त्रिच्ची ( तमिलनाडु) : रोम की वैटिकन सिटी में रविवार को देवसहायम पिल्लई को संत का दर्जा दिया जाएगा. पोप फ्रांसिस उन्हें एक समारोह में संत घोषित करेंगे. हालांकि जब उन्हें संत का दर्जा देने से पहले उनके नाम से 'पिल्लई' को हटा दिया गया है. ईसाई संत के तौर पर उन्हें 'धन्य देवसहायम (Blessed Devasahayam)' कहा जाएगा. करीब 300 साल पहले कैथोलिक धर्म स्वीकार करने वाले देवसहायम पिल्लई को संत का दर्जा देने के लिए प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. बताया जाता है कि संत की उपाधि पाने वाले देवसहायम पहले ऐसे तमिल होंगे, जिनका ताल्लुक न तो राजपरिवार से था और वह किसी मिशनरी के प्रधान थे. उनके बारे में कहा जाता है कि देवसहायम ने उस दौर में धर्मपरिवर्तन किया था, जब भारत में हिंदू के उच्च जातियों के लोगों के लिए यह पूरी तरह वर्जित था.
![Devasahayam Pillai, a Catholic believer](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/saint-2_1405newsroom_1652536153_670.jpg)
जन्म से नायर जाति के देवसहायम पिल्लई का असली नाम नीलकंदन था. 23 अप्रैल, 1712 को वह तमिलनाडु के कन्याकुमारी में पैदा हुए थे. एक शाही आदेश के तहत उच्च जातियों के धर्मांतरण पर भी रोक लगा दी गई थी. उस दौर में तत्कालीन त्रावणकोर में अनीयम तिरुनाल मार्तण्ड वर्मा का शासन था. मार्तन्ड वर्मा 18वीं सदी में करीब 52 साल तक त्रावणकोर राज्य के महाराजा रहे. उन्होंने नीलकंदन को पद्मनाभपुरम किले में एक वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त किया था. नीलकंदन का विवाह बरकवी अम्मल से हुआ था.
1741 में कोलाचेल के बंदरगाह पर कब्जा करने के लिए डचों ने हमला बोल दिया. त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा की सेना ने डचों को हराया और उसकी सेना के कमांडर बेनेडिक्टस डी लैनॉय को बंदी बना लिया गया. बेनेडिक्टस डी लैनॉय एक कैथोलिक क्रिश्चियन था. उसकी सैन्य अनुभव को देखते हुए मार्तंड वर्मा ने उसे एक सैन्य सलाहकार के रूप में नियुक्त किया. इसके बाद नीलकंदन ने बेनेडिक्टस डी लैनॉय से दोस्ती गांठ ली.
लैनॉय की संगत में नीलकंदन ने ईसाई धर्म में रुचि लेनी शुरू की और धर्म परिवर्तन कर लिया. उन्होंने अपना नाम देवसहायम पिल्लई रख लिया. इसके विरोध में उनके नायर जाति के लोगों ने राजा से शिकायत की और देवसहायम पिल्लई पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया. राजा मार्तंड वर्मा ने धर्म परिवर्तन संबंधी शाही आदेश का उल्लंघन करने के लिए देवसहायम को कारावास की सजा दी. इसके अलावा उन्हें काले और सफेद रंग में रंगी एक भैंस पर बैठाकर राज्य में घुमाने का आदेश दिया. इस दौरान ईसाई मिशरीज की ओर से उनके चमत्कार के किस्से प्रचारित किए गए. मान्यता है कि जब देवसहायम ने फिर से हिंदू धर्म में लौटने से इनकार किया तो उन्हें आज के कन्याकुमारी जिले के अरलवयमोझी में घुमावदार पहाड़ी पर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. सैनिकों ने उनके शरीर को जंगल में जला दिया था.
![Devasahayam Pillai, a Catholic believer](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/saint-3_1405newsroom_1652536153_1018.jpg)
इसके बाद कुछ कैथोलिक ईसाई धर्म मानने वाले देवसहायम पिल्लई के अवशेषों को चर्च में लाए और कोट्टार सेंट जेवियर्स चर्च में मकबरा बनाया. उस दौर से उस पहाड़ी को देवसहायम पर्वत कहा जाने लगा, जहां उन्हें गोली मारी गई थी. ईसाइयों ने वहां उनका स्मारक भी बनवाया. 2012 में कोच्चि के तत्कालीन बिशप क्लेमेंस जोसेफ ने देवसहायम पिल्लई को संत का दर्जा देने के लिए पहल की. उन्होंने चमत्कार के कुछ किस्सों के साथ रोम में पोप को एक रिपोर्ट सौंपी .2 दिसंबर 2012 को देवसहायम पिल्लई का ब्यूटीफिकेशन किया गया.
संत का दर्जा देने से पहले 2017 में दो रिटायर आईएएस अफसरों ने देवसहायम पिल्लई के सरनेम पर आपत्ति जताई. दोनों ने संत की उपाधि देने वाले मामले की तस्दीक करने वाले वेटिकन के कार्डिनल एंजेलो अमातो को पत्र लिखकर बताया कि पिल्लई सरनेम से जाति का पता चलता है, इसलिए इसे हटा दिया जाए. तब वेटिकन ने इस मांग को खारिज कर दिया था. मगर वेटिकन ने फरवरी 2020 में जब संत की उपाधि देने की घोषणा की तो उनके नाम से पिल्लई सरनेम को हटा दिया. उन्हें 'धन्य देवसहायम' का नया नाम दिया गया. तिरुनेलवेली के आर्कबिशप एंथनी सैमी के अनुसारस ऐसा पहली बार होगा कि किसी शादीशुदा साधारण आदमी को यह उपाधि मिलने वाली है. अभी तक चर्च के पादरी, नन और राजाओं को ही संत का दर्जा मिलता रहा है.
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