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कर्नाटक के विजयपुर में कपड़ा कारोबारी ग्राहकों को मुफ्त में सिखाते हैं संस्कृत - cloth merchant sanskrit language

कर्नाटक के विजयपुर में एक ऐसे कारोबारी हैं जो संस्कृत भाषा के प्रचार- प्रसार के लिए अपनी दुकान पर आने वाले ग्राहकों को मुफ्त में संस्कृत सिखाते हैं.

A typical Sanskrit love of a Vijayapur cloth merchant
कर्नाटक के विजयपुर में कपड़ा कारोबारी ग्राहकों को मुफ्त में सिखाते हैं संस्कृत
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Published : Sep 17, 2022, 10:00 AM IST

विजयपुर: कर्नाटक में विजयपुर में एक ऐसा कपड़ा कारोबारी परिवार है जो अपनी दुकान पर आने वाले ग्राहकों को मुफ्त में संस्कृत सिखाता है. उनकी दुकान में बोलचाल की भाषा संस्कृत है. इस तरह से कारोबारी एक प्राचीन भाषा में को बढ़ावा दे रहे हैं. विजयपुरा शहर के मीनाक्षी चौक पर एक कपड़ा दुकान में काम करने वाले मजदूर अपने सहकर्मियों और मालिकों के साथ संस्कृत में बातचीत करते हैं. वे ग्राहकों के साथ भी संस्कृत भाषा में ही बात करते हैं.

इस कपड़े की दुकान के मालिक राजस्थान के रामसिंह राजपूत हैं. वे दो-तीन पीढि़यों पहले विजयपुर आए और बस गए. वह सालों से कपड़ों का छोटा-मोटा कारोबार करते रहे. अब उनका कारोबार बड़ा हो गया है. उनकी दुकान में 70 से ज्यादा मजदूर काम करते हैं. खास बात यह है कि इनमें मुस्लिम युवक और युवतियां अधिक हैं.

संस्कृत भाषा उनकी सांस है: उनकी दुकान में हर कोई संस्कृत भाषा में ही बोलते हैं. दुकान मालिक के संस्कृत बोलने के पीछे एक कहानी है. 18 वर्ष पूर्व जब वे अपने बच्चों और पत्नी के साथ ज्ञान योगश्रम, सिद्धेश्वर मठ गए तो संस्कृत में प्रवचन हुआ. श्री भगवान को प्रणाम करके वापस जाते समय उनका प्रवचन सुनने की सलाह देते हैं. जब वह प्रवचन के लिए बैठते हैं, तो वह समझते हैं कि संस्कृत भाषा कितनी महत्वपूर्ण है. इसलिए उन्होंने अपनी मातृभाषा छोड़ दी और तब से अब तक संस्कृत भाषा उनकी सांस है.

नि:शुल्क प्रशिक्षण : केवल संस्कृत में बोलकर वह भाषा के प्रचार-प्रसार के प्रति समर्पित हैं. वे अब तक करीब 10 से 15 हजार लोगों को संस्कृत पढ़ा चुके हैं. रामसिंह अपने कपड़ों की दुकान पर काम करने के लिए आने वाले किसी भी नए व्यक्ति को पहले दिन से 10 दिनों के लिए संस्कृत का निःशुल्क प्रशिक्षण देते हैं. वह बहुत ही सरलता से संस्कृत पढ़ाते हैं.

ये भी पढ़ें- दुनिया के ताकतवर नेता और देश के पीएम मोदी की मां हीराबा की जीवन गाथा

वह 'संस्कृत भारत' नामक संस्था से जुड़े हैं, जो देश की प्राचीन भाषा है और जो संस्कृत सीखने में रुचि रखते हैं. उन्हें 10 दिनों तक मुफ्त संस्कृत पढ़ाते हैं. उनकी महिमा यह है कि उन्होंने महाराष्ट्र के सीमावर्ती गांव बाबलदा के युवाओं को संस्कृत पढ़ाया.

रामसिंह के बेटे राहुल सिंह ने कहा, 'मुझे भारतीयों द्वारा विदेशों में भी संस्कृत पढ़ाने का आग्रह किया गया है. हमारे देश के लोग विभिन्न देशों में चले गए हैं. जर्मनी, अमेरिका, सिंगापुर आदि देशों में भारतीयों को संस्कृत सीखने में रुचि है. लेकिन, अन्य देशों की समय अवधि हमारे अनुकूल नहीं है. इसलिए हम अभी भी इस बारे में सोच रहे हैं.'

विजयपुर: कर्नाटक में विजयपुर में एक ऐसा कपड़ा कारोबारी परिवार है जो अपनी दुकान पर आने वाले ग्राहकों को मुफ्त में संस्कृत सिखाता है. उनकी दुकान में बोलचाल की भाषा संस्कृत है. इस तरह से कारोबारी एक प्राचीन भाषा में को बढ़ावा दे रहे हैं. विजयपुरा शहर के मीनाक्षी चौक पर एक कपड़ा दुकान में काम करने वाले मजदूर अपने सहकर्मियों और मालिकों के साथ संस्कृत में बातचीत करते हैं. वे ग्राहकों के साथ भी संस्कृत भाषा में ही बात करते हैं.

इस कपड़े की दुकान के मालिक राजस्थान के रामसिंह राजपूत हैं. वे दो-तीन पीढि़यों पहले विजयपुर आए और बस गए. वह सालों से कपड़ों का छोटा-मोटा कारोबार करते रहे. अब उनका कारोबार बड़ा हो गया है. उनकी दुकान में 70 से ज्यादा मजदूर काम करते हैं. खास बात यह है कि इनमें मुस्लिम युवक और युवतियां अधिक हैं.

संस्कृत भाषा उनकी सांस है: उनकी दुकान में हर कोई संस्कृत भाषा में ही बोलते हैं. दुकान मालिक के संस्कृत बोलने के पीछे एक कहानी है. 18 वर्ष पूर्व जब वे अपने बच्चों और पत्नी के साथ ज्ञान योगश्रम, सिद्धेश्वर मठ गए तो संस्कृत में प्रवचन हुआ. श्री भगवान को प्रणाम करके वापस जाते समय उनका प्रवचन सुनने की सलाह देते हैं. जब वह प्रवचन के लिए बैठते हैं, तो वह समझते हैं कि संस्कृत भाषा कितनी महत्वपूर्ण है. इसलिए उन्होंने अपनी मातृभाषा छोड़ दी और तब से अब तक संस्कृत भाषा उनकी सांस है.

नि:शुल्क प्रशिक्षण : केवल संस्कृत में बोलकर वह भाषा के प्रचार-प्रसार के प्रति समर्पित हैं. वे अब तक करीब 10 से 15 हजार लोगों को संस्कृत पढ़ा चुके हैं. रामसिंह अपने कपड़ों की दुकान पर काम करने के लिए आने वाले किसी भी नए व्यक्ति को पहले दिन से 10 दिनों के लिए संस्कृत का निःशुल्क प्रशिक्षण देते हैं. वह बहुत ही सरलता से संस्कृत पढ़ाते हैं.

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वह 'संस्कृत भारत' नामक संस्था से जुड़े हैं, जो देश की प्राचीन भाषा है और जो संस्कृत सीखने में रुचि रखते हैं. उन्हें 10 दिनों तक मुफ्त संस्कृत पढ़ाते हैं. उनकी महिमा यह है कि उन्होंने महाराष्ट्र के सीमावर्ती गांव बाबलदा के युवाओं को संस्कृत पढ़ाया.

रामसिंह के बेटे राहुल सिंह ने कहा, 'मुझे भारतीयों द्वारा विदेशों में भी संस्कृत पढ़ाने का आग्रह किया गया है. हमारे देश के लोग विभिन्न देशों में चले गए हैं. जर्मनी, अमेरिका, सिंगापुर आदि देशों में भारतीयों को संस्कृत सीखने में रुचि है. लेकिन, अन्य देशों की समय अवधि हमारे अनुकूल नहीं है. इसलिए हम अभी भी इस बारे में सोच रहे हैं.'

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