शिमला : हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब हैं भाई-भाई. ये पक्तियां इस देश की एकता अखंडता की नींव हैं. हमारा देश गंगा जमुनी तहजीब पर चलता आया है. इस गंगा जमुनी तहजीब की एक मिसाल हिमाचल प्रदेश की पर्यटन नगरी कुल्लू में भी देखने को मिलती है. कुल्लू वैसे, तो खूबसूरती के लिए जाना जाता है, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही कुल्लू ने आपसी भाईचारे को भी सहेज कर रखा है.
मजार की देखभाल करता है हिंदू परिवार
कुल्लू में स्थित पीर बाबा लालें वाले की मजार पर सालों से हिंदू-मुस्लिम परिवार माथा टेकने के लिए आते हैं. लोगों का मानना है कि यहां आकर सबकी मुरादें पूरी होती हैं. वहीं, इस मजार की देखभाल एक हिंदू परिवार करता है. कुल्लू शहर के अखाड़ा बाजार के रहने वाले सुरेंद्र भाई वर्षों से इस मजार की देखभाल करते हैं. सुरेंद्र भाई से पहले उनके पूर्वज इस मजार की देखभाल करते थे.
बाबा की दरगाह से कोई निराश नहीं लौटता
सुरेंद्र भाई ने कहा कि आज तक यहां से कोई भी निराश होकर नहीं लौटा. इस इलाके में शुभ काम करने से पहले लोग बाबा की दरगाह पर आते हैं. संतान प्राप्ति होने या घर इत्यादि का काम शुरू करना लोग पीर बाबा की दरगाह पर आते हैं.
मन्नत पूरी होने पर मीठे चावल और फूलों की चादर का चढ़ावा
हर गुरुवार और रविवार को दोपहर के समय यहां लोगों का सैलाब उमड़ता है. लोग पीर बाबा से अपने लिए मन्नत मांगते हैं. मजार की देखरेख में जुटे सुरेंद्र मेहता ने बताया कि उनका परिवार वर्ष 1908 में कुल्लू आया था. उनके दादा की भी इस मजार में काफी श्रद्धा थी और उसके बाद से लेकर आज तक उनका परिवार बाबा का भक्त है. उनकी चौथी पीढ़ी इस मजार की सेवा कर रही है.
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सुरेंद्र मेहता ने बताया कि अगर कोई दंपति संतान सुख से वंचित हो, तो यहां मन्नत मांगने पर संतान सुख की प्राप्ति होती है. यहां से आज तक कोई खाली नहीं गया. बीमारियों से घिरे लोगों को भी पीर बाबा सेहतमंद कर देते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद लोग दरगाह पर मीठे चावल और फूलों की चादर चढ़ाते हैं.