नई दिल्ली : अफगानिस्तान में जारी संघर्ष के बीच नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट का कहना है कि वह अंतिम सांस तक तालिबान के साथ लड़ाई जारी रखेगा. इस संघर्ष ने पूरे प्रांत और देश के भविष्य काे अस्थिर कर रखा है.
इधर दोनों पक्षों के बीच चल रही लड़ाई के बीच तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन में देरी से काबुल में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई है और अब बड़ा सवाल यह है कि अफगानिस्तान में आगे क्या हाेगा? क्या दुनिया तालिबान को औपचारिक रूप से स्वीकार करेगी?
हाल के घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए अफगानिस्तान में पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने दोहराया कि पंजशीर प्रतिरोध समूह ने कहा है कि पूरी घाटी पर कब्जा नहीं किया जा रहा है और वहीं वे अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. किसी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे.
ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व दूत ने कहा कि पंजशीर प्रतिरोध सिर्फ पंजशीर की नहीं बल्कि राष्ट्रीय प्रतिरोध का प्रतिनिधित्व करता है. पंजशीर में हो या बाहर विरोध जारी रहेगा.
उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तान तालिबान को पंजशीर के खिलाफ लड़ने में मदद कर रहा है. रिपोर्ट बता रही है कि पाकिस्तान की ओर से ड्रोन, हेलीकॉप्टर, कमांडो यूनिट, हथियार से तालिबान काे मदद की जा रही है.
इस बीच सोमवार को एक ऑडियो संदेश में नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट के कमांडर अहमद मसूद ने कहा कि आप कहीं भी हों, अंदर या बाहर. मैं आपसे हमारे देश की गरिमा, स्वतंत्रता और समृद्धि के लिए एक राष्ट्रीय विद्रोह शुरू करने का आह्वान करता हूं.
ट्वीट की एक श्रृंखला में अहमद मसूद ने कहा कि वे पंजशीर में हैं और प्रतिरोध जारी रहेगा. इससे पहले मसूद ने ट्वीट किया था, 'तालिबान हमसे नहीं लड़ रहा है बल्कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई उनका नेतृत्व कर रहे हैं. तालिबान हमारे साथ लड़ाई के हिसाब से पर्याप्त मजबूत नहीं हैं लेकिन पाकिस्तानी सेना उनके साथ सहयोग कर रही है.
अब, भारत के लिए संभावित तालिबान-पाकिस्तान-चीन एक्सिस (Taliban-Pakistan-China axis) चिंता का विषय है? इसके जवाब में राजदूत मुखोपाध्याय ने बताया कि यह केवल पाकिस्तान-तालिबान-चीन के कारण भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय नहीं है बल्कि तालिबान के साथ यहां दर्जनों चरमपंथी कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन हैं जिनमें कुछ मध्य एशियाई विरोधी, ईरान विरोधी, भारत विरोधी, शिया विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी संगठन शामिल हैं.
अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और विशेष रूप से क्षेत्रीय आतंकवाद का केंद्र बन सकता है. यह चरमपंथी संगठनों के बीच 'प्रतिस्पर्धा का रंगमंच' भी बन सकता है.
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उन्हाेंने कहा कि उस स्थिति में अफगानिस्तान इराक, सीरिया और लीबिया प्रकार के परिदृश्य का गवाह बन सकता है. इसलिए, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि तालिबान पहले कुछ दिनों और महीनों में क्या करता है, क्या यह समावेशी है और क्या यह ऐसी सरकार बनाता है जो अधिक उदार और समावेशी है.