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अवैध हिरासत के आरोप वाली अबु सलेम की याचिका उचित नहीं: उच्च न्यायालय

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Published : Oct 29, 2021, 8:14 PM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि 1993 के मुंबई श्रृंखलाबद्ध विस्फोट मामले में अपनी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे प्रत्यर्पित गैंगस्टर अबु सलेम द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का इसलिए कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उसकी हिरासत अवैध नहीं हो सकती.

दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि 1993 के मुंबई श्रृंखलाबद्ध विस्फोट मामले में अपनी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे प्रत्यर्पित गैंगस्टर अबु सलेम द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का इसलिए कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उसकी हिरासत अवैध नहीं हो सकती.

उच्च न्यायालय सलेम की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें भारत में उसकी हिरासत को अवैध घोषित करने और संधि की शर्तों के मद्देनजर उसे पुर्तगाल वापस भेजने की मांग की गई थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में एक ऐसे व्यक्ति को पेश करने का निर्देश देने की मांग की जाती है जो लापता या अवैध रूप से हिरासत में हो.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा कि एक बार जब अदालत ने सलेम के मुकदमे की सुनवाई कर ली और उसे दोषी ठहरा दिया तो वह कैसे कह सकता है कि हिरासत अवैध है.

पीठ ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया और कहा, 'भले ही शुरू में आपकी हिरासत कानून के लिहाज से अनुचित थी, फिर भी अदालत द्वारा आपकी सजा के बाद, आपकी हिरासत अवैध नहीं रहती है.'

पीठ ने कहा, 'इस मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला नहीं बनता. यह तब होता जब आपकी हिरासत अवैध होती लेकिन यहां ऐसा नहीं है.'

सलेम के वकील ने जब अदालत को सूचित किया कि विभिन्न अदालती आदेशों के खिलाफ उसकी अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है, तब पीठ ने कहा कि जब यह निर्णय लंबित है, तो वह वापस भेजने के लिए कैसे कह सकते हैं और कहा कि राहत इस तरह से नहीं दी जा सकती है.

पढ़ें - ईडी ने बीपीएसएल के पूर्व सीएमडी के खिलाफ मामले में 190 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की

सलेम की ओर से पेश अधिवक्ता एस हरिहरन ने हिरासत को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि प्रत्यर्पण विभिन्न आश्वासनों पर किया गया था, जिनका उल्लंघन किया गया है और ऐसे में उनकी हिरासत अवैध हो गई है.

उन्होंने कहा कि सलेम को अतिरिक्त आरोपों के लिए दोषी ठहराया गया है, जो संधि का हिस्सा नहीं थे. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को कायम रखने के मुद्दे पर अदालत को संतुष्ट करने के लिए वकील के अनुरोध पर, अदालत ने मामले को 29 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

याचिका में कहा गया है कि सलेम को 2002 में प्रत्यर्पित किया गया था और तब से वह जेल में बंद है और ऐसी कोई उम्मीद नहीं है कि लंबित याचिकाओं पर जल्द ही फैसला किया जाएगा.

उच्चतम न्यायालय ने 27 अक्टूबर को हत्या के मामले में सलेम को जमानत देने से इनकार कर दिया था.

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि 1993 के मुंबई श्रृंखलाबद्ध विस्फोट मामले में अपनी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे प्रत्यर्पित गैंगस्टर अबु सलेम द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का इसलिए कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उसकी हिरासत अवैध नहीं हो सकती.

उच्च न्यायालय सलेम की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें भारत में उसकी हिरासत को अवैध घोषित करने और संधि की शर्तों के मद्देनजर उसे पुर्तगाल वापस भेजने की मांग की गई थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में एक ऐसे व्यक्ति को पेश करने का निर्देश देने की मांग की जाती है जो लापता या अवैध रूप से हिरासत में हो.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा कि एक बार जब अदालत ने सलेम के मुकदमे की सुनवाई कर ली और उसे दोषी ठहरा दिया तो वह कैसे कह सकता है कि हिरासत अवैध है.

पीठ ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया और कहा, 'भले ही शुरू में आपकी हिरासत कानून के लिहाज से अनुचित थी, फिर भी अदालत द्वारा आपकी सजा के बाद, आपकी हिरासत अवैध नहीं रहती है.'

पीठ ने कहा, 'इस मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला नहीं बनता. यह तब होता जब आपकी हिरासत अवैध होती लेकिन यहां ऐसा नहीं है.'

सलेम के वकील ने जब अदालत को सूचित किया कि विभिन्न अदालती आदेशों के खिलाफ उसकी अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है, तब पीठ ने कहा कि जब यह निर्णय लंबित है, तो वह वापस भेजने के लिए कैसे कह सकते हैं और कहा कि राहत इस तरह से नहीं दी जा सकती है.

पढ़ें - ईडी ने बीपीएसएल के पूर्व सीएमडी के खिलाफ मामले में 190 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की

सलेम की ओर से पेश अधिवक्ता एस हरिहरन ने हिरासत को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि प्रत्यर्पण विभिन्न आश्वासनों पर किया गया था, जिनका उल्लंघन किया गया है और ऐसे में उनकी हिरासत अवैध हो गई है.

उन्होंने कहा कि सलेम को अतिरिक्त आरोपों के लिए दोषी ठहराया गया है, जो संधि का हिस्सा नहीं थे. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को कायम रखने के मुद्दे पर अदालत को संतुष्ट करने के लिए वकील के अनुरोध पर, अदालत ने मामले को 29 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.

याचिका में कहा गया है कि सलेम को 2002 में प्रत्यर्पित किया गया था और तब से वह जेल में बंद है और ऐसी कोई उम्मीद नहीं है कि लंबित याचिकाओं पर जल्द ही फैसला किया जाएगा.

उच्चतम न्यायालय ने 27 अक्टूबर को हत्या के मामले में सलेम को जमानत देने से इनकार कर दिया था.

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