चेन्नई : वो 17 जून, 1911 का दिन था. जब तत्कालीन तिरुनेलवेली के कलेक्टर रॉबर्ट विलियम डी एस्कॉर्ट ऐश अपनी पत्नी मैरी के साथ बोट मेल ट्रेन में प्रथम श्रेणी की यात्रा कर रहे थे. वो अपने बच्चों से मिलने के लिए जा रहे थे जो कोडाइकनाल में पढ़ते थे. जब कलेक्टर का सुरक्षा गार्ड उनके लिए पानी लेने गया, तभी एक यात्री अचानक उसी डिब्बे में घुसा और रॉबर्ट विलियम ऐश पर तीन गोलियां चला दीं. फिर उस शख्स ने रेलवे स्टेशन के पास एक शौचालय में खुद को भी गोली मार ली. 25 साल का वो युवक और कोई नहीं बल्कि स्वतंत्रता सेनानी वंचिनाथन था.
तिरुनेलवेली के पास सेंगोट्टई टाउन में जन्में वंचिनाथन ने सेनगोट्टई में अपनी स्कूली शिक्षा और त्रिवेंद्रम में पूरी की. इसके बाद उन्होंने वन विभाग में काम किया. उस दौर में देशभर में आजादी के लिए आंदोलन हो रहे थे. आजादी को लेकर चल रही उस लहर से प्रेरित होकर वंचिनाथन ने संघर्ष के लिए सशस्त्र बलों का रास्ता चुना. उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग में हिस्सा लेने के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेने का फैसला लिया. उन्होंने अय्यर के भारत माता संगठन के जरिये हथियारों की ट्रेनिंग ली, जो उस वक्त के फ्रांसीसी उपनिवेश में संचालित सावरकर के अभिनव भारत संगठन की एक शाखा थी.
इतिहास बताता है कि तत्कालीन एकीकृत तिरुनेलवेली के स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से शामिल थे. कलेक्टर ऐश इन आंदोलनों को पुलिस बल से कुचलना चाहता था जिसे थूथुकुडी के डिप्टी कलेक्टर के पद से प्रमोशन दिया गया था. ऐश वी.ओ. चिदंबरम और सुब्रमण्य शिवा के स्वामित्व वाली पहली भारतीय शिपिंग कंपनी को भी नष्ट करना चाहता था. इन सबसे वंचिनाथन का गुस्सा इस ब्रिटिश अधिकारी के खिलाफ इतना उबला कि उसे मौत के घाट उतार दिया.
कहा जाता है कि वंचिनाथन जिस तरह ब्रिटिश हुकुमत का डटकर मुकाबला कर रहे थे, उनका नाम अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तरह लोकप्रिय नहीं था. आत्महत्या के बाद उनकी जेब से मिले एक पत्र में लिखा था 'ब्रिटिश हमारे देश पर कब्जा कर रहे हैं और अविनाशी सनातन धर्म को कुचल रहे हैं इसलिए, हमें अंग्रेजों को बाहर निकालकर धर्म और स्वतंत्रता की स्थापना करनी चाहिए. हमारे क्षेत्र में आने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को मौत के घाट उतारने के लिए हम 3,000 मद्रासियों को भर्ती कर रहे हैं.'
वंचिनाथन के नाम पर रेलवे जंक्शन का नामकरण
वंचिनाथन के बलिदान को याद करने के लिए, पूर्व लोकसभा सांसद कुमारी अनंतन ने मनियाची रेलवे जंक्शन का नाम बदलकर 'वांचि मनियाची' कर दिया. तमिलनाडु सरकार ने सेंगोट्टई में वंचिनाथन की एक प्रतिमा भी लगवाई और मणिमंडपम का निर्माण किया था.
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इतिहासकार एआर वेंकटचलपति कहते हैं कि ऐश की हत्या का स्वतंत्रता आंदोलन पर काफी प्रभाव पड़ा. इस घटना के बाद, दमन के डर से इस क्षेत्र में स्वतंत्रता के समर्थन वाली गतिविधियां लगभग समाप्त हो गई थीं. उनके अनुसार, कलेक्टर ऐश के अंतिम संस्कार में व्यापारिक समुदाय के लोगों सहित इलाके के प्रमुख लोग मौजूद थे.
वांचि आंदोलन के अध्यक्ष रामनाथन बताते हैं कि, तत्कालीन तिरुनेलवेली कलेक्टर ऐश ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध और आंदोलन को दबाने के लिए आतुर थे. उन्होंने पहली भारतीय शिपिंग कंपनी को नष्ट करने के लिए दृढ़ता से काम किया. इसलिए उन्हें गोली मारने का फैसला किया गया. स्वतंत्रता सेनानियों की राय थी कि अगर एक भारतीय ने ब्रिटिश शासकों की गोली मारकर हत्या कर दी तो भारत आजाद हो जाएगा.
इसी तरह, वंचिनाथन के भतीजे हरिहर सुब्रमण्यन ने कहा, वंचियानाथन कभी घर पर नहीं रुकते थे. वो सार्वजनिक कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल होते थे. इसके अलावा, वे मुख्य रूप से स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थे. हालांकि, वांचि के संघर्ष की अवधि 1907 से शुरू हुई और 1911 में समाप्त हुई, वो कहते हैं कि वंचिनाथन का परिवार उनकी मौत के बाद बहुत संकट में था.