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गरीब देशों को क्यों नहीं मिल रहा कोरोना का टीका, जानें इसकी वजह - 99 फीसदी गरीब को वैक्सीन नहीं

कोरोना पर नियंत्रण लगाने के लिए जितने भी वैक्सीन विकसित किए गए हैं, उनकी आधी संख्या धनी देशों के पास है. यही वजह है कि दुनिया के गरीब देशों की 99 फीसदी आबादी को अभी तक वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो पाया है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वैक्सीन वितरण पर सही रणनीति अपनाई गई होती, तो 65 फीसदी मौत को रोका जा सकता था.

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Published : Jun 25, 2021, 7:14 PM IST

हैदराबाद : मई 2021 में यूनिसेफ ने कहा था कि जब तक हरेक व्यक्ति को टीका नहीं लग जाता है, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं माना जा सकता है. गरीब देशों की 99 फीसदी आबादी को अभी भी टीका नहीं लगा है.

जन स्वास्थ्य मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि 70 फीसदी आबादी को टीका लग जाता है, तो हम कोरोना पर काबू पा सकते हैं. इसका मतलब है कि दुनिया की 7.9 अरब की आबादी में से 70 फीसदी को वैक्सीन उपलब्ध करवाना हमारा प्राथमिक लक्ष्य है.

21 जून 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि अभी महज 10.04 फीसदी आबादी को ही टीका लगा है. निम्न आय वाले लोगों में मात्र 0.9 फीसदी लोगों को ही डोज लगा है, वह भी पहली डोज.

अभी वैक्सीन मुख्य रूप से धनी देशों के पास ही उपलब्ध रहा है. या कहें कि उन्होंने अपने लिए सुरक्षित रख लिया था. लेकिन आबादी में इनकी हिस्सेदारी महज सातवां हिस्सा है.

अभी हाल ही में अमेरिका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, यूरोपियन संघ और जापान ने एक अरब वैक्सीन गरीब देशों को देने का संकल्प लिया है.

हमारा प्रयास सबको वैक्सीन उपलब्ध करवाने का होना चाहिए, ताकि वायरस म्यूटेट हो, उसके पहले लोग टीका लगा लें. पर, दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका. इन्फेक्शन और इंजेक्शन की रेस में इंजेक्शन हारता हुआ दिख रहा है.

अधिकांश देशों में समस्या वैक्सीन आपूर्ति की नहीं, बल्कि उसके वितरण में आ रही है. धनी देशों ने अपनी आबादी से ज्यादा वैक्सीन स्टोर कर लिया. जैसे अमेरिका ने 1.2 अरब वैक्सीन डोज सुरक्षित रख लिया. यानी एक व्यक्ति पर 3.7 डोज, जबकि जरूरत सिर्फ दो डोज की होती है. कनाडा ने 381 मिलियन डोज सुरक्षित कर लिए. अपनी जरूरत से पांच गुना अधिक.

जून 2021 तक जितने भी वैक्सीन उपल्बध थे, उनका आधा हिस्सा धनी देशों के पास है. इनकी आबादी दुनिया की आबादी का सातवां हिस्सा है. इसका मतलब है कि बाकी के देशों को वैक्सीन मिलने में कठिनाई आएगी ही. वैश्विक स्तर पर कोवैक्स (गरीब देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाना) एक व्यस्था बनाई गई है. लेकिन उसका ठीक से पालन नहीं हो रहा है.

होंड्रुस के पास 1.4 मिलियन डोज वैक्सीन उपलब्ध है. इससे वह अपनी सात फीसदी आबादी को टीका लगवा सकता है. सभी डोज एस्ट्रजेनेका कंपनी के हैं. लेकिन ये संख्या पर्याप्त नहीं हैं. हैती को मात्र 4,61,500 डोज डोनेशन के तौर पर मिले हैं.

कोवैक्स की रणनीति (यानी गरीब देशों को उचित संख्या में वैक्सीन उपलब्ध हो) भी सफल नहीं हो रही है. इसे संयुक्त राष्ट्र ने बनाया है. इसके मुताबिक कम से कम 20 फीसदी लोगों को टीका अवश्य ही लगनी चाहिए.

पिछले साल नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी ने वैक्सीन की रणनीति को लेकिन कुछ अध्ययन किया था. उन्होंने दो रणनीति विकसित की. उनका अनुमान है कि वैक्सीन को लेकर अगर दुनिया के विभिन्न देशों के बीच बेहतर तालमेल होता, तो 61 फीसदी मौत को रोका जा सकता था.

आप ये कह सकते हैं कि अगर सहयोग का रवैया अपनाया गया होता, तो आधी मौतें नहीं होतीं. अप आप सोचिए, उन देशों की स्थिति और खराब है, जहां पहले से ही असमानता व्याप्त है.

लैटिन अमेरिका में आप इसे देख सकते हैं. नेताओं, व्यवसायियों और अधिकारियों को टीका मिल गया. जिनके पास पैसा है, उन्होंने दूसरे देशों में जाकर वैक्सीन ले ली. इसकी वजह से सामाजिक असमानता और अधिक बढ़ी.

ये भी पढ़ें : तीन करोड़ कोविड वैक्सीन खुराक लगाने वाला देश का पहला राज्य बना महाराष्ट्र

इससे तो यही कहा जा सकता है कि हम एक ऐसे समाज को बनाने में हम योगदान कर रहे हैं, जहां धनी लोग अपने आप को बचा ले रहे हैं, लेकिन जिनके पास संसाधन नहीं हैं, उनकी स्थिति दयनीय होती जा रही है.

हैदराबाद : मई 2021 में यूनिसेफ ने कहा था कि जब तक हरेक व्यक्ति को टीका नहीं लग जाता है, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं माना जा सकता है. गरीब देशों की 99 फीसदी आबादी को अभी भी टीका नहीं लगा है.

जन स्वास्थ्य मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि 70 फीसदी आबादी को टीका लग जाता है, तो हम कोरोना पर काबू पा सकते हैं. इसका मतलब है कि दुनिया की 7.9 अरब की आबादी में से 70 फीसदी को वैक्सीन उपलब्ध करवाना हमारा प्राथमिक लक्ष्य है.

21 जून 2021 तक के आंकड़े बताते हैं कि अभी महज 10.04 फीसदी आबादी को ही टीका लगा है. निम्न आय वाले लोगों में मात्र 0.9 फीसदी लोगों को ही डोज लगा है, वह भी पहली डोज.

अभी वैक्सीन मुख्य रूप से धनी देशों के पास ही उपलब्ध रहा है. या कहें कि उन्होंने अपने लिए सुरक्षित रख लिया था. लेकिन आबादी में इनकी हिस्सेदारी महज सातवां हिस्सा है.

अभी हाल ही में अमेरिका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, यूरोपियन संघ और जापान ने एक अरब वैक्सीन गरीब देशों को देने का संकल्प लिया है.

हमारा प्रयास सबको वैक्सीन उपलब्ध करवाने का होना चाहिए, ताकि वायरस म्यूटेट हो, उसके पहले लोग टीका लगा लें. पर, दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका. इन्फेक्शन और इंजेक्शन की रेस में इंजेक्शन हारता हुआ दिख रहा है.

अधिकांश देशों में समस्या वैक्सीन आपूर्ति की नहीं, बल्कि उसके वितरण में आ रही है. धनी देशों ने अपनी आबादी से ज्यादा वैक्सीन स्टोर कर लिया. जैसे अमेरिका ने 1.2 अरब वैक्सीन डोज सुरक्षित रख लिया. यानी एक व्यक्ति पर 3.7 डोज, जबकि जरूरत सिर्फ दो डोज की होती है. कनाडा ने 381 मिलियन डोज सुरक्षित कर लिए. अपनी जरूरत से पांच गुना अधिक.

जून 2021 तक जितने भी वैक्सीन उपल्बध थे, उनका आधा हिस्सा धनी देशों के पास है. इनकी आबादी दुनिया की आबादी का सातवां हिस्सा है. इसका मतलब है कि बाकी के देशों को वैक्सीन मिलने में कठिनाई आएगी ही. वैश्विक स्तर पर कोवैक्स (गरीब देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाना) एक व्यस्था बनाई गई है. लेकिन उसका ठीक से पालन नहीं हो रहा है.

होंड्रुस के पास 1.4 मिलियन डोज वैक्सीन उपलब्ध है. इससे वह अपनी सात फीसदी आबादी को टीका लगवा सकता है. सभी डोज एस्ट्रजेनेका कंपनी के हैं. लेकिन ये संख्या पर्याप्त नहीं हैं. हैती को मात्र 4,61,500 डोज डोनेशन के तौर पर मिले हैं.

कोवैक्स की रणनीति (यानी गरीब देशों को उचित संख्या में वैक्सीन उपलब्ध हो) भी सफल नहीं हो रही है. इसे संयुक्त राष्ट्र ने बनाया है. इसके मुताबिक कम से कम 20 फीसदी लोगों को टीका अवश्य ही लगनी चाहिए.

पिछले साल नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी ने वैक्सीन की रणनीति को लेकिन कुछ अध्ययन किया था. उन्होंने दो रणनीति विकसित की. उनका अनुमान है कि वैक्सीन को लेकर अगर दुनिया के विभिन्न देशों के बीच बेहतर तालमेल होता, तो 61 फीसदी मौत को रोका जा सकता था.

आप ये कह सकते हैं कि अगर सहयोग का रवैया अपनाया गया होता, तो आधी मौतें नहीं होतीं. अप आप सोचिए, उन देशों की स्थिति और खराब है, जहां पहले से ही असमानता व्याप्त है.

लैटिन अमेरिका में आप इसे देख सकते हैं. नेताओं, व्यवसायियों और अधिकारियों को टीका मिल गया. जिनके पास पैसा है, उन्होंने दूसरे देशों में जाकर वैक्सीन ले ली. इसकी वजह से सामाजिक असमानता और अधिक बढ़ी.

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इससे तो यही कहा जा सकता है कि हम एक ऐसे समाज को बनाने में हम योगदान कर रहे हैं, जहां धनी लोग अपने आप को बचा ले रहे हैं, लेकिन जिनके पास संसाधन नहीं हैं, उनकी स्थिति दयनीय होती जा रही है.

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