उत्तर कन्नड़ : दीपावली पूरे भारत में लगभग एक ही तरह से मनाई जाती है. पटाखों के बिना उत्सव का समापन नहीं होता. लेकिन अंकोला शहर के उत्तर कन्नड़ जिला में दीपावली अनूठे तरीके से इसे मनायी जाती है. कुछ विशेष आयोजनों के साथ दीपावली का त्योहार तह पूरा होता है, यह राज्य में असामान्य प्रथा हो सकती है. इसी तरह, अंकोला में कोमारपंथ समुदाय पारंपरिक रूप से 'होंडे हब्बा' को और अधिक रोमांच के साथ मनाते हैं.
अंकोला शहर में पिछले कई सालों से लोग दीपावली के अवसर पर बालीपद्यमी होंडे हब्बा मनाते हैं. कोमारपंथ समुदाय मूल रूप से क्षत्रिय समाज के हैं. इन्होंने भूमि की साहसिक रक्षा से जुड़े कुछ करतब दिखाकर अपनी परंपरा को जारी रखा है. यह समुदाय कभी राजा के कई दरबारों में सैनिकों के रूप में कार्य करते थे.
चाबुक से लड़ना
इस खेल की विशेषता यह है कि दोनों टीमों के युवा अस्त्र(रस्से से बना विशेष हथियार जिससे दूर तक किसी वस्तु को फेंका जा सके) की मदद से होंडेकाई (जंगल में पाए जाने वाले विशेष फल) से लड़ते हैं. यह खेल कोमारपंथ समाज द्वारा ही खेला जाता है. यह अनूठी परंपरा केवल अंकोला और कुमाता शहर में ही निभाई जाती है. भले ही उनमें से कुछ लोग घायल हो जाते हैं लेकिन यह खेल दशक से जारी हैं.
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खेल के नियम
आमने सामने के समूहों के साथ लड़ाई आक्रामक तरीके से नहीं की जाती है. यह प्रयास किया जाता है कि लोगों को फल घुटने के नीचे लगे. ऐसे लोग जो घुटने के ऊपर से मारते हैं उन्हें खेल से निकाल दिया जाता है. यह खेल करीब 4 घंटे तक चलता है. आखिरकार खेल तब समाप्त होता है जब दोनों टीमें वेंकटरमण मंदिर में प्रवेश करते हैं. भले ही कुछ सदस्यों को खेल के दौरान चोट क्यों न लग जाए, वे अपनी परंपरा को जारी रखते हैं और एक साथ जश्न मनाते हैं.