वाराणसी : यूरोपीय देश नार्वे के 22 छात्र-छात्राएं भारत के धर्मों के बारे में जानने के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय पहुंचे. ये स्टूडेंट वाराणसी के धर्म स्थलों का भ्रमण करेंगे. इसके साथ ही वे यहां के धर्मों के बारे में एक रिसर्च पेपर भी तैयार करेंगे. सभी छात्र व छात्राएं नॉर्वे के ओस्लो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी से आए हैं. वे काशी में रहकर हिंदू समेत अन्य धर्मों और उनकी संस्कृति के बारे में जानेंगे. शनिवार को BHU के फैकल्टी ऑफ आर्ट में छात्रों के इस दल ने टूरिज्म मैनेजमेंट के छात्र-छात्राओं से बातचीत की. सभी ने एक-दूसरे की भाषा, शैली, रहन-सहन, बोली आदि के बारे में जानकारियों को साझा किया.
मंदिरों और धर्म स्थलों का करेंगे भ्रमण : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पहुंचे नार्वे के 22 छात्रों के दल के बारे में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रवीन राणा ने जानकारी दी है. वे इस कार्यक्रम के प्रमुख भी हैं. उन्होंने बताया कि नॉर्वे के छात्र भारत के धर्मों को जानने आए हैं. ये सभी लोग वाराणसी के मंदिरों और धर्म स्थलों पर जाएंगे. इसके साथ ही हिंदू धर्म ग्रंथों और संस्कृत के श्लोकों पर रिसर्च करेंगे, जिससे वे नॉर्वे में हिंदू संस्कृति के बारे में जानकारी साझा कर सकें. इसके बाद जब वे वाराणसी के तमाम धर्म स्थलों पर घूमेंगे. BHU में ही एक कॉन्फ्रेंस आयोजित करेंगे. सभी छात्र किए गए शोध पर अपना रिसर्च पेपर भी पब्लिश करेंगे.
भारतीय धर्मों को समझने के लिए पहुंचे काशी : रिसर्च पेपर के माध्यम से भारत और नॉर्वे अपने-अपने आर्ट और कल्चर साझा कर अपने संबंधों को नई दिशा देंगे. प्रोफेसर राणा ने बताया कि भारत और नॉर्वे के बीच साल 1991 से एकेडमिक रिलेशन चल रहा है. इसमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और नार्वे के ओस्लो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी के छात्र और टीचर्स पूरे विश्व के धर्मों का अध्ययन करते हैं. इसमें भारतीय धर्म सबसे महत्वपूर्ण हैं. भारतीय धर्म को ही समझने के लिए नार्वे के स्टूडेंट काशी में आते हैं. काशी में हर धर्म का अनुभव लिया जा सकता है. पहले तीन चार दिन वे विभिन्न धार्मिक स्थलों पर जाते हैं. वहां पर घूमते हैं. उसके बाद BHU के बच्चों और ओस्लो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी के बच्चों के साथ मिलकर एक वर्कशॉप करते हैं.
भारत के धार्मिक स्थलों पर टीचर ने की पीएचडी : असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रवीन राणा ने बताया कि भ्रमण के दौरान यह जानने की कोशिश करते हैं जो भारत और नार्वे की विभिन्न संस्कृतियां हैं, वे दोनों कैसे एक-दूसरे के समान हैं. कैसे हम एक दूसरे से सीख सकते हैं. हमारा उद्देश्य यही है कि भारत और विश्व में जितनी भी संस्कृतियां हैं, सभी मिलकर विश्व में शान्ति स्थापित करें. उन्होंने बताया कि ओस्लो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी से आए टीचर डॉ. कुनुप ने अपनी पीएचडी भारत के धार्मिक स्थलों और यात्राओं पर की है. डॉ. कुनुप भारत के धार्मिक स्थलों के बारे में ओस्लो विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं. उन्होंने 5 इंटरनेशनल आर्टिकल पब्लिश किए हैं. इस फील्ड विजिट के बाद यहां आए बच्चे अपना-अपना रिसर्च आर्टिकल पब्लिश करेंगे.
दुर्गासप्तसती पर विदेशी टीचर ने की पीएचडी : डॉ. प्रवीन राणा ने बताया कि भारत के धार्मिक स्थलों के बारे में जानकारी के लिए संस्कृत के श्लोकों की भी चर्चा जरूरी हो जाती है. अगर हम काशी की बात करेंगे तो बिना स्कंदपुराण और काशी खंड को लिए काशी के धार्मिक स्थलों को समझा नहीं जा सकता है. उसके अंग्रेजी ट्रांसलेशन में कुछ चीजें होती हैं, जिसको ये सभी समझते हैं और उन धार्मिक स्थलों पर जाते हैं. इसके बाद वहां की चीजों को समझकर के अपने आर्टिकल लिखते हैं. इससे पहले एक महिला टीचर आई थीं. उनका रिसर्च दुर्गासप्तसती पर था. उन्होंने उस पर पीएचडी की थी. सभी लोग संस्कृत के श्लोकों को पढ़ नहीं सकते हैं. वे टीचर हैं और उन्होंने संस्कृत पढ़ी हुई है. वे चीजों को पढ़कर के अपने बच्चों को बताते हैं.
भारत में किया जा सकता है धार्मिक-आध्यात्मिक रिसर्च : नॉर्वे से आए डेलीगेट्स के प्रमुख डॉक्टर कुनूप ने बताया कि हम प्रो. प्रवीन राणा के साथ मिलकर इस काम को कर रहे हैं. हम इंडियन कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के अंतर्गत काम कर रहे हैं. हम अपने 22 बच्चों और शिक्षकों के ग्रुप के साथ भारत आए हैं. हम यहां पर भारतीय धार्मिक इतिहास और संस्कृति के साथ ही अलग-अलग ट्रेडिशन के बारे में जानने के काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमें लगता है कि भारत एक ऐसा देश है धार्मिक, आध्यात्मिक रिसर्च किया जा सकता है. भारत में आकर लोग भारतीयता को स्वीकार कर रहे हैं.
योग और मेडिटेशन को दुनिया भर में स्वीकारा गया : डॉक्टर कुनूप ने बताया कि हमने पिंडदान जैसी चीजें नहीं देखी हैं. मगर हमने साउथ एशिया के बहुत से लोगों के कल्चर को देखा है. इंडिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के लोग नार्वे आते हैं तो वे अपनी संस्कृति और धर्म लेकर आते हैं. ऐसे ही बहुत सारे इंडियन ट्रेडिशन्स बुद्धिज्म, योगा, हिन्दू ट्रेडिशन मेन स्ट्रीम में आए और पॉपुलर हो गए. मेडिटेशन और योगा बहुत ही अधिक पॉपुलर हैं. लोग उसे अपनी प्रैक्टिस में लाने का काम करते हैं. योग और मेडिटेशन को दुनिया भर में स्वीकारा जा रहा है. डॉ. कुनुप ने कहा कि भारत और नॉर्वे के बीच सांस्कृतिक संबंध काफी बेहतर हो रहे हैं. हमारे गानों में भी इंडियन सॉन्ग्स का प्रभाव आ गया है.
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