भोपाल : मुरैना जिले की चंबल नदी में रेत खनन के कारण बाटागुर कछुओं (Batagur Turtle) की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है. जिसके मद्देनजर चंबल सेंचुरी में इन कछुओं को संरक्षित करने के लिए उनके अंडों को सहेज कर रखने और उन्हें चंबल में प्रवाहित करने का प्रयोग प्रदेश में पहली बार किया गया है. इस पहल से बाटागुर कछुओं की संख्या बढ़ सकती है.
- 600 कछुओं के बच्चाें काे चंबल में छोड़ा गया
बाटागुर कछुओं के अंडों को सुरक्षित रखने के लिए चंबल किनारे मंडरायल, धाैलपुर, मुरैना में राजघाट, शंकरपुरा और अंडवापुरैनी में 4 हैचरी बनाकर उनमें कछुओं की देखरेख का काम शुरू किया गया है. इन हैचरी में 3 हजार अंडाें के संरक्षण के बाद 600 कछुओं के बच्चाें काे चंबल में छोड़ा गया है. चंबल में 9 प्रकार के कछुओं की दुर्लभ प्रजातियां हैं. जिनका अब सालभर संरक्षण हाे सकेगा. चंबल नदी के अलावा बाटागुर कछुआ, बाटागुर डोंगोका कछुए पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल में पाए जाते हैं. भारत में यह कछुए बिहार, यूपी, बंगाल और मध्य प्रदेश की चंबल पाए जाते हैं. जलीय जीव विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रजाति के कछुओं का वजन 30 से 35 किलो तक होता है जबकि सामान्य कछुओं में वजन डेढ़ किलो तक पाया जाता है.
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- चंबल में 9 कछुओं की प्रजाति
चंबल में हैचिंग के बाद कछुओं के 600 बच्चे अंडों से बाहर निकल आए हैं. जिन्हें चंबल नदी में छोड़ दिया गया है. हैचरी में कछुओं के अंडाें की सुरक्षा के लिए नेट कवर बनाया है, ताकि इनको सियार, गाेयरा, बिज्जु और कुत्ताें से बचाया जा सके. इन कछुओं के अलावा चंबल में 9 कछुओं की प्रजाति पाई जाती हैं. इनके नाम बाटागुर कछुआ, बाटागुर डोंगोका कछुआ, कछुआ टेंटोरिया कछुआ, हारडेला थुरगी कछुआ, चिप्रा इंडिका कछुआ, निलसोनिया गेंजेटिक्स कछुआ, निलसोनिया ह्यूरम कछुआ, लेसिमस पंटाटा कछुआ, लेसिमस ऐंडरसनी कछुआ हैं.