नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि वह समयसीमा का पालन करेगी और न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाएगी. हालांकि केंद्र के इस जवाब पर शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र द्वारा बार-बार नामों को वापस भेजना चिंता का विषय है.
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि उच्च न्यायालयों द्वारा भेजी गई कुछ हालिया सिफारिशों पर कार्रवाई की जा रही है. कॉलेजियम द्वारा भेजी गई 44 सिफारिशों (न्यायाधीशों के नाम) पर विचार किया जा रहा है. इस सप्ताह के अंत तक स्थिति साफ हो जाएगी (44 judges Names to be confirmed within three days Center to SC).
एजी ने जोर देकर कहा कि उच्च न्यायालयों और शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित समयसीमा के अनुरूप सभी प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों द्वारा 104 सिफारिशें भेजी गई हैं, इनमें से 44 को मंजूरी दी जाएगी.
पीठ, जिसमें जस्टिस अभय एस. ओका भी शामिल हैं, ने एजी से उन पांच नामों के बारे में पूछा, जिनकी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति के लिए सिफारिश की थी. एजी ने जवाब दिया, क्या आप इसे थोड़ी देर के लिए टाल देंगे? मेरे पास कुछ इनपुट हैं, मुझे नहीं लगता कि मुझे यहां इस पर चर्चा करनी चाहिए.
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने तबादलों के मामलों पर सरकार के शांत बैठे रहने पर नाराजगी जताते हुए पूछा कि क्या कोई तीसरा पक्ष इसे प्रभावित कर रहा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि स्थानांतरण के लिए दस सिफारिशें की गई हैं और ये सितंबर और नवंबर के अंत में की गई हैं. पीठ ने कहा, इसमें सरकार की बहुत सीमित भूमिका है. उन्हें लंबित रखने से बहुत गलत संकेत जाता है. यह कॉलेजियम को अस्वीकार्य है.
पीठ ने यह भी बताया कि 22 नाम (न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए) केंद्र द्वारा हाल ही में लौटाए गए थे, और उनमें से कुछ नामों को कॉलेजियम द्वारा दोबारा भेजा गया था.
नामों को वापस भेजना चिंता का विषय : कॉलेजियम ने कुछ नामों को तीन बार भेजा, इसके बावजूद केंद्र ने उन्हें वापस कर दिया. पीठ ने कहा, केंद्र सरकार द्वारा 20 नाम वापस भेजे गए हैं और कुछ नाम ऐसे हैं, जिन पर केंद्र को लगता है कि हमें विचार करना चाहिए.
पीठ ने कहा, केंद्र द्वारा दोहराए गए नामों को वापस भेजना चिंता का विषय है. सरकार को आशंका हो सकती है, लेकिन नामों को रोक कर नहीं रखा जा सकता है ये हम दोहराएंगे. इसमें कहा गया है कि एक बार जब कॉलेजियम दोहराता है तो नियुक्ति को मंजूरी देने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार द्वारा कॉलेजियम की सिफारिशों को मंजूरी देने में देरी के कारण उम्मीदवार न्यायाधीश पद के लिए अपनी सहमति वापस ले लेते हैं या सहमति नहीं देते हैं. इससे मेधावी वकील न्यायाधीश पद के लिए अपनी सहमति नहीं देते.
शीर्ष अदालत ने मामले को फरवरी के पहले सप्ताह के लिए निर्धारित किया. अदालत एक अधिवक्ता के माध्यम से द एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु द्वारा दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए निर्धारित समय सीमा के संबंध में शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन नहीं किया है.
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