देहरादून: उत्तराखंड में पलायन (migration in uttarakhand ) हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है. राज्य सरकारों के सामने भी पलायन एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा रहा है. विपक्ष भी हमेशा ही पलायन को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सरकार को घेरने में लगा रहता है. अब तक उत्तराखंड में पलायन की खबरें अक्सर पहाड़ी इलाकों से सामने आती थी, मगर अब जो रिपोर्ट (Reports of migration in plains of Uttarakhand) सामने आई है, उससे निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में सरकार की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.
दरअसल, ग्राम विकास एवं पलायन निवारण आयोग ने सरकार को एक रिपोर्ट भेजी है. इस रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. रिपोर्ट में फिलहाल हरिद्वार की स्थिति को उजागर किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि हरिद्वार जनपद के ग्रामीण इलाकों (Migration to rural areas of Haridwar district) से भी लगातार पलायन हो रहा है. यह पलायन रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाओं के लिए हो रहा है. मतलब साफ है कि लोग खेती छोड़कर शहरों की ओर रोजी रोटी की तलाश में पलायन कर रहे हैं.
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पलायन की क्या है वजह: ग्रामीण विकास एवं पलायन निवारण आयोग ने राज्य सरकार को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें कहा गया है कि बीते 12 साल में हरिद्वार जैसे शहर में 55% आबादी बढ़ी है. इस बढ़ी आबादी में सबसे अधिक वे लोग हैं जो कभी हरिद्वार के गांवों में निवास करते थे. ये लोग गांव में रहकर के खेती-बाड़ी से अपना गुजारा करते थे. धीरे-धीरे साल 2008 के बाद इन्होंने गांव से शहर की तरफ का रुख किया. अब गांव के युवा हरिद्वार के भगवानपुर और सिडकुल हरिद्वार में नौकरी करने के लिए पलायन कर रहे हैं. रिपोर्ट में घटती कृषि को भी पलायन की मुख्य वजह बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अब किसान अपनी आजीविका चलाने के लिए गांव छोड़कर शहरों की ओर जा रहे हैं.
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ये हैं आंकड़े: राज्य सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2008 से लेकर 2018 तक हरिद्वार के 153 ग्राम पंचायतों में से 8166 व्यक्तियों ने पलायन किया है. जिसमें सबसे अधिक पलायन करने वालों में बहादराबाद ब्लॉक के लगभग चालीस गांव शामिल हैं. यहां पर ग्राम पंचायतों में से 3091 व्यक्तियों ने शहर का रुख किया है. सबसे कम नारसन ब्लॉक में से 111 व्यक्तियों ने पलायन किया है.
रिपोर्ट में हरिद्वार की 73 ग्राम पंचायतों का आंकड़ा दिया गया है. जिसमें बहादराबाद ब्लॉक में 3091 लोगों ने पलायन किया है. रुड़की में 2376 लोगों ने पलायन किया है. खानपुर में 300 लोगों ने पलायन किया. लक्सर में 574 लोगों ने पलायन किया है. नारसन में 111 लोगों ने पलायन किया है. भगवानपुर में 1716 लोगों ने पलायन किया है.
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हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह वह लोग हैं जो समय-समय पर अपने गांव में आते रहते हैं, यानी इसे अस्थाई पलायन के रूप में देखा जा सकता है, जबकि स्थाई पलायन भी बड़ी संख्या में हुआ है. जिसमें बाहदराबाद में 571 लोगों ने स्थाई रूप से पलायन किया. रुड़की में 39 लोगों ने पलायन किया. खानपुर में 142 लोगों ने पलायन किया. भगवानपुर में 168 लोगों ने पलायन किया. लक्सर में 3 लोगों ने पलायन किया. नारसन में 28 लोगों ने पलायन किया. यह आंकड़े बताते हैं उत्तराखंड के हरिद्वार जैसे प्रमुख जिले में कृषि के कामों में किसानों की रुचि नहीं है.
क्या कहते हैं अधिकारी: इस मामले में ग्रामीण विकास एवं प्लान निवारण आयोग के उपाध्यक्ष डॉ एसएस नेगी कहते हैं कि इस रिपोर्ट को बनाने में आयोग को लगभग 6 से 7 महीने का वक्त लगा है. यह रिपोर्ट हरिद्वार के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सामाजिक और तमाम पहलुओं को देख कर बनाई गई है. हमारा काम सरकार को यह रिपोर्ट पेश करना है. हमने सरकार को रिपोर्ट में उन सभी बिंदुओं को प्रकाशित किया है जिस पर सरकार और सरकार के विभाग अपने हिसाब से काम करेंगी.
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क्या कहते हैं जानकार: हरिद्वार को बारीकी से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुनील दत्त पांडे(Senior journalist Sunil Dutt Pandey) कहते हैं कि हरिद्वार में उत्तराखंड बनने के बाद तेजी से विकास हुआ है. यहां रोजगार के लिए सिडकुल की स्थापना हुई. यहां बड़ी संख्या में फैक्ट्रियां भी है. कुल मिलाकार हरिद्वार में रोजगार की अधिक संभावनाएं हैं. पर्यटन के क्षेत्र के लिहाज से भी हरिद्वार को विकसित किया गया. जिसके कारण आसपास के गावों के लोगों ने भी इस ओर रूख करना शुरू किया है. वे बताते हैं हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में हरिद्वार शहर पहुंचते हैं.