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उम्मीदवारों के आपराधिक मुकदमों का ब्यौरा नहीं दे रहीं पार्टियां, क्या चुनाव आयोग करेगा कार्रवाई ? - एडीआर खबर

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उम्मीदवार चुनाव के दौरान अपने आपराधिक मुकदमों का ब्यौरा प्रकाशित नहीं करा रहे हैं. इसे लेकर चुनावी निगरानी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है. एडीआर ने ऐसे उम्मीदवारो पर कार्रवाई और राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की है.

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Published : Jul 3, 2023, 5:12 PM IST

Updated : Jul 3, 2023, 6:16 PM IST

नई दिल्ली : राजनीति में दागी उम्मीदवारों को लेकर शीर्ष कोर्ट के चिंता जताने के बावजूद सभी दलों में ऐसे नेताओं का होना आम बात हो गई है. ऐसे में 1999 में स्थापित चुनावी निगरानी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद के प्रोफेसरों के एक समूह ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है.

चुनाव आयोग
चुनाव आयोग

पत्र में उन पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है जो आपराधिक विवरण प्रकाशित करने में विफल रहती हैं.

पत्र में क्या लिखा : '2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए. इसी तरह से 2022 में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए. जबकि इस साल त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मणिपुर में चुनाव संपन्न हुए हैं. ऐसे में एडीआर आपराधिक विवरण प्रकाशित करने में चूक करने वाले राजनीतिक दलों पर कार्रवाई की मांग करता है.'

वर्षों से, एडीआर जैसे स्वतंत्र चुनावी निगरानीकर्ता राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने पर चिंता जताते रहे हैं. एडीआर के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद नवनिर्वाचित 43% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं .

सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था आदेश : पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 25 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया था. शीर्ष कोर्ट ने राजनीतिक दलों के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित प्रारूप में अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया है.

जबकि उम्मीदवारों ने फैसले से पहले चुनाव आयोग को अपने चुनावी हलफनामे में उनके खिलाफ लंबित मामलों की घोषणा की थी, सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने जानकारी को व्यापक रूप से प्रचारित करना अनिवार्य बना दिया है.

तीन बार प्रकाशित करनी है जानकारी : शीर्ष कोर्ट का आदेश है कि उम्मीदवारों को अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण मोटे अक्षरों में प्रकाशित करना होगा. इन मामलों के बारे में पार्टी को भी जानकारी देनी होगी. कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि उम्मीदवार और पार्टी को नामांकन दाखिल करने के बाद कम से कम तीन बार जानकारी प्रकाशित करनी होगी.

शीर्ष कोर्ट ने ये की थी टिप्पणी : कोर्ट ने कहा था कि 'हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि संवैधानिक लोकतंत्र में राजनीति का अपराधीकरण अत्यंत विनाशकारी और शोचनीय स्थिति है. लोकतंत्र में नागरिकों को खुद को असहाय दिखाकर भ्रष्टाचार के मूक, बहरे और मूकदर्शक के रूप में खड़े रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है...पहले से आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने से चुनाव निष्पक्ष हो जाता है और मतदाताओं द्वारा मतदान के अधिकार का प्रयोग भी पवित्र हो जाता है. यह याद रखना होगा कि ऐसा अधिकार लोकतंत्र के लिए सर्वोपरि है.'

2020 में भी जताई थी चिंता : फरवरी 2020 में, अपने 2018 के आदेश को लागू नहीं किए जाने के संबंध में एक अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने दोहराया था कि पार्टियों को लंबित आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों का विवरण प्रकाशित करना होगा. इसमें यह भी कहा गया है कि उन्हें ऐसे उम्मीदवार का चयन करने के कारणों को भी शामिल करना होगा.

कोर्ट ने कहा कि चयन के कारण संबंधित उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों और योग्यता के संदर्भ में होंगे, न कि केवल चुनाव में 'जीतने की क्षमता' के आधार पर. इसमें कहा गया है कि सूचना को चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले, जो भी हो, एक स्थानीय समाचार पत्र, एक राष्ट्रीय समाचार पत्र और राजनीतिक दल के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करना होगा. फिर पार्टियों को 72 घंटों के भीतर ईसीआई को अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी होगी.

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे राजनीतिक दल : एडीआर के मुताबिक, राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और ईसीआई के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं. 19 जून को लिखे पत्र में एडीआर कहा कि पार्टियों द्वारा 'जानबूझकर अवज्ञा' की गई. इसमें कहा गया है कि उसने फॉर्म सी2 और सी7 का विश्लेषण किया था, जो जानकारी जमा करने के लिए ईसीआई के निर्धारित प्रारूप हैं, और इसमें कई कमियां पाई गईं.

Candidates with criminal record become a cause of concern
आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार बने चिंता का कारण

एडीआर ने यह भी जिक्र किया कि कई राजनीतिक दलों के पास जानकारी प्रकाशित करने के लिए कार्यात्मक वेबसाइटें नहीं थीं, और जिनके पास थीं, उन्होंने जानकारी बनाए नहीं रखी थी या अप्राप्य वेबसाइट लिंक थे. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई पार्टी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनने के लिए 'जीतने की क्षमता' का उपयोग नहीं कर सकती है. एडीआर के मुताबिक पार्टियां 'जीतने की संभावना, व्यक्ति की लोकप्रियता' को कारणों के रूप में उद्धृत कर रही थीं. पार्टियां भी कई उम्मीदवारों के लिए समान औचित्य को 'कॉपी-पेस्ट' कर रही थीं.

राजनीति में दागी उम्मीदवार
राजनीति में दागी उम्मीदवार

अपने पत्र में, एडीआर ने चुनाव आयोग से उन पार्टियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा है जो आदेशों का उल्लंघन कर रही हैं. यही नहीं ऐसी पार्टियों का पंजीकरण रद्द करना भी शामिल है. एडीआर ने ईसीआई से डिफॉल्टिंग पार्टियों की एक सूची प्रकाशित करने और उन पर जुर्माना लगाने को भी कहा है.

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नई दिल्ली : राजनीति में दागी उम्मीदवारों को लेकर शीर्ष कोर्ट के चिंता जताने के बावजूद सभी दलों में ऐसे नेताओं का होना आम बात हो गई है. ऐसे में 1999 में स्थापित चुनावी निगरानी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद के प्रोफेसरों के एक समूह ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है.

चुनाव आयोग
चुनाव आयोग

पत्र में उन पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है जो आपराधिक विवरण प्रकाशित करने में विफल रहती हैं.

पत्र में क्या लिखा : '2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए. इसी तरह से 2022 में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए. जबकि इस साल त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मणिपुर में चुनाव संपन्न हुए हैं. ऐसे में एडीआर आपराधिक विवरण प्रकाशित करने में चूक करने वाले राजनीतिक दलों पर कार्रवाई की मांग करता है.'

वर्षों से, एडीआर जैसे स्वतंत्र चुनावी निगरानीकर्ता राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने पर चिंता जताते रहे हैं. एडीआर के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद नवनिर्वाचित 43% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं .

सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था आदेश : पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 25 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया था. शीर्ष कोर्ट ने राजनीतिक दलों के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित प्रारूप में अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया है.

जबकि उम्मीदवारों ने फैसले से पहले चुनाव आयोग को अपने चुनावी हलफनामे में उनके खिलाफ लंबित मामलों की घोषणा की थी, सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने जानकारी को व्यापक रूप से प्रचारित करना अनिवार्य बना दिया है.

तीन बार प्रकाशित करनी है जानकारी : शीर्ष कोर्ट का आदेश है कि उम्मीदवारों को अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण मोटे अक्षरों में प्रकाशित करना होगा. इन मामलों के बारे में पार्टी को भी जानकारी देनी होगी. कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि उम्मीदवार और पार्टी को नामांकन दाखिल करने के बाद कम से कम तीन बार जानकारी प्रकाशित करनी होगी.

शीर्ष कोर्ट ने ये की थी टिप्पणी : कोर्ट ने कहा था कि 'हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि संवैधानिक लोकतंत्र में राजनीति का अपराधीकरण अत्यंत विनाशकारी और शोचनीय स्थिति है. लोकतंत्र में नागरिकों को खुद को असहाय दिखाकर भ्रष्टाचार के मूक, बहरे और मूकदर्शक के रूप में खड़े रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है...पहले से आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने से चुनाव निष्पक्ष हो जाता है और मतदाताओं द्वारा मतदान के अधिकार का प्रयोग भी पवित्र हो जाता है. यह याद रखना होगा कि ऐसा अधिकार लोकतंत्र के लिए सर्वोपरि है.'

2020 में भी जताई थी चिंता : फरवरी 2020 में, अपने 2018 के आदेश को लागू नहीं किए जाने के संबंध में एक अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने दोहराया था कि पार्टियों को लंबित आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों का विवरण प्रकाशित करना होगा. इसमें यह भी कहा गया है कि उन्हें ऐसे उम्मीदवार का चयन करने के कारणों को भी शामिल करना होगा.

कोर्ट ने कहा कि चयन के कारण संबंधित उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों और योग्यता के संदर्भ में होंगे, न कि केवल चुनाव में 'जीतने की क्षमता' के आधार पर. इसमें कहा गया है कि सूचना को चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले, जो भी हो, एक स्थानीय समाचार पत्र, एक राष्ट्रीय समाचार पत्र और राजनीतिक दल के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करना होगा. फिर पार्टियों को 72 घंटों के भीतर ईसीआई को अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी होगी.

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे राजनीतिक दल : एडीआर के मुताबिक, राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और ईसीआई के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं. 19 जून को लिखे पत्र में एडीआर कहा कि पार्टियों द्वारा 'जानबूझकर अवज्ञा' की गई. इसमें कहा गया है कि उसने फॉर्म सी2 और सी7 का विश्लेषण किया था, जो जानकारी जमा करने के लिए ईसीआई के निर्धारित प्रारूप हैं, और इसमें कई कमियां पाई गईं.

Candidates with criminal record become a cause of concern
आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार बने चिंता का कारण

एडीआर ने यह भी जिक्र किया कि कई राजनीतिक दलों के पास जानकारी प्रकाशित करने के लिए कार्यात्मक वेबसाइटें नहीं थीं, और जिनके पास थीं, उन्होंने जानकारी बनाए नहीं रखी थी या अप्राप्य वेबसाइट लिंक थे. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई पार्टी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनने के लिए 'जीतने की क्षमता' का उपयोग नहीं कर सकती है. एडीआर के मुताबिक पार्टियां 'जीतने की संभावना, व्यक्ति की लोकप्रियता' को कारणों के रूप में उद्धृत कर रही थीं. पार्टियां भी कई उम्मीदवारों के लिए समान औचित्य को 'कॉपी-पेस्ट' कर रही थीं.

राजनीति में दागी उम्मीदवार
राजनीति में दागी उम्मीदवार

अपने पत्र में, एडीआर ने चुनाव आयोग से उन पार्टियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा है जो आदेशों का उल्लंघन कर रही हैं. यही नहीं ऐसी पार्टियों का पंजीकरण रद्द करना भी शामिल है. एडीआर ने ईसीआई से डिफॉल्टिंग पार्टियों की एक सूची प्रकाशित करने और उन पर जुर्माना लगाने को भी कहा है.

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Last Updated : Jul 3, 2023, 6:16 PM IST
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