वाराणसी : भारत के दूसरे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की आज 55 वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है और उनके जीवन और सेवाओं को याद किया जा रहा है. 'जय किसान, जय जवान' का नारा बुलंद करने वाले लाल बहादुर शास्त्री का सादा जीवन का अंदाजा बनारस के रामनगर स्थित उनके पैतृक घर से लगाया जा सकता है, जहां उनका मिट्टी का घर, मिट्टी का चूल्हा, एक चारपाई, लकड़ी की कुर्सी, छोटे बैठक कक्ष और कुछ बर्तनों के साथ रसोई आज भी मौजूद है.
लाल बाहदुर शास्त्री का जन्म दो अक्टूबर में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था, जबकि उनका दिहांत उज्बेकिस्तान के ताशकंद शहर में 11 जनवरी 1966 को हुआ था.
अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होंने बनारस में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उसके बाद उन्होंने शास्त्री की डिग्री प्राप्त की और तब से वह लाल बहादुर शास्त्री के रूप में जाने गए.
अपनी शिक्षा के दौरान वह बनारस के रामनगर के महाराजा राम नरेश के किले से 200 मीटर दूर एक कच्चे मकान में रहते थे. रात में जिस लालटेन की मदद से वह अपना अध्ययन करते थे वो आज भी मौजूद है.
लाल बहादुर शास्त्री को इस घर से इतना लगाव था कि उच्च पद संभालने के बाद भी वे इस घर में रहते थे और एक तंग कमरे में लोगों से मिलते थे.
लाल बहादुर शास्त्री किसानों से बहुत प्यार करते थे, यही कारण है कि आज भी रामनगर के संग्रहालय में उनकी किसानों के साथ खींची गईं तस्वीरें मौजूद हैं.
यह विश्वास करना कठिन है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के इस घर में इतना सरल जीवन जीकर देश की सेवा की और देश के सभी नागरिकों के लिए एक आदर्श बन गए.
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लाल बहादुर शास्त्री के पिता शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे, जो बाद में वित्त विभाग के कार्यालय में क्लर्क बन गए. भारत की स्वतंत्रता के बाद लाल बहादुर शास्त्री को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था.
उनकी सलाह पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव की शुरूआत हुई थी. वह 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने