नई दिल्ली : यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के बाद चीन-रूस (China-Russia) के रिश्ते और भी मजबूत हो गए हैं. एक ओर चीन म्यांमार में अपना दबदबा बना रहा है, वहीं रूस भी सैन्य उपकरणों की आपूर्ति बढ़ाकर उसी के नक्शेकदम पर है. उसकी आपूर्ति में मल्टीरोल सुखोई 30 एसएमई विमान, याक 130 ट्रेनर जेट और पैंटिर-एस1 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली के अलावा निगरानी और टोही प्लेटफॉर्म और उपकरण शामिल हैं.
रूस और म्यांमार के बीच सैन्य संबंध हाल के दिनों में समृद्ध हुए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक दो Su 30s को पहले ही म्यांमार की सेना टाटमाडॉ (Tatmadaw) के साथ तैनात किया जा चुका है. ये Naypyitaw में एयरबेस में तैनात हैं, जबकि अन्य चार Su 30s की आपूर्ति की जानी है. एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने सैन्य क्षेत्र में तकनीकी सहयोग को मजबूत करने की बात कही है. चीन और रूस म्यांमार को सैन्य हार्डवेयर के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं. म्यांमार में 1 फरवरी 2021 को तख्तापलट हुआ था. वहां सत्ता की बागडोर 'तत्माडॉ' के हाथ है, जिसके बाद से उसे पश्चिम की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है.
चीन और म्यांमार : म्यांमार में चीन की विशेष रुचि इसलिए है, क्योंकि म्यांमार के माध्यम से ही चीन ने हिंद महासागर के समुद्री तट तक पहुंच प्राप्त की है. ये नया मार्ग चीन को 'मलक्का दुविधा' से उबरने में सक्षम बनाते हैं. पहले उसके जहाजों को संकीर्ण मलक्का जलडमरूमध्य से गुजरना पड़ता था. 27 अगस्त 2021 को नया म्यांमार-चीन मार्ग खुल गया है, जिसने सिंगापुर से चीन के हब कहे जाने वाले चेंगदू तक शिपिंग समय को 20 दिन कम कर दिया है. नया मार्ग चीन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाएगा. उसका व्यापार हिंद महासागर से सीधे पश्चिम एशिया, यूरोप और अटलांटिक क्षेत्र में बढ़ेगा.
पश्चिमी चीन को पहली बार हिंद महासागर तक पहुंच प्राप्त हुई है. ऐसे में उसकी ओर से म्यांमार के नकदी संकट से जूझ रहे 'टाटमाडॉ' (जुंटा) को आय के एक स्थिर स्रोत की गारंटी दी जाएगी. दूसरा चीन-म्यांमार के बीच इकोनॉमिक कॉरिडोर को विकसित किया गया है. जिसका एक हिस्सा क्याकफ्यु में एक गहरे बंदरगाह का विकास है. यह चीन के दक्षिण-पश्चिमी युन्नान प्रांत को समुद्र तक पहुंच बढ़ाएगा. जबकि 'टाटमाडॉ' शासन को पहले से ही बीजिंग के बहुत करीब माना जाता है, वह संबंध 2021 के तख्तापलट के बाद और मजबूत हो गया है. 24 दिसंबर, 2021 को-म्यांमार नौसेना के स्थापना दिवस पर चीन ने म्यांमार को एक मिंग क्लास पनडुब्बी सौंपी थी.
भारत और म्यांमार : भारत भी म्यांमार के साथ सक्रिय विदेश नीति अपना रहा है. 24 दिसंबर 2020 को भारत ने म्यांमार की नौसेना को एक रूसी निर्मित किलो क्लास पनडुब्बी भेंट की थी. यह उसकी उस रणनीति का भी हिस्सा था, जिसमें उसने म्यांमार को चीनी पनडुब्बी खरीदने से दूर कर दिया. म्यांमार भारत की प्रमुख 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' (एईपी) का भी केंद्र है, जो मोदी सरकार की प्राथमिकमता में है.
भारत के एईपी का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक, राजनीतिक, सैन्य और रणनीतिक संबंध बनाना है. ये दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के तहत समूहीकृत हैं और निर्यात के लिए भारतीय उत्पादों के साथ इस प्रक्रिया में दक्षिण पूर्व एशियाई बाजार में भी विस्तार करते हैं. केवल म्यांमार के माध्यम से ही एईपी को क्रियान्वित किया जा सकता है. भारतीय और म्यांमार की सेनाओं के बीच अच्छे संबंध रहे हैं. उनके तालमेल से पूर्वोत्तर क्षेत्र के विद्रोहियों पर बेहतर कार्रवाई हो सकी है. आम तौर पर ये म्यांमार के जंगली इलाकों में ठिकानों से बाहर निकलते थे. लेकिन उस रिश्ते को 2021 के तख्तापलट से गंभीर झटका लगा था. क्योंकि 'तत्माडॉ' के उत्पीड़न से परेशान होकर हजारों शरणार्थी भारत के मिजोरम और मणिपुर राज्यों में प्रवेश कर गए थे.
म्यांमार में कई जातीय सशस्त्र संगठनों के साथ अब एक गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है. काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए), करेन नेशनल यूनियन (केएनयू), ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA), शान स्टेट आर्मी-नॉर्थ, म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी और अराकान आर्मी सहित विद्रोही जातीय समूह जुंटा के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर रहे हैं.
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