता है.
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सिंगापुर से चेंगदू तक जलयात्रा के समय को 20 दिनों तक कम करने के अलावा, नया लिंक चीन को हिंद महासागर से सीधे पश्चिम एशिया, यूरोप और अटलांटिक क्षेत्र के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने में सक्षम बनाएगा.
समुद्र के लिए इन कनेक्टिविटी परियोजनाओं का उद्देश्य चीन की 'मलक्का डिलेमा' (Malacca Dilemma) या अपरिहार्य स्थिति का सामना करना है. दरअसल चीनी जहाजों को संकीर्ण मलक्का जलडमरूमध्य से गुजरना पड़ता है, इस परियोजना से यह खत्म हो जाएगी.