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कोविड की दूसरी लहर के बीच टीका लगवाने को बेचैन मध्यम वर्ग

हर दिन बढ़ते कोविड-19 के मामलों को देखते हुए करीब 300-350 मिलियन मध्यम वर्ग भारतीय कोरोना वैक्सीन लेने के लिए बेताब हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 4,00,000 लाख से अधिक दैनिक मामले और 4000 के करीब मौतों का आंकड़ा देश देख रहा है.

कोविड की दूसरी लहर के बीच टीका लगवाने को बेचैन मध्यम वर्ग
कोविड की दूसरी लहर के बीच टीका लगवाने को बेचैन मध्यम वर्ग
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Published : May 11, 2021, 10:33 PM IST

नई दिल्ली : हर दिन बढ़ते कोविड-19 के मामलों को देखते हुए करीब 300-350 मिलियन मध्यम वर्ग भारतीय कोरोना वैक्सीन लेने के लिए बेचैन हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान पिछले कुछ दिनों से देश में 4,00,000 लाख से अधिक दैनिक मामले और 4000 के करीब मौतों का आंकड़ा सामने आ रहा है.

कोरोना के इस विस्तार ने प्रौद्योगिकी और सूचना की जानकारी होने के बावजूद मध्यम वर्ग को जकड़ लिया और संकट से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होने के कारण वह खुद को वायरस से बचाने में विफल रहा.

फरवरी अंत तक कोरोना के नए वैरिएंट से 90,000 हजार लोगों की जान गई, जब मौतों का कुल आंकड़ा 1.57 लाख था. वहीं 10 मई तक यह आंकड़ा 2.50 लाख से अधिक पहुंच गया. कोरोना के नए वैरिएंट से पिछले 30 दिनों में 80,000 मौतें हुई हैं. इसने मध्यम वर्ग कोरोना टीका लेने के लिए बेचैन कर दिया है.

भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार, जो 1 मार्च से वरिष्ठ नागरिकों और 1 अप्रैल से 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग वाले लोगों को दी जा रहे वैक्सीन को लेने में देरी कर रहा था, आज कोविन एप पर वैक्सीन के लिए स्लॉट बुक करने को लेकर बेताब है.

ईटीवी भारत की जानकारी में पिछले हफ्ते ऐसा ही एक मामला आया था, जहां गुरुग्राम में एक मध्यम आयु वर्ग का युगल कोविड शॉट लेने के लिए पीपीई किट पहन कर अस्पताल आया था.

गौरतलब है कि वैक्सीन लेने आया युगल किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाव हेतु पीपीई किट पहन कर आया था, जिन्होंने राष्ट्रीय कोविड हेल्पलाइन नंबर 1075 से जांचने के बाद उसी दिन पीपीई किट खरीद लिया जिससे वे सिविल अस्पताल में चल सकें और वैक्सीन प्राप्त कर सकें.

हालांकि, टीकाकरण अधिकारी ने 1 मई से लागू होने वाले नए नियमों का हवाला देते हुए उन्हें लौटा दिया. नए नियमों के तहत अस्पताल में वैक्सीन प्राप्त करना पहले से ही राष्ट्रीय टीकाकरण पोर्टल पर स्लॉट बुक करके ही आना संभव है.

टीकाकरण अधिकारी के दंपति की आयु पूछने पर पता चला कि दोनों ही 45 वर्ष से अधिक के हैं. अधिकारी ने उन्हें बताया कि वो एक महीने पहले ही टीका ले सकते थे.

यह मामला भारतीय मध्यम वर्ग की लापरवाही को दर्शाता है, जो पहले तो टीका लेने में आनाकानी कर रहे थे, और अब जब केंद्र सरकार द्वारा 18-44 समूह के लिए टीकाकरण शुरु होने के निर्णय ने योग्य उम्मीदवारों का विस्तार किया है और किया है स्लॉट्स बुक करना और भी मुश्किल हो गया.

टीकाकरण की स्थिति रिपोर्ट

ईटीवी भारत की टीम ने शहर के विभिन्न हिस्सों में स्थित पांच मध्यम और बड़े निजी अस्पतालों और क्लीनिकों का भी सर्वेक्षण किया. ये सभी अस्पताल पिछले महीने के अंत तक कोविड टीकों की पेशकश कर रहे थे, लेकिन अब इनके स्टॉक खत्म हो गए हैं.

अस्पतालों के बाहर टीकों की अनुपलब्धता के बारे में नोटिस लगा दिया गया है.

राष्ट्रीय टीकाकरण पोर्टल कोविन पर उपलब्ध नवीनतम जानकारी के अनुसार, शहर के केवल दो निजी अस्पताल सशुल्क टीके दे रहे थे. मैक्स हॉस्पिटल कोविशिल्ड को 900 रुपये में एक खुराक दे रहा था, वहीं फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट कोविक्सिन को 1250 रुपये में एक खुराक दे रहा था.

गुरुग्राम में, कई सरकारी स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में मुफ्त टीके उपलब्ध थे.

दिल्ली में, भुगतान किए गए टीके कई अस्पतालों में उपलब्ध थे और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीके भी दिल्ली भर में उपलब्ध थे.

देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में, कई अस्पतालों ने पेड टीकों की पेशकश तो की, लेकिन स्लॉट उपलब्ध नहीं थे.

इसी तरह, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे दक्षिणी भारत के शहरों में वैक्सीन स्लॉट की उपलब्धता के लिए कोविन पोर्टल से पता चला है कि सभी स्लॉट बुक थे, लेकिन तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के मामले में, एक निजी अस्पताल में टीकाकरण स्लॉट उपलब्ध थे.

व्याकुलता के पीछे दो कारक

वैक्सीन को लेकर मध्यम वर्ग की इस व्याकुलता के दो कारण हैं. पहला, इसकी प्रभावकारिता और साइड इफेक्ट्स के बारे में मजबूत वैक्सीन संकोच था. मध्यम वर्ग के शिक्षित लोगों ने सोचा कि जब मार्च और अप्रैल में टीकाकरण केंद्रों पर फुटफॉल अभी भी कम है, तब इसे लेने के बजाय इंतजार करना और देखना उचित समझा.

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को लेकर आई मीडिया रिपोर्टों से उनकी हिचकिचाहट को बल मिला, जो भारत में कोविशील्ड के नाम से उत्पादित और बेचा जाता है, जिससे कई यूरोपीय देशों में कुछ रोगियों में दुर्लभ रक्त के थक्के बने. इस कारण कुछ यूरोपीय संघ के देशों को इसके उपयोग को निलंबित करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

हालांकि, शहरों में चिकित्सा बुनियादी ढांचे का अभूतपूर्व पतन, जहां बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग के लोग अपने परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों भर्ती होने या आईसीयू बेड प्राप्त करने में विफल रहे, उन्हें बाहर औपचारिक चैनलों से ऑक्सीजन सिलेंडर, सांद्रता और जीवन रक्षक दवाओं की व्यवस्था करने के लिए मजबूर किया गया. अत्यधिक कीमतों, वैक्सीन की हताशा ने भी उनके संकोच को बढ़ावा दिया.

ये मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग के परिवार बस एक ऑक्सीजन सिलेंडर या उसके रिफिल की व्यवस्था करने के लिए कई बार अपनी एसयूवी और बड़ी कारों में 50-100 किलोमीटर तक ड्राइविंग करते देखे गए. ताकि वह ऑक्सीजन प्राप्त कर सकें और रोगियों को बचा सकें.

वैक्सीन झिझक महंगा साबित हुआ

पिछले साल नवंबर में कम्युनिटी नेटवर्किंग प्लेटफ़ॉर्म लोकल सर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि 25,000 प्रतिभागियों में से केवल 8% ही वैक्सीन लेने के लिए तैयार थे, क्योंकि प्रतिभागियों में से अधिकांश लगभग 60% ने कहा कि वे टीका लेने में जल्दबाजी नहीं करेंगे, जबकि 28% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे 3-6 महीनों तक इंतजार करेंगे, 13% ने कहा कि वे 6-12 महीनों तक इंतजार करेंगे, 7% ने कहा कि वे 2021 में वैक्सीन नहीं लेंगे और केवल 2022 में इस पर विचार करेंगे.

वहीं, 11% प्रतिभागियों ने कहा कि वे कुछ भी नहीं कह सकते हैं या टीकाकरण के बारे में फैसला नहीं कर सकते हैं, प्रतिभागियों की एक समान संख्या ने कहा कि वे वैक्सीन तभी लेंगे जब यह एक निजी स्वास्थ्य सेवा चैनल के माध्यम से प्रदान किया जाता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में उनके आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है.

नई दिल्ली : हर दिन बढ़ते कोविड-19 के मामलों को देखते हुए करीब 300-350 मिलियन मध्यम वर्ग भारतीय कोरोना वैक्सीन लेने के लिए बेचैन हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान पिछले कुछ दिनों से देश में 4,00,000 लाख से अधिक दैनिक मामले और 4000 के करीब मौतों का आंकड़ा सामने आ रहा है.

कोरोना के इस विस्तार ने प्रौद्योगिकी और सूचना की जानकारी होने के बावजूद मध्यम वर्ग को जकड़ लिया और संकट से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होने के कारण वह खुद को वायरस से बचाने में विफल रहा.

फरवरी अंत तक कोरोना के नए वैरिएंट से 90,000 हजार लोगों की जान गई, जब मौतों का कुल आंकड़ा 1.57 लाख था. वहीं 10 मई तक यह आंकड़ा 2.50 लाख से अधिक पहुंच गया. कोरोना के नए वैरिएंट से पिछले 30 दिनों में 80,000 मौतें हुई हैं. इसने मध्यम वर्ग कोरोना टीका लेने के लिए बेचैन कर दिया है.

भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार, जो 1 मार्च से वरिष्ठ नागरिकों और 1 अप्रैल से 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग वाले लोगों को दी जा रहे वैक्सीन को लेने में देरी कर रहा था, आज कोविन एप पर वैक्सीन के लिए स्लॉट बुक करने को लेकर बेताब है.

ईटीवी भारत की जानकारी में पिछले हफ्ते ऐसा ही एक मामला आया था, जहां गुरुग्राम में एक मध्यम आयु वर्ग का युगल कोविड शॉट लेने के लिए पीपीई किट पहन कर अस्पताल आया था.

गौरतलब है कि वैक्सीन लेने आया युगल किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाव हेतु पीपीई किट पहन कर आया था, जिन्होंने राष्ट्रीय कोविड हेल्पलाइन नंबर 1075 से जांचने के बाद उसी दिन पीपीई किट खरीद लिया जिससे वे सिविल अस्पताल में चल सकें और वैक्सीन प्राप्त कर सकें.

हालांकि, टीकाकरण अधिकारी ने 1 मई से लागू होने वाले नए नियमों का हवाला देते हुए उन्हें लौटा दिया. नए नियमों के तहत अस्पताल में वैक्सीन प्राप्त करना पहले से ही राष्ट्रीय टीकाकरण पोर्टल पर स्लॉट बुक करके ही आना संभव है.

टीकाकरण अधिकारी के दंपति की आयु पूछने पर पता चला कि दोनों ही 45 वर्ष से अधिक के हैं. अधिकारी ने उन्हें बताया कि वो एक महीने पहले ही टीका ले सकते थे.

यह मामला भारतीय मध्यम वर्ग की लापरवाही को दर्शाता है, जो पहले तो टीका लेने में आनाकानी कर रहे थे, और अब जब केंद्र सरकार द्वारा 18-44 समूह के लिए टीकाकरण शुरु होने के निर्णय ने योग्य उम्मीदवारों का विस्तार किया है और किया है स्लॉट्स बुक करना और भी मुश्किल हो गया.

टीकाकरण की स्थिति रिपोर्ट

ईटीवी भारत की टीम ने शहर के विभिन्न हिस्सों में स्थित पांच मध्यम और बड़े निजी अस्पतालों और क्लीनिकों का भी सर्वेक्षण किया. ये सभी अस्पताल पिछले महीने के अंत तक कोविड टीकों की पेशकश कर रहे थे, लेकिन अब इनके स्टॉक खत्म हो गए हैं.

अस्पतालों के बाहर टीकों की अनुपलब्धता के बारे में नोटिस लगा दिया गया है.

राष्ट्रीय टीकाकरण पोर्टल कोविन पर उपलब्ध नवीनतम जानकारी के अनुसार, शहर के केवल दो निजी अस्पताल सशुल्क टीके दे रहे थे. मैक्स हॉस्पिटल कोविशिल्ड को 900 रुपये में एक खुराक दे रहा था, वहीं फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट कोविक्सिन को 1250 रुपये में एक खुराक दे रहा था.

गुरुग्राम में, कई सरकारी स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में मुफ्त टीके उपलब्ध थे.

दिल्ली में, भुगतान किए गए टीके कई अस्पतालों में उपलब्ध थे और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीके भी दिल्ली भर में उपलब्ध थे.

देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में, कई अस्पतालों ने पेड टीकों की पेशकश तो की, लेकिन स्लॉट उपलब्ध नहीं थे.

इसी तरह, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे दक्षिणी भारत के शहरों में वैक्सीन स्लॉट की उपलब्धता के लिए कोविन पोर्टल से पता चला है कि सभी स्लॉट बुक थे, लेकिन तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के मामले में, एक निजी अस्पताल में टीकाकरण स्लॉट उपलब्ध थे.

व्याकुलता के पीछे दो कारक

वैक्सीन को लेकर मध्यम वर्ग की इस व्याकुलता के दो कारण हैं. पहला, इसकी प्रभावकारिता और साइड इफेक्ट्स के बारे में मजबूत वैक्सीन संकोच था. मध्यम वर्ग के शिक्षित लोगों ने सोचा कि जब मार्च और अप्रैल में टीकाकरण केंद्रों पर फुटफॉल अभी भी कम है, तब इसे लेने के बजाय इंतजार करना और देखना उचित समझा.

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को लेकर आई मीडिया रिपोर्टों से उनकी हिचकिचाहट को बल मिला, जो भारत में कोविशील्ड के नाम से उत्पादित और बेचा जाता है, जिससे कई यूरोपीय देशों में कुछ रोगियों में दुर्लभ रक्त के थक्के बने. इस कारण कुछ यूरोपीय संघ के देशों को इसके उपयोग को निलंबित करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

हालांकि, शहरों में चिकित्सा बुनियादी ढांचे का अभूतपूर्व पतन, जहां बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग के लोग अपने परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों भर्ती होने या आईसीयू बेड प्राप्त करने में विफल रहे, उन्हें बाहर औपचारिक चैनलों से ऑक्सीजन सिलेंडर, सांद्रता और जीवन रक्षक दवाओं की व्यवस्था करने के लिए मजबूर किया गया. अत्यधिक कीमतों, वैक्सीन की हताशा ने भी उनके संकोच को बढ़ावा दिया.

ये मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग के परिवार बस एक ऑक्सीजन सिलेंडर या उसके रिफिल की व्यवस्था करने के लिए कई बार अपनी एसयूवी और बड़ी कारों में 50-100 किलोमीटर तक ड्राइविंग करते देखे गए. ताकि वह ऑक्सीजन प्राप्त कर सकें और रोगियों को बचा सकें.

वैक्सीन झिझक महंगा साबित हुआ

पिछले साल नवंबर में कम्युनिटी नेटवर्किंग प्लेटफ़ॉर्म लोकल सर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि 25,000 प्रतिभागियों में से केवल 8% ही वैक्सीन लेने के लिए तैयार थे, क्योंकि प्रतिभागियों में से अधिकांश लगभग 60% ने कहा कि वे टीका लेने में जल्दबाजी नहीं करेंगे, जबकि 28% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे 3-6 महीनों तक इंतजार करेंगे, 13% ने कहा कि वे 6-12 महीनों तक इंतजार करेंगे, 7% ने कहा कि वे 2021 में वैक्सीन नहीं लेंगे और केवल 2022 में इस पर विचार करेंगे.

वहीं, 11% प्रतिभागियों ने कहा कि वे कुछ भी नहीं कह सकते हैं या टीकाकरण के बारे में फैसला नहीं कर सकते हैं, प्रतिभागियों की एक समान संख्या ने कहा कि वे वैक्सीन तभी लेंगे जब यह एक निजी स्वास्थ्य सेवा चैनल के माध्यम से प्रदान किया जाता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में उनके आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है.

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